मुद्दा : शिक्षा के क्षेत्र में नई दूरियां

Last Updated 13 Feb 2020 12:06:30 AM IST

इस वर्ष के केंद्र सरकार के आम बजट में शिक्षा के बजट में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।


मुद्दा : शिक्षा के क्षेत्र में नई दूरियां

वर्ष 2019-20 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का बजट 94854 करोड़ रुपये का था, जबकि 2019-20 के बजट में 99312 करोड़ रुपये का प्रावधान है। इस वृद्धि का स्वागत किया गया है, पर यदि हम इस बजट को और नजदीकी से देखें तो इसमें अनेक नई समस्याएं भी उभरती नजर आती हैं।
चिंता की एक बात तो यह है कि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के बजट में बहुत कमी आई है। पूर्व की तुलना में बजटीय प्रावधान बेकल कर देने वाले हैं। गौरतलब है कि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान राज्यों के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता को सुधारने की केंद्र सरकार की मुख्य स्कीम रही है। इसके लिए वर्ष 2019-20 का बजट अनुमान 2100 करोड़ रुपये था पर वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट अनुमान को मात्र 300 करोड़ रुपये रखा गया है। यकीनन बजटीय प्रावधान में इस कटौती से उच्चतर शिक्षा में बहुत कठिनाई हो सकती है, विशेषकर यह ध्यान में रखते हुए कि पिछले वर्ष भी इस अभियान में कटौती की गई थी। जहां मूल प्रावधान 2100 करोड़ रुपये का था, वहां संशोधित अनुमान में इसे घटा कर 1380 करोड़ रुपये कर दिया गया था। जहां इस पूरे अभियान में कटौती हुई है, वहां कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए उच्चतर शिक्षा प्राप्त करना और कठिन हो गया है। इस अभियान में अनुसूचित जातियों के लिए 412 करोड़ रुपये की व्यवस्था थी। यह अब सिमट कर 50 करोड़ रुपये पर पंहुच गई है। इस अभियान में अनुसूचित जन-जातियों के लिए 2019-20 में 222 करोड़ रुपये की व्यवस्था थी (बजट अनुमान)। यह 2020-21 के बजट अनुमान में 25 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। इन दोनों समुदायों के लिए उच्च शिक्षा विभाग की छात्रवृत्तियों में भी कमी आई है।

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही एक चर्चित स्कीम रही है। इसके लिए वर्ष 2019-20 में 280 करोड़ रुपये का प्रावधान था, जबकि 2020-21 में इसे कम करके 220 करोड़ रुपये कर दिया गया है। वैसे, पिछले वर्ष के प्रावधान को भी सिमटा कर संशोधित अनुमान में 200 करोड़ रुपये कर दिया गया था। अनुसूचित जातियों के छात्रों और छात्राओं के होस्टल के लिए वर्ष 2019-20 में 53 करोड़ रुपये का मूल प्रावधान था जबकि वर्ष 2020-21 में इसके लिए मात्र 15 करोड़ रुपये का प्रावधान है। इस तरह के तमाम उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मूल प्रावधान में 5 प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद शिक्षा क्षेत्र की अनेक महत्त्वपूर्ण स्कीमों के लिए संसाधनों में महत्त्वपूर्ण कमी आ सकती है, और इसके लिए हमें पहले से तैयारी करनी चाहिए कि इस संसाधनों की कमी का सामना कैसे किया जाए। ऐसे में बेहतर तो यही होगा कि सरकार स्वयं संशोधित अनुमान में वृद्धि करके इस कमी को पूरा करे। एक अन्य चिंता की बात यह है कि शिक्षा का बजट उपकर या सेस पर बहुत अधिक निर्भर होता जा रहा है।
इस वर्ष का अनुमान है कि समग्र शिक्षा अभियान का लगभग तीन-चौथाई बजट शिक्षा उपकर से प्राप्त हो रहा है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के कुछ अन्य पक्षों के बजट को विनिवेश  प्रक्रिया पर निर्भर किया जा रहा है। विशेषकर केंद्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों के आंवटन को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश पर और पेट्रोल और डीजल के उपकर पर निर्भर होना पड़ रहा है। महत्त्वपूर्ण कार्यों और योजनाओं के लिए बजट की अपनी महत्त्वपूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए। यह स्थिति नहीं होनी चाहिए कि यदि किसी कारण सार्वजनिक उपक्रम का विनिवेश रोकना जरूरी समझा जाए तो इससे शिक्षा का जरूरी बजट ही खतरे में पड़ जाए। जहां शिक्षा में विभिन्न सुधारों की बात की जाती है वहां बजट में इसके अनुकूल वृद्धि भी होनी चाहिए।
उदाहरणत: मिड-डे मील का दायरा बढ़ाने की बात बहुत हो चुकी है, पर बजट नहीं बढ़ाया गया है। वर्ष 2019-20 में मिड-डे मील के लिए 11,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था थी और इस वर्ष भी यही बजट अनुमान दिया गया है। साथ में इसे कक्षा नवीं तथा दसवीं में भी लागू करने की बात भी कही गई है पर बजट बढ़ाए बिना यह कैसे संभव है। वर्ष 2019-20 में संशोधित अनुमान तो और भी कम कर 9,912 करोड़ रुपये पर सिमटा दिया गया था। जरूरी मदों पर बजट वृद्धि के साथ आवंटित बजट का उचित उपयोग भी बहुत आवश्यक है तभी शिक्षा में जरूरी सुधार एक हकीकत बन सकेंगे।

भारत डोगरा


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