मुद्दा : विकास के लिए शोध जरूरी
विकास एवं अनुसंधान का गहरा नाता है। अनुसंधान है तो विकास है। इसलिए जब हम अनुसंधान की बात करते हैं तो विकास अपने आप वजूद में आ जाता है।
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यही वजह है कि अनुसंधान को रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) के नाम से जाना जाता है। आरएंडडी पर सबसे ज्यादा धन अमेरिका खर्च करता है। उसके बाद चीन का नम्बर आता है।
2016 में अमेरिका ने 511.1 अरब डॉलर की राशि रिसर्च पर खर्च की। चीन ने 451.9 अरब डॉलर खर्च किए। 379 अरब डॉलर के निवेश के साथ यूरोपीय संघ तीसरे तो 165.7 अरब डॉलर की राशि के साथ जापान चौथे स्थान पर रहा। अनुसंधान पर औसत खर्च में भी अमेरिका दुनिया में सबसे आगे है। यहां भी चीन दूसरे, जापान तीसरे और जर्मनी चौथे स्थान पर है। अमेरिका का अनुसंधान पर औसत खर्च 476.5 अरब डालर, चीन का 370.6 अरब डालर, जापान का 170.5 अरब डालर और जर्मनी का 109.8 अरब डालर है। जिस देश ने अनुसंधान पर जितनी ज्यादा राशि खर्च की है, वह विकास के उतने ही ऊंचे पायदान पर है।
जहां तक भारत की बात है तो संसाधनों के साथ जागरूकता की कमी के चलते हमारे यहां रिसर्च का चलन विदेश की तुलना में कम है। हालांकि अब स्थितियां बदल रही हैं। पिछले कुछ वर्षो में देश में रिसर्च पर सरकारी निवेश लगातार बढ़ा है। पिछले दो दशकों में यह जीडीपी के 0.6 फीसद से 0.7 फीसद के बीच रहा। अमेरिका में यह आंकड़ा 2.8 फीसद, चीन में 2.1 फीसद, दक्षिण कोरिया में 4.2 फीसद और इस्रइल में 4.3 फीसद है। हमारे देश में आरएंडडी की स्थिति बताने के लिए ये तुलनात्मक आंकड़े ही काफी हैं। किसी भी देश को शक्तिशाली बनाने में भी रिसर्च की महत्त्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका होती है। जिस देश में जितने बड़े फौजी अनुसंधान हुए हैं आज वह उतनी ही बड़ी फौजी ताकत है।
रोचक बात यह है कि जो ताकतवर है, वो संपन्न भी है। दरअसल, इन दोनों के बीच गहरा नाता है। विकास की प्रक्रिया में कोई बाहरी या अंदरूनी ताकत खलल न डाले, इसके लिए किसी राष्ट्र का शक्तिशाली होना बहुत जरूरी है। यहां अनुसंधान को समझने के लिए हम अपनी सुविधा के लिए मोटे तौर पर तीन शाखाओं में विभाजित कर सकते हैं। पहली शाखा है आर्थिक विकास तो दूसरी है रक्षा क्षेत्र। गौर करने वाली बात यह है कि अनुसंधान के जरिए रक्षा क्षेत्र का भी विकास ही होता है।
तीसरी शाखा इन दोनों धाराओं का मिशण्रहै यानी आर्थिक विकास और रक्षा क्षेत्र, दोनों के साथ आगे बढ़ना। इस मिश्रित शाखा को हमारे जैसे देश अपना रहे हैं जो एक शक्तिशाली फौजी राष्ट्र के साथ आर्थिक तौर भी शक्तिशाली राष्ट्र भी बनना चाहते हैं। हम इस मामले में सही से आगे बढ़ते रहे तो हमारे देश भी शीघ्र ही शक्तिशाली फौजी और आर्थिक तौर पर विकसित राष्ट्रों की जमात में शामिल होगा। यहां सुखद बात यह है कि इसके कुछ लक्षण दिखाई भी देने लगे हैं।
अमेरिका जैसे देश पहले ही आर्थिक और फौजी तौर पर बेहद विकसित हैं। अंतरराष्ट्रीय होड़ के चलते चीन भी अपने आप को सुपर फौजी-आर्थिक पावर बनाने के लिए जी-जान से जुटा हुआ है। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने अपना पूरा ध्यान अपने आप को सुपर आर्थिक पावर बनाने पर लगा रखा है। यही वजह है कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टेक्नोलॉजी इन देशों में विकसित हो रही है। जीडीपी के प्रतिशत के लिहाज से आरएंडडी पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले देशों में इस्रइल और दक्षिण कोरिया शामिल हैं। वर्ष 2017 में इन्होंने अपने संसाधनों का 4.6 फीसद इस मद में खर्च किया है। यही वजह है कि बीते दशक में दक्षिण कोरिया की इकोनॉमी सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार रही।
यह बात सही है कि गरीब और गरीब देशों के लिए रिसर्च करना जहां एक महंगा मसला है वहीं इसके लिए सब्र भी बहुत होना चाहिए। मोटे तौर पर रिसर्च दो कारणों से की जाती है। एक तो कुछ नया ईजाद करने के लिए और दूसरा पहले से जो मौजूद है और पुरातन है, उसके बारे में किए जा रहे दावों की सत्यता की परख के लिए। बाद वाले कारण के लिए की जाने वाली रिसर्च थोड़ी आसान और पहले वाली की तुलना में कम खर्चीली है क्योंकि इसके दावे सही हैं या नहीं, इसी पर आप को फोकस करना है। रिसर्च भी दो स्तर पर की जाती है। कुछ लोग जो जुनूनी प्रवृत्ति के होते हैं और कुछ नया ईजाद करना चाहते हैं, वे व्यक्तिगत संसाधनों के बूते पर ही रिसर्च में जुटे रहते हैं। इसके अलावा, सरकार भी कुछ बड़ा हासिल करने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान करती और कराती रहती है। हमारे देश में इत्तफाक से दोनों स्तर पर ही कम अनुसंधान हुए हैं।
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