बलात्कार, एक वीभत्सतम अपराध

Last Updated 15 Dec 2019 03:17:21 AM IST

बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुनकर मन मस्तिष्क फटने लगता है - बहुत ज्यादा दु:खी हो गया हूं इसलिए कुछ लिखना अति आवश्यक समझा। बलात्कार से पीड़ित महिला की मानसिक/मनोवैज्ञानिक हत्या हो जाती है।


बलात्कार, एक वीभत्सतम अपराध

मैं संभ्रांत परिवार की एक ऐसी लड़की को जानता हूं जिसके साथ चार लड़कों ने एक पांच सितारा होटल में बलात्कार किया था। एक ऐसी जगह पर, जहां बहुत तेज म्यूजिक बज रहा था। इस घटना के बाद उस लड़की का व्यवहार पूरी तरह बदल गया। वह इतनी चिड़चिड़ी हो गयी, कि उसके मन में किसी के भी लिए प्यार, सम्मान नहीं रहा। यहां तक कि उसकी मां के लिए भी नहीं। इसका कारण सिर्फ बलात्कार ही नहीं था। उसे यह बात साल रही थी, कि उसे अपनी और अपने परिवार की इज्जत की खातिर चुप रहना पड़ा और वह कहीं भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकी। अब वह एक ऐसी घुटन के साथ जी रही है, जिसे सिर्फ वही बता सकती है। अब शायद वह कभी भी एक सामान्य जीवन नहीं जी पायेगी। वह एक अच्छी पत्नी और निश्चित तौर पर एक अच्छी मां भी नहीं बन पायेगी। नि:सन्देह बलात्कार का असर हर लड़की पर अलग-अलग होता है।

एक बहुत बड़े पद पर रहने वाले दिल्ली के पुलिस अफसर का कहना है कि 90% पीड़ित पुलिस तक लज्जा एवं समाज में बदनाम हो जाने के डर से नहीं जाते और न ही एफ.आई.आर कराते हैं। यानी जनमानस को मीडिया के जरिये 90%, इन अति घृणित, वाकयों का पता ही नहीं चलता।

आज कुछ एक बलात्कार पीड़ित और प्रभावित परिवार के सदस्य अपने आत्मसम्मान के लिए खुद आगे आने की हिम्मत दिखा रहे हैं। इसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। यह सच है, कि जब वे कहते हैं कि शर्मिदा तो उन बलात्कारियों को होना चाहिए जो इसे अंजाम देते हैं, हम क्यों शर्मिदगी झेलें। चाहे वे निर्भया की मां श्रीमती आशा देवी हों, कोलकाता के बलात्कार पीड़ित परिवार के सदस्य हों, या उनकी तरह की अन्य महिलाएं हों, हम इनके साहस को सलाम करते हैं, कि इन्होंने अपनी पहचान प्रकट करने का साहस दिखाया और न्याय की मांग की। आज हमारे समाज की व्यवस्था में आशा देवी जैसी साहसी महिलाओं की जरूरत है। उन्होंने हतोत्साहित करने वाली व्यवस्था के खिलाफ अनवरत संघर्ष करने का साहस दिखाया और उसी संघर्ष का परिणाम दिखा कि दिसंबर 2015 में किशोर अपराध अधिनियम में संशोधन करना पड़ा। उन्हें इसका मलाल तो है कि उनकी बेटी को न्याय नहीं मिला, हालांकि संतोष है कि उन्हें इतनी राहत जरूर मिली कि इस तरह के मानसिक आघात से अन्य महिलाओं को कम गुजरना पड़ेगा।

‘एक बहुप्रचलित कथन है कि जरूरत से ज्यादा अनुशासन लादना अनुशासनहीनता का कारण होता है।’ हमारे देश में वेश्यावृत्ति, बार डांसर्स आदि के विरुद्ध बहुत ही सख्त कानून बनाये गये हैं। लेकिन लागू किये गये इतने कानूनों और प्रतिबंधों-नियंत्रणों आदि के बावजूद बलात्कारों में बेतहाशा वृद्धि हुई है और कई गुना बढ़ोत्तरी हो रही है। मैं हैरान हूं कि आखिर कानून निर्माता अब इस पर क्या सोच रहे हैं?

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मानव मनोविज्ञान को, या दूसरे शब्दों में उन सच्चाइयों की, जिनके साथ मनुष्य पैदा होता है, ठीक से सोच-समझकर जब तक सही ढंग से विश्लेषित न किया जाये तब तक केवल एक-दो घटनाओं के आधार पर उत्तेजित होकर ऐसा कोई सामाजिक कानून नहीं बनाया जाना चाहिए।

मेरे कुछ विश्लेषणों या सुझावों को हो सकता है कि शुरू-शुरू में महिलाओं द्वारा सकारात्मक तौर पर न लिया जाये। लेकिन विश्वास करिए, मैं हमेशा कहता हूं कि महिलाएं मां की भूमिका में होती हैं। दुनिया में एक मां की पवित्रता, गरिमा, उसकी भावनात्मक समृद्धि, उसके नि:शर्त प्यार की क्षमता और विशाल व्यक्तित्व के समकक्ष कोई भी नहीं ठहरता। मैं हमेशा कहता हूं कि महिलाएं हमेशा बेहतर इंसान होती हैं।

जहां तक बलात्कार का सम्बन्ध है, बलात्कारी को कानूनन कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। मेरा सुझाव होगा कि बलात्कारी को फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए।

मैं अपनी बात इस लोकप्रिय कथन के साथ कहना चाहूंगा कि अगर आप बड़ी बुराइयों को रोकना या समाप्त करना चाहते हैं, तो छोटी-छोटी बुराइयों को नज़रअंदाज करना पड़ता है।
मगर आज हमारे देश के कानून और प्रतिबंध इस तरह के हैं कि बड़ी-बड़ी बुराइयों को फैलने का अवसर देकर छोटी-छोटी बुराइयों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।

सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में वेश्यावृत्ति को हमेशा स्वीकृति मिलती रही, वह भी पूरे सम्मान के साथ।
मैं जब भी अपने किसी विचार के निष्कर्ष पर पहुंचना चाहता हूं या जब भी कोई वृहत्तर प्रशासनिक नियम बनाता हूं, तो उससे पूर्व मैं हमेशा मानव जाति के इतिहास का विश्लेषण करके स्थिति को जानने, समझने और निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश करता हूं।

सतयुग के काल में नृत्य-संगीत, गायन-वादन का प्रचलन था जिसमें वेश्याएं नाच-गाकर अपनी खूबसूरत अदाओं, भाव-भंगिमाओं से पुरुषों को रिझाती थीं और पुरुष की पाशविक प्रवृत्तियों के दमन में उनकी मदद करती थीं। इस तरह की वेश्यावृत्ति पुरुषों की एक बड़ी आबादी को संतुष्ट किये रखती थी।

भारतीय संस्कृति में इनकी मौजूदगी विभिन्न रूपों में देखने को मिलती है। आप इंदल्रोक की अप्सराओं, मेनका और उर्वशी को याद करें, कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम और मेघदूत को पढ़ें, अजंता-एलोरा की कलाकृतियां देखें, प्राचीन काल में मंदिरों में लोकप्रिय देवदासी परंपरा का अध्ययन करें और पता करें कि नवरात्र में मां दुर्गा की मूर्तियां बनाने में जिन 18 स्थानों की मिट्टी का उपयोग होता था, उनमें एक पुण्य माटी किसी वेश्या के घर से लाने की परंपरा कब कैसे शुरू हुई थी। वैशाली की नगरवधुओं, मुगलकाल में तवायफों के मुजरों और ब्रिटिश काल में कथक नर्तकियों को भी इस पेशे से जोड़कर देखा गया था।

कोलकाता में, साठ के दशक में, वहां के सभी बड़े मुहल्लों (कॉलोनियों) में वेश्यावृत्ति होती थी और कॉलगल्र्स हर जगह दिखाई देती थीं। वहां के लोगों और प्रशासन ने इसे एक बड़ी बुराई के तौर पर लिया। वे इसे शहर से मिटाना चाहते थे।

लेकिन उस समय के विवेकवान और सफल मुख्यमंत्री डा. विधान चंद्र रॉय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया और आदेश पारित किया कि वेश्याओं को मिटाने की कोशिश मत करो, बल्कि वेश्याओं के लिए एक विशेष क्षेत्र निर्धारित कर दिया जाये और सभी वेश्याओं को वहां बसा दिया जाये। प्रशासन ने उस विशेष क्षेत्र (यह क्षेत्र सोनागाछी था) में रहने के लिए लाइसेंस जारी किये। एक दूसरा बहुत अच्छा काम जो उन्होंने किया, वह यह था कि वेश्याओं को जांच, दवा आदि की चिकित्सा संबंधी सहायता उपलब्ध करायी। मेरी समझ से यह बुराई पर नियंत्रण करने और साथ ही आवश्यक छूट देने का एक बेहतर तरीका था।

हम यह सोचकर खुश हैं कि वेश्यावृत्ति पर पूर्ण नियंत्रण के लिए हम बड़े-बड़े कानून बना रहे हैं। ऐसे कानून बनाकर कानून निर्माता सिर्फ लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। हम हर रोज यह दृश्य मीडिया में देखते हैं कि दस लड़कियां और कुछ पुरुष मुंह पर काला कपड़ा लगाए किसी लॉज या होटल से बाहर लाये जा रहे हैं, जिन्हें अवैध वेश्यावृत्ति के लिए पकड़ा गया है। और हम अब भी बार डांस जैसी चीजों पर रोक लगाए जा रहे हैं। ऐसे सभी कानूनों के रहते हुए भी बलात्कार के मामले हर रोज बढ़ रहे हैं, और बलात्कार के बाद पीड़िता की हत्या कर देने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक  2011 और 2015 के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध दर 41.7% से बढ़कर 53.9% हो गई है। देश में वर्ष 2001 से 2017 के बीच 4 लाख 15 हजार 786 रेप के मामले दर्ज किये गये।

प्रतिबंधों के रहते हुए प्रबल पाशविक प्रवृत्ति वाले लोग जानवरों की भांति बिना किसी भय के सड़कों से लड़कियों को उठा लेते हैं। इसका सबसे बुरा पहलू यह है, कि एक लड़का चूंकि सड़क पर चलती किसी लड़की को अकेला नहीं उठा सकता, इसलिए यह कार्य वे 3-4 के गुट में करते हैं, और यही कारण है कि सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं। सबसे गंदी और डरावनी घटनाएं वहां हो रही हैं, जहां पुरुष जवान, ताकतवर या दुस्साहसी नहीं हैं, और वे सड़क से किसी लड़की को नहीं उठा सकते। ऐसे पुरुष हमारे मानव समाज के मूलभूत ताने-बाने को ही नष्ट कर रहे हैं।

अब मैं जो लिखने जा रहा हूं उसे लिखते हुए मेरे हाथ कांप रहे हैं, क्योंकि यह बहुत ही घृणित और मानव समाज को ही तोड़ने वाला है। एक मनुष्य होने के नाते और एक पिता होने के नाते मैं यह लिखते हुए शर्मिदा हो रहा हूं, कि अब ऐसे पिताओं की कहानियां भी सामने आ रही हैं जो अपनी पुत्रियों से बलात्कार करते आ रहे हैं। केवल मां और बेटे के रिश्ते को छोड़कर बहुत से घरों में हर तरह के रिश्ते यौन संबंधों में लिप्त पाये जा रहे हैं।

अगर हम इस मुद्दे पर सही ढंग से सोच-विचार करके शीघ्र ही कोई सही निष्कर्ष नहीं निकालते तो मनुष्य जाति के इतिहास से किसी भी रिश्ते की पवित्रता ही मिट जाएगी।

इसके लिए हमें अपने भारतीय समाज के बहुत से तथ्यों को समझना बेहद जरूरी है। हमारे देश की आबादी बहुत विशाल है, जिसमें से विशालतम हिस्सा गरीबों और अनपढ़ों का है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि बड़ी जनसंख्या केवल हाड़-मांस वाले लोगों की है, जिनकी मानसिकता बहुत संकुचित, नकारात्मक और संवेदनशून्य है।

इसलिए हमें वेश्यावृत्ति पर रोक नहीं लगानी चाहिए, इसके विपरीत न केवल इसकी अनुमति होनी चाहिए, बल्कि उचित चिकित्सकीय सुविधा-सहायता के साथ इसके लिए लाइसेंस भी जारी किए जाने चाहिए। सेक्स को वर्जित नहीं माना जाना चाहिए और वेश्यावृत्ति को घृणित व्यवसाय के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए - बल्कि इसमें लगी औरतों को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उन्होंने जबरन बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्याओं जैसे जघन्य अपराधों को रोकने और नियंत्रित करने में बड़ा योगदान किया है।

मैं सहमत हूं कि अगर पहली पीढ़ी की वेश्याओं के बारे में अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि वे अनिच्छा से, गरीबी के कारण, इस व्यवसाय में आयीं। लोग कहते हैं कि बाद में इन लोगों ने इसे अपना पेशा बना लिया, जहां न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से अपितु अन्यथा भी उन्हें किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। लेकिन आगे की पीढ़ी की मानसिकता बचपन में ही इस तरह विकसित होती है कि उसके लिए यह व्यवसाय गलत नहीं रह जाता।

निश्चित तौर पर ‘नाच-गाने’ को ज्यादा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए और इसे कानूनी अनुमति दी जानी चाहिए।

अगर आप थोड़ा गणित की तरह से सोचने की कोशिश करें, तो पायेंगे कि केवल कुछ ही वेश्याएं सैकड़ों लड़कियों को जबरन बलात्कार और सामूहिक बलात्कार से बचा सकती हैं।
आज 90 प्रतिशत से भी ज्यादा बलात्कार की घटनाएं सामने ही नहीं आ पाती हैं, यानी इनकी प्राथमिकी ही दर्ज नहीं होती, इसलिए हम प्रतिदिन बड़ी संख्या में हो रहे बलात्कारों के बारे में नहीं जानते। क्योंकि डरी हुई पीड़िता लड़की और उसका लज्जित परिवार शिकायत दर्ज ही नहीं कराते।

आपको पुरुष की इच्छा (कामना) के एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू को समझना चाहिए, कि 95 प्रतिशत से अधिक लोग अपनी यौन इच्छा की पूर्ति बहुत ही शांतिपूर्ण और मित्रतापूर्ण ढंग से करना चाहते हैं, लड़-झगड़कर और डरा-धमकाकर नहीं। इसलिए अगर उचित वेश्यावृत्ति को मान्यता दे दी जाये तो बलात्कार के मामलों में भारी गिरावट दिखाई देगी ही।

यहां हमें पुरुष के बारे में एक जैविक तथ्य को समझ लेना चाहिए। पुरुष के भीतर मौजूद केमिकल उसके अंदर यौन एवं पाशविक प्रवृत्ति जगाता है। रूमानी प्यार वहां होता है, जहां साहचर्य की गहरी चाह होती है। माता-पिता और बच्चे के बीच गहरा रूमानी प्यार होता है। यही कारण है कि मां-बाप, विशेषकर मां, पूरे उत्साह के साथ बच्चे को स्वयं से चिपका लेती है। बच्चे को आलिंगन में लेने से मां-बाप को रूमानी प्यार की गहरी संतुष्टि प्राप्त होती है। पुरुष को स्त्री के आलिंगन की तीव्र चाह होती है। यहां फिर दुहरा दूं कि अधिकतर पुरुष आलिंगन आदि ऐसे मित्रतापूर्ण माहौल में करना चाहते हैं, जहां स्त्री भी प्यार भरे ढंग से प्रतिक्रिया दे सके। इसलिए बलात्कार अभीष्ट नहीं होता है परन्तु वेश्यावृत्ति-नृत्य-संगीत, कॉलगल्र्स, बार डांसर्स आदि पर रोक के कारण पुरुष, अवांछित होते हुए भी, बाध्य होकर बलात्कार की ओर प्रवृत्त होता है।

लेकिन एक सच्चाई और भी है कि पढ़े-लिखे और सुसंस्कृति  वर्ग में ‘बलात् यौन शोषण’ तब तक रहेगा जब तक कि हम उनके लिए दोस्ताना माहौल वाले ‘नृत्य-गायन’ का क्षेत्र विकसित नहीं करते। यह क्षेत्र बिना किसी निषेध के पांच सितारा वातावरण वाला क्षेत्र होना चाहिए।

वेश्यावृत्ति को मान्यता देने के बारे में पहले भी कई स्तरों पर बातें हुई हैं। सन् 2013 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रोफेसर पाम राजपूत की अध्यक्षता में गठित एक 14 सदस्यीय कमेटी ने सेक्स वर्क को डीक्रिमिनलाइज करने के साथ-साथ आपसी सहमति से सेक्स करने की उम्र सीमा 18 से घटाकर 16 करने की सिफारिश की थी।

अप्रैल 2014 में भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत सरकार को वेश्यावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले विवादास्पद आईटीपीए कानून की समीक्षा करनी चाहिए और सेक्स वर्करों के मानवाधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।

उनके स्वास्थ्य की समस्या है। एचआईवी-एड्स होने के खतरे हैं। पुलिसिया रंगदारी, वसूली और यौन अत्याचार से भी उन्हें गुजरना पड़ता है। उनके मानवाधिकार के लिए तमाम एनजीओ लड़ रहे हैं।
सन् 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने देह व्यापार की बढ़ती समस्या को देखते हुए सरकार से कहा कि जब आप उन्हें रोक नहीं सकते तो कानूनी मान्यता क्यों नहीं दे देते।

सन् 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने फिर वेश्याओं की बदहाली को देखते हुए सरकार से उनके मानवाधिकारों की रक्षा करने और उन्हें कानूनी मान्यता देने को कहा।

राष्ट्रीय महिला आयोग की तत्कालीन अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने सन् 2014 में वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता देने की वकालत की थी।

देश में सेक्स वर्कर्स की स्थिति की जांच करने के लिए अधिवक्ता प्रदीप घोष की अध्यक्षता में गठित सर्वोच्च न्यायालय के एक पैनल ने भारत में सेक्स वर्क को कानूनी मान्यता देने की सिफारिश की थी।

पैनल ने 2016 में सौंपी रिपोर्ट में कहा कि आपसी सहमति से एडल्ट सेक्स वर्करों से संबंध बनाने पर पुलिस को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए। न्यायालय ने माना कि आईटीपीए एक्ट 1956 का दुरुपयोग हो रहा है और इसकी समीक्षा होनी चाहिए। पर केंद्र सरकार ने 26 फरवरी 2015 को राज्यसभा में साफ कह दिया कि वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता देने का उसका कोई इरादा नहीं है।

विडंबना ये है कि सरकार देश में वेश्याओं के अस्तित्व को स्वीकार करती है और उनके पुनर्वास की बात करती है, पर उन्हें उनकी मर्जी से मर्यादित जीवन जीने देने की इजाजत नहीं देती, जिसका मौलिक हक उन्हें संविधान की धारा 21 के तहत अन्य नागरिकों की तरह प्राप्त है।

वेश्यावृत्ति को लेकर भारत में कानून भी स्पष्ट नहीं है। वेश्या के घर में निजी तौर पर यौन संबंध जायज है, पर किसी सार्वजनिक स्थल के नजदीक पहले से बने उनके घरों में भी यौन संबंधों की इजाजत नहीं है।

अनेक कानूनविद मानते हैं कि भारत में सेक्स वर्कर्स को कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए।

दुनिया के करीब सौ देशों में किये गये एक सव्रेक्षण रिपोर्ट के अनुसार सौ में से 49 देशों में वेश्यावृत्ति पूरी तरह और 12 अन्य देशों में आंशिक रूप से वैध है।

एक विकसित पश्चिमी देश में मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी ने इस तरह की एक नवनिर्मित पांच सितारा क्षेत्र देखा। खूबसूरत वातावरण वाले इस स्थान पर अच्छा भोजन और शराब हर ओर उपलब्ध थे। सुंदर दिखने वाली लड़कियां नाचने-गाने के साथ-साथ एक-एक व्यक्ति को शराब परोस रही थीं। वहां मनोरंजन की ऐसी ही सेवाओं की मांग ज्यादा थी, बजाय किसी कमरे में जाकर यौनेच्छा को पूरा करने के। हालांकि वहां इस प्रकार की सुविधा भी उपलब्ध थी। अध्ययन बताता है कि यदि कोई व्यक्ति एक माह में पांच दिन वहां जाता है, तो वह चार दिन घंटों तक आनंद लेगा, बिना शारीरिक अंतरंगता के।

खैर, मैंने समाज के विभिन्न वर्गों के ऐसे कई लोगों से साक्षात्कार लिये, जो महिला अपराधों के संबंध में जेल में बंद थे। मैंने उनसे बातचीत के दौरान बहुत स्पष्टत: यह महसूस किया कि हम 90 प्रतिशत से भी ज्यादा बलात्कार की घटनाओं को, विशेषकर सामूहिक बलात्कारों को रोक सकते हैं और उन पर नियंत्रण लगा सकते हैं।

इस आलेख के माध्यम से मैं पूरी विनम्रता के साथ कानून निर्माताओं से निवेदन करना चाहूंगा कि सामाजिक कानूनों के संबंध में किसी भी कानून को बनाने या हटाने या उसमें संशोधन करने से पहले कृपया ऐसे कुछ शिक्षित (केवल साक्षर नहीं) समूहों से प्रासंगिक जानकारी अवश्य प्राप्त कर लें, जो जीवन के आधारभूत दर्शन को या दूसरे शब्दों में, जीवन के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को या जीवन की सच्चाइयों को भलीभांति समझते हैं। इन समूहों को पर्याप्त समय दें और उन्हें एक निर्णायक प्रस्ताव तैयार करने दें। और तब कानून निर्माता इस प्रस्ताव का मूल्यांकन करें और अंतिम निर्णय लें। इसमें शर्त यह होनी चाहिए कि अंतिम निर्णय जनता, समाज और देश के हित में हो, राजनीतिक लाभों के लिए नहीं। इसके बिना बलात्कार जैसे वीभत्सतम अपराध नहीं रुक पायेंगे।

(आप अपने सुझाव अथवा प्रतिक्रिया editpagesahara@gmail.com पर दे सकते हैं)

सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा


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