टीम इंडिया : पेस अटैक के क्या कहने

Last Updated 21 Nov 2019 05:06:14 AM IST

टीम इंडिया के बांग्लादेश से पहला टेस्ट जीतने और इससे पहले दक्षिण अफ्रीका से टेस्ट सीरीज जीतने पर उसके पेस अटैक की हर तरफ तारीफ हो रही है।


टीम इंडिया : पेस अटैक के क्या कहने

भारत से घर में पार पाना विदेशी टीमों के लिए पहले भी मुश्किल था और अब भी मुश्किल है। हां, पहले और अब में फर्क सिर्फ इतना सा आया है कि पहले हम भ्रमणकारी टीमों को टर्निग विकेट पर खिलाकर उनकी परीक्षा लिया करते थे। लेकिन अब हम उन्हें उनके ही हथियार पेस अटैक के बूते पर धो रहे हैं।

बांग्लादेश के पूर्व कप्तान अमीनुल इस्लाम कहते हैं कि पहले भारतीय गेंदबाजी अटैक की अगुआई  स्पिनर अनिल कुंबले किया करते थे और अब पेस गेंदबाज कर रहे हैं। यह भारतीय क्रिकेट में बड़ा बदलाव है। मौजूदा भारतीय पेस अटैक का वही जलवा है, जो 1970 और 1980 के दशक में वेस्ट इंडीज के पेस गेंदबाजों का हुआ करता था। इंदौर में खेले गए पहले टेस्ट में बांग्लादेश पर जीत में ईशांत शर्मा, मोहम्मद समी और उमेश यादव की तिकड़ी ने 14 विकेट निकाले जबकि रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जड़ेजा की जोड़ी पांच ही विकेट निकाल सकी। इससे  पेसरों का दबदबा साफ दिखता है।

सही है कि भारतीय दौरे पर आने वाली टीमों के लिए पहले भी यहां टेस्ट मैचों में जीत पाना मुश्किल था और यह आज भी उतना ही मुश्किल है। पहले यह काम स्पिनर किया करते थे और अब पेस गेंदबाज कर रहे हैं। असल में यह बदलाव 2015 के बाद से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा टीम प्रबंधन की सलाह पर स्पोर्टिग विकेट बनाने से हुआ है। पाकिस्तान के क्रिकेट आंकड़ेबाज मजहर अरशद कहते हैं कि पहले आम तौर पर तेज गेंदबाजी में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के तेज गेंदबाजों का दबदबा रहता था पर पिछले दो सालों में हम विभिन्न टीमों के प्रदर्शन को देखें तो इन टीमों से बाजी भारतीय पेस गेंदबाजों ने मार ली है।

2019 में प्रदर्शन की बात करें तो भारतीय पेस गेंदबाजों ने इस दौरान सात टेस्ट में 33.7 के सामूहिक स्ट्राइक रेट से 76 विकेट निकाले हैं। इस स्ट्राइक रेट का मतलब है कि भारतीय पेस गेंदबाज हर 34 गेंद पर एक विकेट निकालते हैं। पिछले दो सालों से भारतीय पेस गेंदबाजों का स्ट्राइक रेट 40 से नीचे रहा है। पहले आम तौर पर हमारे पेस गेंदबाजों का सामूहिक स्ट्राइक रेट 47-48 हुआ करता था। हम जानते हैं कि पहले पेस गेंदबाजों की कोई बात होती थी, तो निश्चय ही वे वेस्ट इंडीज, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के हुआ करते थे। इसकी वजह पहले स्पिनरों पर निर्भर रहते थे। पेस गेंदबाज का काम गेंद की चमकभर उतारना हुआ करता था।

भारत को 1970 के दशक के आखिर में पहली बार कपिल देव के रूप में अच्छा पेस गेंदबाज मिला। इसके बाद जवागल श्रीनाथ और जहीर खान के रूप में दो और अच्छे पेस गेंदबाज मिले पर इन तीनों की ही दिक्कत रही कि उन्हें थोड़े-थोड़े समय के लिए ही अच्छे जोड़ीदार मिल सकें पर भारत में अच्छे पेस गेंदबाजों का पूल कभी तैयार नहीं हो सका। लेकिन अब हालात बदले हैं। भारत में पेस गेंदबाजों का समूह तैयार हो जाने का सबसे प्रमुख फायदा यह हुआ है कि अब हमारे पेस गेंदबाज दोनों छोरों से दवाब बनाते हैं, जिससे बल्लेबाजों को राहत का मौका ही नहीं मिलता जिससे उनके ऊपर दवाब निरंतर बना रहता है।

टीम इंडिया के गेंदबाजी कोच भरत अरुण कहते हैं कि हमारा पेस अटैक बहुत ही कौशल भरा है, और इन सभी गेंदबाजों में अच्छा प्रदर्शन करने की भूख उन्हें नायाब बनाती है। कप्तान विराट कोहली को भी अपनी पेस बैट्री पर नाज है। वह कहते हैं कि हमारे पेस गेंदबाज अपनी सर्वश्रेष्ठ लय में हैं। जब गेंदबाजी करते हैं तो विकेट अलग नजर आने लगता है। इस अटैक में बुमराह के जुड़ने पर इसके कहने ही क्या होंगे। भारतीय पेस गेंदबाजी की खास बात यह है कि उसकी सप्लाई लाइन बहुत मजबूत है। आज जब ईशांत, शमी और उमेश कहर बरपा रहे हैं, वहीं बुमराह, हार्दिक पांडय़ा और भुवनेश्वर कुमार  चोट की समस्या से उबरने के प्रयास में जुटे हैं। यह तीनों जब आ जाएंगे तब इनकी खातिर किसी अन्य गेंदबाज को बाहर बैठना पड़ सकता है। खलील अहमद और दीपक चाहर अभी छोटे प्रारूप में कहर बरपा रहे हैं। जरा सोचिए कि एक समय था जब कपिल देव, जवागल श्रीनाथ और जहीर खान अच्छे जोड़ीदार नहीं मिल पाने से परेशान रहते थे और आज हालत यह है कि टीम प्रबंधन के लिए फैसला करना सिर दर्द बन गया है कि किसे खिलाएं और किसे बैठाएं। यह टीम की ताकत को दर्शाता है।

मनोज चतुर्वेदी


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