विश्लेषण : भाजपा की आक्रामकता सही

Last Updated 18 Nov 2019 12:09:30 AM IST

भाजपा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ देशव्यापी आक्रामक और प्रचंड प्रदर्शन कर रही है।




विश्लेषण : भाजपा की आक्रामकता सही

भाजपा सरकार में होते हुए अगर प्रदर्शन कर रही है तो विचार करना होगा कि यह उपयुक्त है या नहीं? भाजपा की मांग है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘चोर’ कहने के लिए देश से माफी मांगें। राफेल विमान सौदे पर सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे फैसले के भी सरकार के पक्ष में आने के बाद उसका आक्रामक होना अस्वाभाविक नहीं है।
जिस तरह का अभियान फ्रांस के साथ राफेल विमान सौदे को लेकर सरकार और विशेषकर प्रधानमंत्री के खिलाफ चला वैसा किसी के खिलाफ चलता तो वह भुला नहीं पाता। राहुल गांधी ने तो एकदम आगे बढ़कर ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगवाना आरंभ किया और यह लोक सभा चुनाव तक प्रधानमंत्री के खिलाफ कांग्रेस का सबसे ज्यादा बोला जाने वाला नारा था। स्वाभाविक ही यह भाजपा को सबसे ज्यादा उत्तेजित करने वाला भी था। एक अंतराल के बाद प्रधानमंत्री ने सीधे इसका सामना करने के लिए ‘मैं भी चौकीदार’ का नारा दिया। इसका अर्थ यही था कि आप चौकीदार को चोर कहते हो तो हम सारे चौकीदार हैं। यानी प्रधानमंत्री वाकई ईमानदारी से देश की चौकीदारी कर रहे हैं और हम सब उनके साथ हैं।

इस तरह लोकसभा चुनाव के पूर्व एक ओर ‘चौकीदार चोर है’ तो दूसरी ओर ‘मैं भी चौकीदार’ आमने-सामने के राजनीतिक मोर्चाबंदी का नारा बना हुआ था। लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद प्रधानमंत्री ने और उनके बाद भाजपा के सभी लोगों ने अपने नाम के साथ चौकीदार शब्द हटा दिया, लेकिन गुस्सा समाप्त हो गया हो ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। ‘चौकीदार चोर है’ का नारा सर्वोच्च न्यायालय गया, क्योंकि राहुल गांधी ने पुनर्विचार याचिका स्वीकार किए जाने के साथ ही कह दिया था कि अब तो न्यायालय ने कह दिया कि ‘चौकीदार चोर है’। न्यायालय ने राहुल गांधी को अवमानना का दोषी मानते हुए उनकी बिना शर्त माफी को स्वीकार किया है। चूंकि न्यायालय ने राफेल मामले में दोबारा किसी तरह के भ्रष्टाचार न होने के अपने पूर्व फैसले को भी कायम रखा है तो भाजपा के लिए यह हिंसाब बराबर करने का अवसर है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले के पैराग्राफ 31 में राहुल गांधी को कन्टेम्प्टर यानी अवमानना करने वाला कहा है। इसमें कहा गया है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि क्या आदेश दिया गया है, इसको पढ़े बिना अवमानना करने वाले ने इस तरह वक्तव्य देना उपयुक्त माना मानो न्यायालय ने प्रधानमंत्री के खिलाफ उसके आरोप को स्वीकार कर लिया है जो कि सच नहीं था। ऐसा केवल एक वाक्य या किसी एक पर्यवेक्षण में नहीं बल्कि लगतार विभिन्न रूपों में एक ही बात को दोहराया गया।’ यह पंक्ति पूरी तरह राहुल गांधी के खिलाफ जाती है। राहुल गांधी ने जिस तरह ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगाना आरंभ किया था उसे देश का बड़ा वर्ग सही नहीं मानता था। कांग्रेस में भी ऐसे लोग थे, जिनका मानना था कि हमारे नेता को ऐसा नारा नहीं लगाना चाहिए। किंतु राहुल गांधी की टीम कहती थी कि इस नारे का असर है और मोदी की स्वच्छ छवि पर आघात हो रहा है।
यह सामान्य तौर पर समझने वाली बात है कि किसी को लगातार चोर कहा जाएगा तो उस पर एवं उसकी पार्टी के सदस्यों के मन पर क्या असर होगा? यह किसी एक पक्ष की बात नहीं है। कल्पना करिए अगर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला किंचित भी सरकार के प्रतिकूल होता तो कांग्रेस एवं विरोधी दलों का रवैया कैसा होता? इस मामले में ही देखिए। न्यायालय ने मूल मामले के फैसले के 25 वें पैरा में लिखा है कि हमारा मत है कि यह पुनर्विचार याचिका बिना किसी योग्यता के है और इस तरह इसे खारिज किया जाता है। इसमें यह भी कहा गया है कि हमारा मूल फैसला भी संविधान की धारा 32 की परिधि में ही था। चूंकि एक न्यायाधीश के. एम. जोजफ ने अलग से फैसला लिखा है, इसलिए उसका आधार बनाकर राहुल गांधी ने ट्वीट किया एवं पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि इस फैसले से आपराधिक जांच का रास्ता प्रशस्त होता है। वे अपनी पुरानी मांग संयुक्त संसदीय समिति से जांच को दोहरा रहे हैं। 14 दिसम्बर 2018 को जब सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल सौदे की सीबीआई जांच कराने की मांग की याचिकाएं खारिज की थी तब भी कांग्रेस का यही मत था।
यह राजनीतिक क्रूरता और निम्नस्तरीय हठधर्मिंता है। साफ है कि राहुल गांधी एवं उनके रणनीतिकार अपनी गलती स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। ठीक है कि न्यायमूर्ति जोजफ ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई एवं न्यायमूर्ति संजय किसन कौल से अलग फैसला लिखा है, किंतु पुनर्विचार याचिका खारिज करने का फैसला सर्वसम्मति से है। न्यायमूर्ति जोजफ ने पहले पैरा में ही लिखा है कि मैं अंतिम फैसले से सहमत हूं; कुछ निश्चित पहलुओं पर मेरा विचार है जिसे मैं अलग मत के रूप में कारणों के साथ दे रहा हूं। इसमें उन्होंने कहीं नहीं कहा है कि आपराधिक धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर जांच होनी चाहिए। उन्होंने केवल इतना कहा है कि पुनर्विचार पर दिया गया फैसला सीबीआई के किसी कार्रवाई के रास्ते में नहीं खड़ा होता। यह एक सामान्य सी टिप्पणी है। कोई किसी मामले में प्राथमिकी दर्ज करा दे तो उसकी जांच हो सकती है। इसमें लिखा ही नहीं है कि सीबीआई से जांच होनी चाहिए। उन्होंने तो 86 वें पैरा में यह लिखा है कि याचिकाकर्ताओं ने जिस ललिता कुमारी मामले का जिक्र कर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17 ए के तहत आपराधिक मामला बनाने की कोशिश की उसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकती। इसलिए मेरा मत है कि फैसला पर पुनर्विचार की मांग नहीं टिकती है। बावजूद इसके यदि राहुल गांधी एवं सुरजेवाला ऐसा कह रहे हैं तो भाजपा का गुस्सा बढ़ेगा।
अगर सामान्य मानवीयता के माहौल की राजनीति होती तो राहुल गांधी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राफेल सौदे को सही ठहराने के बाद स्वयं सामने आकर कहते कि मुझसे भूल हुई और प्रधानमंत्री और उनके समर्थकों को मेरे वक्तव्यों से जो कष्ट पहुंचा उसके लिए क्षमा मांगता हूं। किंतु राजनीति का समग्र विमर्श माहौल इतना अमानवीय, पाखंडपूर्ण एवं जहरीला हो चुका है कि ऐसे स्वाभाविक शालीन आचरण की कल्पना तक नहीं की जा सकती। जाहिर है,  मामला आगे चलेगा। राफेल सौदे में बाजी अब भाजपा के पक्ष में है और उसकी आक्रामकता न्यायसंगत है।

अवधेश कुमार


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