भूख सूचकांक : हालात सुधारने ही होंगे
आयरलैंड की एजेंसी ‘ककन्सर्न वर्ल्डवाइड’ और जर्मनी के संगठन ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार ताजा वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट में भारत में भुखमरी के स्तर को ‘गंभीर’ बताया गया है।
भूख सूचकांक : हालात सुधारने ही होंगे |
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) 2019 में भारत 117 देशों में 102वें स्थान पर है जबकि उसके पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश की रैंकिंग उससे बेहतर है। भारत पिछले साल 119 देशों में 103वें स्थान पर था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी विश्व भूख सूचकांक की शुरुआत साल 2006 में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने की थी।
वेल्ट हंगरलाइफ नाम के एक जर्मन संस्थान ने 2006 में पहली बार ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी किया था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के तमाम देशों में खानपान की स्थिति का विस्तृत ब्योरा होता है, जैसे लोगों को किस तरह का खाद्य पदार्थ मिल रहा है, उसकी गुणवत्ता और मात्रा कितनी है और उसमें क्या कमियां हैं। सोचने की बात है कि कृषि प्रधान देश भारत में आज भी भुखमरी बड़ी समस्या है। विकास की ओर अग्रसर देश में कई लोग भूख के कारण जान गंवाते हैं। हमारे देश में किसी भी विकासशील देश से अधिक कृषि योग्य भूमि है लेकिन कृषि के लिए पर्याप्त सुविधाएं इतनी नहीं है। संकट यह भी है कि छोटे-छोटे किसान अधिक आर्थिक लाभ कमाने के लिए खाद्यान्न फसल को छोड़कर नकद आर्थिक लाभ देने वाली फसल पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। कृषि में तकनीक का उपयोग पर्याप्त रूप से नहीं हो पा रहा है। इसलिए दुनिया में जितने भी भुखमरी के शिकार लोग हैं, उनमें से करीबन एक चौथाई भारत में रहते हैं। इस लिहाज से भारत को ‘अलार्मिग कैटेगरी’ में रखा गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में पैदा हुए कुल खाने का एक तिहाई कभी खाया ही नहीं जाता है यानि खाने का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है। भारत के संदर्भ में देखें तो भारत में हर साल करीब 670 लाख टन खाना बर्बाद हो जाता है। इसकी कीमत करीब 50 हजार करोड़ है। देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियों और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार ने लोगों को अकाल मौत मरने पर मजबूर कर दिया है। इसके जरिए वितरित होने वाले अनाज का 52 फीसद या तो वितरण, परिवहन और भंडारण व्यवस्था की खामियों के चलते नष्ट हो जाता है या फिर खुले बाजार में ऊंची दर पर बेच दिया जाता है। इसके अलावा पोषण से भरपूर और बेहतर क्वालिटी के खाद्यान्न खरीदने के मामले में आम लोगों की खरीदने की क्षमता भी भुखमरी पर काबू पाने की राह में एक प्रमुख बाधा है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग ऐसा भोजन खरीदने में सक्षम नहीं हैं। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक भी जितना खाना हम एक साल में बर्बाद करते हैं, ब्रिटेन तो उतना उगा भी नहीं पाता। हालांकि भारत खाद्यान्न उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर राष्ट्र है, लेकिन फिर भी हमारे देश में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद चीन से भी अधिक हैं। भोजन के अपव्यय से बर्बाद होने वाली राशि को बचाकर करीब पांच करोड़ बच्चों के जीवन को बचाया जा सकता है। बड़ी अफसोस जनक बात है कि एक तरफ हम अपने घरों में, होटल में, घरों में या किसी शादी समारोह में बचा हुआ खाना फेंक देते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं होता है और वे भुखमरी का शिकार होते हैं।
जीवन के लिए प्रत्येक व्यक्ति को पोषक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करना शासन का प्रमुख कर्तव्य है। बेहतर उत्पादन का वातावरण बनाने के साथ ही खाद्यान्न के बाजार मूल्यों को समुदाय के हितों के अनुरूप बनाए रखना होगा। देश को कृषि और खाद्यान्न सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर महीने अनाज की विशेष मात्रा प्रदान करने की बजाय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि गांव खुद अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करें। अनाज के लिए लोग आत्मनिर्भर बनें।
अन्न को बचाना और उसका सदुपयोग करना कोई कठिन कार्य भी नहीं है। इसके लिए इच्छाशक्ति और अच्छी नीयत होनी चाहिए। इसके साथ हमें अपने संस्कार, संस्कृति और परंपराओं का चिंतन करना चाहिए और अपनी आदतों में सुधार करना होगा। खाना सहेजने के लिए हम एक प्रयास कर सकते हैं। न सिर्फ हम बल्कि बच्चे, परिजन, रिश्तेदार और मित्रों को भी इसके लिए प्रेरित करें? इसके जो भी सकारात्मक नतीजे आएंगे, उसका फायदा किसी और को नहीं बल्कि हमारे आने वाली पीढ़ी को ही मिलेगा। अन्न बचाना ही जीवन बचाना है।
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