मुद्दा : नया इंडिया, नये अनागरिक

Last Updated 17 Oct 2019 06:45:54 AM IST

अमृत दास/उम्र 72 साल, मृत्यु अप्रैल 2019/, सुब्रत डे/उम्र 38, मृत्यु मई 2018/ और जोब्बार अली/उम्र 61 साल, मृत्यु अक्टूबर 2018/ असम के निवासी इन तीनों के बीच क्या समानता ढूंढी जा सकती है?


मुद्दा : नया इंडिया, नये अनागरिक

ऐसा नहीं था कि यह तीनों एक-दूसरे से वाकिफ थे, या इनके परिवारवाले एक-दूसरे को जानते थे और न ही इनकी मौत एक ही स्थान पर हुई। अमृत दास और सुब्रत जहां असम के गोलपारा में गुजरे तो जोब्बार का इंतकाल तेजपुर में हुआ। अलबत्ता एक साझापन जरूर था कि इन तीनों का अंतिम समय बिल्कुल गैरों के बीच डिटेन्शन सेन्टर (बन्दीगृह) में गुजरा। ऐसा नहीं कि इन्होंने कोई जुर्म किया था, जिसकी सजा यह भुगत रहे थे।
दरअसल, अपनी अपनी नागरिकता साबित करने के लिए जिन-जिन दस्तावेजों को जमा करना पड़ता है-और अगर इनमें से किसी में कुछ खामी मिले तो फिर विदेशी घोषित किया जा सकता है-इनमें से किसी एक में कुछ विसंगति पाई गई थी, जिसके चलते किसी अलसुबह इन्हें बिना पहले सूचित किए पुलिस उठा कर ले गई थी और इन्हें डिटेन्शन सेन्टर्स में रखा गया था। मई 20, 2017 को फॉरिनर्स ट्रिब्यूनल ने अमृत दास को विदेशी घोषित किया था, जब वह जिन्दगी के सत्तरवें साल में थे।
डिटेन्शन सेन्टर की ठंडी फर्श पर सोते-सोते अमृत दास को अस्थमा ने जकड़ लिया और पर्याप्त मेडिकल सहायता न मिलने के चलते हिरासत में दो साल समाप्त होने के पहले ही वह कालकवलित हुए थे। इसी किस्म का हाल सुब्रत डे का हुआ था। अब यह फॉरिनर्स ट्रिब्यूनल कितने मनमाने ढंग से काम करते हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। सबसे ताजा मसला गुवाहाटी उच्च अदालत का वह फैसला है, जिसमें उसने मोरीगांव के फॉरीनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा दिए 57 आदेशों को-जिसमें इतने सारे लोगों को विदेशी घोषित किया गया था-तत्काल खारिज करने का आदेश दिया है।

अदालत का यह कहना था कि आम हालात होते तो इस अनियमितता के लिए अनुशासनिक कार्रवाई की जाती। सरकारी योजना के मुताबिक पहले से चले आ रहे 100 फॉरिनर्स ट्रिब्यूनल की सहायता के लिए लगभग चार सौ ट्रिब्यूनल दिसम्बर तक बनने हैं। सभी जानते हैं कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स की सूची जारी की गई है, जिसमें असम के 19 लाख निवासियों के नाम नहीं है। इन 19 लाख निवासियों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए लम्बी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जिसमें फॉरिनर्स ट्रिब्यूनल की अहम भूमिका होगी। गनीमत समझी जाएगी कि बमुश्किल छह माह के अन्दर हुई इन तीन मौतों ने वैसे-चाहे अनचाहे- अवैध प्रवास के नाम पर अनिश्चितकाल के लिए हिरासत रखने की राज्य द्वारा संचालित प्रणाली की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन अभी जैसे हालात हैं इसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। केंद्र में सत्ताधारी पार्टी की तरफ से जैसा माहौल बनाया जा रहा है तो अनागरिक को ढूंढने का यह सिलसिला पूरे देश में रफ्ता-रफ्ता फैलाया जा सकता है ताकि देश के हर हिस्से में ऐसे ही डिटेन्शन सेन्टर बनाए जाएं, जहां दस्तावेजों की छोटी मोटी कमी के चलते लाखों लोग अपने तमाम मानवीय अधिकारों से वंचित कर कारावासों में ठूंस दिए जा सकें।
दरअसल, जुलाई माह में ही केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश भेजा था कि वह सभी प्रमुख शहरों में ऐसे डिटेन्शन सेन्टर बनाए। सभी राज्यों को वितरित ‘2019 मॉडल डिटेन्शन मैन्युअल’ में ही ऐसे इलाके एवं सूबे जो आप्रवासियों के पहुंचने के ठिकाने हैं, उन पर फोकस किया जाना है। रिपोर्ट के मुताबिक नवी मुंबई में ‘अवैध प्रवासियों’ के लिए महाराष्ट्र का ऐसा पहला डिटेन्शन सेन्टर बनेगा।
अन्त में, इस बात को मददेनजर रखते हुए कि असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन्स बनाने के सिलसिले का एक चरण पूरा हो गया है और ‘घुसपैठियों’ और ‘अवैध प्रवासियों’ को भगाने के नाम पर इसी किस्म का सिलसिला देश के बाकी हिस्सों में भी चलाने की बात हो रही है, और जिस बात के ‘फायदे’ भी सत्ताधारी पार्टी को दिख रहे हैं, यह सोचना मासूमियत की पराकाष्ठा होगी कि यह किस्सा यहीं समाप्त होगा, भले ही कितनी भी मानवीय त्रासदियां हमारे सामने आती रहें। दरअसल, हमें नहीं भूलना चाहिए कि नागरिकों की ‘शुद्धता की कवायद और अंधराष्ट्रवाद’ वह खाद पानी होते हैं जिन पर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचार मजबूती पाता है।

सुभाष गाताडे


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