कांग्रेस : खुद ही डुबो रही नैया

Last Updated 11 Oct 2019 04:57:46 AM IST

लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी को मिली करारी हार के बाद कांग्रेस पूरी तरह से चरमरा कर रह गई है।


कांग्रेस : खुद ही डुबो रही नैया

कई बड़े नेता, सांसद, विधायक पार्टी को बाय बोलकर या तो भाजपा में शामिल हो गए या किसी अन्य दल का दामन थाम लिया। कुछ ऐसे भी हैं जो पार्टी में तो हैं, लेकिन खुद को असहज महसूस कर रहे हैं और इंतजार की मुद्रा में हैं।
दरअसल, चुनाव में हार के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देना और लाख मनाए जाने के बावजूद उनका अपने इस फैसले पर अडिग रहना पार्टी कार्यकर्ताओं के मन में उदासी और मायूसी पैदा कर गया है। यही नहीं राहुल की इस घोषणा के बाद भी कि गांधी परिवार का कोई व्यक्ति पार्टी अध्यक्ष नहीं बनेगा, सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाए जाने से टीम राहुल में मायूसी और गहरी हो गई, क्योंकि इसके बाद राहुल ने एक तरह से पार्टी में अपनी सक्रियता पर विराम लगा दिया। सोनिया के कार्यकारी अध्यक्ष बनते ही उम्र पार कर चुके जो कांग्रेसी राहुल के अध्यक्ष रहते पार्टी में अपने को भूमिका विहीन और महत्त्वविहीन समझने लगे थे वह एक बार फिर फ्रंट फुट पर खेलने लगे। वहीं टीम राहुल में शामिल सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, संजय निरूपम, मिलिंद देवड़ा, अशोक तंवर, जितिन प्रसाद जैसे कांग्रेस की युवा ब्रिगेड के रूप में अपनी अलग पहचान बना चुके नेता बैकफुट पर चले गए। इस सबके बावजूद राहुल खामोश हैं। उनके ब्लाक के अशोक तंवर को भूपेंद्र सिंह हुड्डा की धमकी पर हरियाणा प्रदेश कांग्रेस पद से हटा दिया जाता है और राहुल खामोश बने रहते हैं। यहां तक कि तंवर पार्टी छोड़ जाते हैं और अब पार्टी को हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। मिलिंद देवड़ा पार्टी में पूरी तरह महत्त्वविहीन हो गए पर राहुल खामोश हैं।

मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया आमने-सामने हैं मगर राहुल चुप हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को हटाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरा जोर लगाए हुए हैं। ऐसे और भी तथ्य हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि धीरे-धीरे पुराने और नयों के बीच खुले तौर पर वाकयुद्ध शुरू हो गया है। यह वाकयुद्ध अब तमाम मर्यादाएं भी तोड़ता जा रहा है। जब संजय निरूपम कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता मल्लिकाजरुन खड़गे को नास्तिक कह कर उन पर हमला बोलते हैं। वह कहते हैं, ‘मैं जानता हूं कि मल्लिकाजरुन खड़गे जी नास्तिक हैं। वह प्रार्थना, पूजा में विश्वास नहीं करते। लेकिन उनकी तरह कांग्रेस में सभी लोग नास्तिक नहीं हैं।’ शस्त्र पूजा भारत की परंपरा है तमाशा नहीं। यह बात निरूपम ने राजनाथ द्वारा फ्रांस में राफेल की पूजा किए जाने पर की गई खड़गे की टिप्पणी पर कही थी। सलमान खुर्शीद राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने पर जब बोलते हैं कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था, जबकि सब कांग्रेसी उनसे पद पर बने रहने का आग्रह और विनती कर रहे थे, तो राशिद अल्वी उन पर टूट पड़ते हैं। यहां तक कह देते हैं कि कांग्रेस को बाहर के दुश्मनों से नहीं अंदर से खतरा है, बल्कि यों कहो ‘घर को आग लग गई घर के चिराग से’। ज्योतिरादित्य का दर्द भी बाहर आ जाता है वह भी लगे हाथ नेतृत्व को नसीहत दे बैठते हैं। सिंधिया कहते हैं, ‘मैं किसी के कमेंट पर टिप्पणी तो नहीं करूंगा। लेकिन हां, इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस को आत्मावलोकन की जरूरत है। यह सही भी है होना भी चाहिए, लेकिन क्या ज्योतिरादित्य खुद इस नसीहत के दायरे में नहीं आते। यह सब देख-सुनकर साफ है कि फिलहाल कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में समर्पण की कमी साफ नजर आ रही है।
ऐसा लगता है अपने को कांग्रेसी कहने वाले ज्यादातर लोग मौके की तलाश में हैं। मौजूदा हालात में ऐसा कोई नेता या कार्यकर्ता नजर नहीं आता जो पार्टी को फिर से खड़ा करने का जतन कर रहा हो। अब तो एक और बात लगातार सामने आ रही है कि सत्ताधारी दल के चक्रव्यूह में कुछ नेता ऐसे फंस गए हैं कि वे पार्टी लाइन से हटकर जनभावनाओं की आड़ लेकर सत्ताधारी दल की कतार में खड़े हो जाते हैं। कांग्रेस आज जिस दौर से गुजर रही है ऐसी हालत 1977 में भी नहीं रही, क्योंकि गांधी परिवार के अलावा और गिने-चुने नेताओं के अलावा पार्टी का कोई नेता पार्टी के प्रति संजीदा नजर नहीं आता। देश की जनता भी सत्ता के खिलाफ किसी सशक्त विपक्ष के अभाव में अपने को एकदम असहाय महसूस कर रही है।  यही हालत रही तो वह दिन दूर नहीं जब आरएसएस और आरएसएस नवाजों का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार हो जाएगा। सब ‘ईसा अपनी राह मूसा अपनी राह’ की कहावत चरितार्थ कर रहे हैं।

मुफीज जिलानी


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