महात्मा गांधी : प्रखर धर्मनिरपेक्ष
हमारा देश विभिन्न धर्मो का मिलाजुला देश है। दुर्भाग्य से कुछ ताकतें ऐसी हैं, जो विभिन्न धर्मों की एकता और सद्भावना के विरुद्ध निरंतर प्रचार करती हैं।
महात्मा गांधी : प्रखर धर्मनिरपेक्ष |
उन्होंने सोच लिया है कि बहुसंख्यक समुदाय के बड़े हिस्से को दूसरे धर्मो के विरुद्ध भड़का कर देश में अपना प्रभाव बढ़ाया जा सकता है, सत्ता प्राप्त की जा सकती है। इस मनोवृत्ति के व्यक्ति देश की खुशहाली, शान्ति और एकता को अपने सांप्रदायिक प्रचार से बहुत क्षति पहुंचा रहे हैं।
देश में भाईचारे की अच्छी परंपराएं रही हैं। आजादी की लड़ाई के दौरान विशेषकर देखा गया कि जितने भी नेताओं को करोड़ों भारतीयों का प्यार और आदर-सम्मान मिला, वे सभी विभिन्न धर्मो की एकता और सद्भावना के प्रबल समर्थक थे। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, शहीद भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस इन सभी में सामान्य बात थी कि ये सभी विभिन्न
धर्मो के लोगों के आपसी भाईचारे के लिए समर्पित थे और सांप्रदायिकता के कड़े विरोधी थे। दूसरी तरफ सांप्रदायिकता समर्थक नेता इनके पासंग भी नहीं थे। हाल के समय में सांप्रदायिक ताकतों ने अपना समर्थन आधार बनाने के लिए एक कुचेष्टा आरंभ की है कि वे सबसे अधिक आदर-सम्मान प्राप्त महान व्यक्तियों को अपने नजदीक सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। कुछ ऐसी ही कुचेष्टा सांप्रदायिक ताकतों ने महात्मा गांधी के संदर्भ में भी आरंभ की है। उनके विचारों को अनुचित ढंग से पेश किया है। स्पष्ट करना जरूरी है कि महात्मा गांधी सांप्रदायिकता के कितने प्रखर विरोधी थे और विभिन्न धर्मो के आपसी भाईचारे के कितने प्रबल समर्थक थे।
इस संदर्भ में उनके कुछ महत्त्वपूर्ण कथनों का उद्धरण देना आवश्यक है। ‘मेरी लालसा है कि यदि आवश्यक हो तो मैं अपने रक्त से हिन्दू और मुसलमानों के बीच संबंधों को दृढ़ कर सकूं।’ (यंग इंडिया, 25.9.1924)। ‘मैं हिन्दुओं को जितना प्रेम करता हूं, उतना ही मुसलमानों को भी करता हूं। मेरे हृदय में जो भाव हिन्दुओं के लिए उठते हैं वही मुसलमानों के लिए भी उठते हैं। यदि मैं अपना हृदय चीरकर दिखा सकता तो आप पाते कि उसमें कोई अलग-अलग खाने नहीं है, एक हिन्दुओं के लिए, एक मुसलमानों के लिए, तीसरा किसी ओर के लिए आदि-आदि।’ (यंग इंडिया -13.8.1921)।
जनवरी, 1948 में अपनी शहादत से कुछ ही दिन पहले एक उपवास के दौरान उन्होंने कहा था, जब मैं नौजवान था और राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानता था, तभी से मैं हिन्दू, मुसलमान, वगैरा के हृदयों की एकता का सपना देखता आया हूं। मेरे जीवन के संध्याकाल में अपने उस स्वप्न को पूरे होते देख कर मैं छोटे बच्चों की तरह नाचूंगा..ऐसे स्वप्न की सिद्धि के लिए कौन अपना जीवन कुरबान करना पसंद नहीं करेगा? तभी हमें सच्चा स्वराज्य मिलेगा।’
(पूर्णाहुति, खंड चार, पृष्ठ 322)। ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता का अर्थ केवल हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता नहीं है, बल्कि उन सब लोगों के बीच एकता है जो भारत को अपना घर समझते हैं, उनका धर्म चाहे जो हो।’ (यंग इंड़िया 20-10-1921)। ‘जितने मजहब हैं मैं सबको एक ही पेड़ की शाखाएं मानता हूं। मैं किस शाख को पसन्द करूं और किसको छोड़ दूं। किसकी पत्तियां मैं लूं और किसकी पत्तियां मैं छोड़ दूं (महात्मा गांधी समग्र चिंतन-डॉ. बी.एन. पांडे-पृष्ठ 134)। महात्मा गांधी के लिए स्वतंत्र भारत की मूल बुनियाद यह थी कि सब धर्मो से समानता का व्यवहार हो। उन्होंने कहा-आजाद हिन्दुस्तान में राज्य हिन्दुओं का नहीं बल्कि हिन्दुस्तानियों का होगा, और उसका आधार किसी धार्मिक पंथ या संप्रदाय के बहुमत पर नहीं, बल्कि बिना किसी धार्मिक भेदभाव के समूचे राष्ट्र के प्रतिनिधियों पर होगा..धर्म एक निजी विषय है, जिसका राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिए।’ (हरिजन सेवक-9.8.42)। गांधी के निजी जीवन में धर्म के प्रति भले कितनी गहरी आस्था हो पर वे धर्मनिरपेक्ष नीतियों का महत्त्व भली-भांति समझते थे। नोआखली में उन्हें एक लिखित प्रश्न दिया गया-क्या धार्मिक शिक्षा स्कूलों के राज्य-मान्य पाठ्यक्रम का अंग होनी चाहिए। उन्होंने उत्तर दिया, मैं राज्य धर्म में विश्वास नहीं करता भले ही सारे समुदायों का एक ही धर्म हो। राज्य का हस्तक्षेप शायद हमेशा नापंसद किया जाएगा। धर्म तो शुद्ध व्यक्तिगत मामला है..धार्मिक संस्थाओं को आंशिक या पूरी राज्य सहायता का भी मैं विरोधी हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि जो संस्था या जमात अपनी धार्मिक शिक्षा के लिए धन की व्यवस्था खुद नहीं करती, वह सच्चे धर्म से अनजान है। इसका यह अर्थ नहीं है कि राज्यों के स्कूलों में सदाचार की शिक्षा नहीं दी जाएगी। सदाचार के मूलभूत नियम सब धर्मो में समान हैं। (गांधी जी की कहानी-लुई फिशर, पृष्ठ 225)। गांधी ने अपने आदर्श समाज को रामराज्य का नाम दिया। 26 फरवरी, 1947 को एक प्रार्थना सभा में रामराज्य की भावना स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया, कोई समझने की भूल न करे कि रामराज्य का अर्थ हिन्दुओं का राज्य है। मेरा राम, खुदा या गॉड का ही दूसरा नाम है। मैं खुदाई राज चाहता हूं। और इसका अर्थ है पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य। (पूर्णाहुति खंड दो, पृष्ठ 259)। हिन्दू धर्म के गहरे अध्ययन से गांधी जी ने जो समझ बनाई उससे इस धर्म के मूल तत्वों में अहिंसा और सहिष्णुता को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया। हिंदू धर्म के जिन गुणों को महात्मा गांधी ने सबसे ज्यादा महत्त्व दिया, वे हैं (यंग इंडिया, 20.10.1927): 1) सहिष्णुता; 2) सैद्धांतिक कट्टरता नहीं है, जिससे अनुयायी को अपनी अभिव्यक्ति का अधिक अवसर मिलता है; 3) हिन्दू धर्म वर्जनशील नहीं है। इसके अनुयायी सभी धर्मो की अच्छी बातें अपना सकते हैं; 4) अहिंसा; तथा 5) न केवल सभी मनुष्यों अपितु सभी जीवधारियों की एकात्मता में विश्वास।
यदि मुझसे हिन्दू धर्म की व्याख्या के लिए कहा जाए तो मैं इतना ही कहूंगा-अहिंसात्मक साधनों द्वारा सत्य की खोज। (24.4.1924, पृष्ठ 516-518, खंड 23, गांधी वाङ्मय)। मेरा हिन्दुत्व फिरकावाराना नहीं है। इसमें इस्लाम, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म और जरथ्रुस्ट धर्म की उत्कृष्ट बातें शामिल हैं-सत्य मेरा धर्म है और अहिंसा उसकी प्राप्ति का एकमात्र रास्ता। तलवार के सिद्धांत को मैंने सदा के लिए ठुकरा दिया है।’ (हरिजन-30.4.1938, पृ 99)। महात्मा गांधी ने इस ओर विशेष ध्यान दिलाया कि हिन्दू धर्म की मूल भावना जोर-जबरदस्ती और धर्म के नाम पर होने वाले झगड़े-फसाद के विरुद्ध है।
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