अर्थव्यवस्था : एक निर्भीक सुधार

Last Updated 23 Sep 2019 04:16:54 AM IST

सितम्बर 20, 2019 की तारीख सबसे प्रभावी सुधारों में से एक की घोषणा करने के लिए याद की जाएगी।


अर्थव्यवस्था : एक निर्भीक सुधार

वित्तीय प्रोत्साहन की कमी की वजह से बचाव की मुद्रा में आने के बाद सरकार ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई उपायों की घोषणा की थी, लेकिन उनमें से कोई भी कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी कटौती जितना प्रभावी नहीं था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने इन फैसलों की घोषणा करने के दौरान निर्भीकता का परिचय दिया। राजस्व में कमी की वजह से नर्वस होने के बजाये उन्होंने यह जता दिया कि अब विकास ही सरकार की प्राथमिकता है।
मंत्री ने घरेलू कंपनियों से सभी सेस एवं सरचार्ज सहित वर्तमान 35 प्रतिशत के कॉरपोरेट टैक्स को कम कर इसे 25.17 प्रतिशत पर ले आने की घोषणा की। विनिर्माण क्षेत्र से जुड़ी नई कंपनियों के लिए 1 अक्टूबर के बाद शामिल कंपनियों के लिए सभी सेस एवं सरचार्ज सहित कर दर अब 17.01 प्रतिशत होगी। इसी प्रकार, मैट या न्यूनतम वैकल्पिक कर में 3.5 प्रतिशत की कटौती कर दी गई है। इस फैसले को एक अध्यादेश के जरिये कार्यान्वित किया जाएगा। उम्मीद है कि सरकार को इस फैसले से 1.45 लाख करोड़ रुपये या वित वर्ष 2019-20 की अनुमानित जीडीपी के 0.7 प्रतिशत के राजस्व से हाथ धोना पड़ेगा। वर्तमान वित्त वर्ष के लिए यह जरूर चिंता की बात है और वास्तव में 10 वर्ष के बॉण्ड पर यील्ड 16 आधार अंक बढ़ गया है। हालांकि वर्तमान वर्ष के लिए यह चिंता की बात है पर जैसे ही आर्थिक विकास में बढ़ोतरी होगी, बढ़ी अर्थव्यवस्था से प्राप्त उच्च कर संग्रह का प्रभाव निम्न कर दर के प्रभाव का समाप्त कर देगा। वास्तव में, लैफर कर्व के अनुसार, भारत में कॉरपोरेट टैक्स की दरें उपेष्टतम थीं और कर दरों में कटौती आर्थिक प्रोत्साहन को बढ़ावा देगी और कर राजस्व बढ़ाएगी।

मेरा विश्वास है कि राजकोषीय समेकन का रास्ता लगभग एक वर्ष और आगे बढ़ा दिया गया है। इसका दूसरा पहलू यह है कि अगर सरकार विकास को बढ़ावा देने में विफल रही तो आने वाले वर्षो में कर संग्रह और अधिक प्रभावित हो सकता है। कुल मिला कर, मेरा यह मानना है कि विकास माध्यम से दीर्घ अवधि में राजकोषीय समेकन के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रोत्साहन उपलब्ध कराएगा। इसका तात्कालिक प्रभाव कॉरपोरेट जगत में धारणा को मजबूत करने के रूप में सामने आएगा जो वर्तमान में नीचे है। यह कदम बुनियादी भावनाओं को पुनर्जीवित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, यह कैपेक्स चक्र को पुनर्जीवित करने में सहायक साबित हो सकता है, जिसे पिछली दो तिमाहियों में नुकसान हुआ है। साथ ही,  कंपनियों की वित्तीय सेहत को सुधारने में भी मदद मिलेगी। कंपनियों के पास दो विकल्प हैं, या तो वे कर लाभों को बनाए रखें या दूसरा, वे मात्रा बढ़ाते हुए अपनी वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य में इजाफा करें। हलकान क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियां इस लाभ को मांग को बढ़ावा देने, खासकर जहां मांग लचीलापन अधिक है, के लिए हस्तांतरित कर सकती हैं। यह विशेष रूप से, उपभोक्ता वस्तुओं, ऑटो एवं रियल एस्टेट के मामले में होगा।
अप्रत्यक्ष रूप से इससे सीमेंट, स्टील, कैपिटल गुड्स एवं बैंकों जैसे सेक्टरों को लाभ होगा। मेरा अनुमान है कि यह कदम सूचीबद्ध कंपनियों के शुद्ध लाभ को वित वर्ष 2019-20 के दौरान बढ़ावा देगा। यह कदम कंपनियों के लिए पूंजी की लागत में भी कमी लाएगा। यहां यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि भारत में कॉरपोरेट दरें न केवल ऊंची हैं बल्कि उन देशों की तुलना में महत्त्वपूर्ण रूप से अधिक हैं, जिनके साथ भारत निर्यात बाजारों एवं एफडीआई के लिए प्रतिस्पर्धा करता है। नई दरें शेष क्षेत्रों के साथ प्रतिस्पर्धी हैं। कोरिया, चीन और इंडोनेशिया में 25 प्रतिशत की कॉरपोरेट दरें हैं, जबकि मलेशिया में 24 प्रतिशत है। अमेरिका एवं चीन के बीच व्यापार युद्ध ने दूसरे देशों के लिए अवसर खोल दिए हैं और भारत वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ-साथ एक अग्रणी दावेदार है, जहां कर दरें क्रमश: 20 प्रतिशत और 25 प्रतिशत है। नई विनिर्माण कंपनियों के लिए 17 प्रतिशत की कर दर की तुलना आसानी से सिंगापुर (17 प्रतिशत) एवं हांगकांग (16.5 प्रतिशत) के साथ की जा सकती है। यह विनिर्माण क्षेत्र के लिए एक उल्लेखनीय प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा दे सकता है। इसका दोहरा लाभ हो सकता है, जो जीडीपी को बढ़ावा भी देगा और रोजगार के नये अवसर पैदा करेगा। यह कदम प्रधानमंत्री के अमेरिका के दौरे से कुछ ही दिन पहले उठाया गया है, जिसका परिणाम कुछ प्रतिबद्धताओं के रूप में सामने आ सकता है।
अन्य कदमों में, सरकार ने बजट में पेश किए गए बढ़े अधिभार को वापस ले लिया है, जो प्रतिभूति लेनदेन कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी कंपनी में इक्विटी शेयरों की बिक्री से पैदा कैपिटल गेन पर लागू था। यह रिटेल, एचएनआई एवं पूंजी बाजारों में संस्थानों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करेगा। इसके अतिरिक्त, मंत्री ने यह भी कहा कि जिन सूचीबद्ध कंपनियों ने 5 जुलाई से पहले बायबैक की घोषणा की थी, उन्हें बायबैक से छूट प्रदान की जाएगी। इंफोसिस एवं विप्रो जैसी कंपनियां, जिन्होंने बजट के दिन से पहले बायबैक की घोषणा की थी, प्रमुख लाभार्थी होंगी।  तरलता स्थिति को बढ़ावा देने, निर्यातों को पुनजीर्वित करने और रोजगारों के अवसरों को सृजित करने के लिए विकासोन्मुखी घोषणाओं के तीन सप्ताहों के बाद, आखिरकार सरकार ने सही रास्ता चुना और उपरोक्त उपायों की घोषणा की। यह तय है कि भारतीय कंपनियों द्वारा निर्यात बाजार में प्रतिस्पर्धा करने और विनिर्माण क्षेत्र में अधिक एफडीआई आकर्षित करने के लिए और अधिक सुधारों की आवश्यकता होगी।
संक्षेप में, भूमि एवं श्रम सुधारों, अवसंरचना में निवेश एवं लालफीताशाही में कमी लाने के लिए विकास की आवश्यकता है। अपने पहले के कार्यकाल में विवेकपूर्ण कदमों पर फोकस करने के बाद, यह स्पष्ट है कि सरकार का इरादा विकास को बढ़ावा देना है। त्यौहारी मौसम से पहले इसकी घोषणा किए जाने के कारण यह उपभोग को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है, जिससे बुनियादी भावनाओं को बढ़ावा मिलेगा। मुझे यह भी उम्मीद है कि सरकार आगे आने वाले दिनों में और अधिक उपायों की घोषणा करेगी। फोकस विकास को पुनर्जीवित करने पर होना चाहिए और विकास में पहल करने के अतिरिक्त, प्राथमिकता अवसंरचना व्यय को बढ़ाने एवं वित्तीय क्षेत्र की सेहत में सुधार लाने की होनी चाहिए।

राजीव सिंह


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