नये वैश्विक शहर चाहिए

Last Updated 11 Sep 2019 06:59:53 AM IST

हाल ही में 7 सितम्बर को मुंबई में तीन नई मेट्रोलाइन की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि हम 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं, तो हमें हमारे शहरों को 21वीं सदी के वैश्विक शहरों के मुताबिक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे और रहने योग्य अनुकूलताओं से सुसज्जित करना होगा।


नये वैश्विक शहर चाहिए

जब हम हमारे शहरों की ओर देखते हैं, तो पाते हैं कि ये बुनियादी ढांचे और जीवन अनुकूलताओं के मद्देनजर दुनिया के शहरों से बहुत पीछे हैं। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू)द्वारा 4 सितम्बर को प्रकाशित जीवन अनुकूलता सूचकांक में कहा गया है कि नई दिल्ली और व्यावसायिक राजधानी मुंबई जीवन की विभिन्न अनुकूलताओं और रहने की बेहतर योग्यता के मामले में पहले की तुलना में पीछे हो गए हैं। दुनिया भर के 140 शहरों के सर्वेक्षण में नई दिल्ली छह स्थान फिसल कर 118वें पायदान तथा मुंबई दो स्थान फिसल कर 119वें पायदान पर आ गया है। जिन पैमानों पर विवेचना की गई है, उनमें स्थिरता, संस्कृति, परिवेश, स्वास्थ्य सेवा, मूलभूत ढांचा और शिक्षा क्षेत्र को शामिल किया गया है। ईआईयू ने कहा है कि सांस्कृतिक क्षेत्र के अंक में गिरावट के कारण मुंबई रैंकिंग में दो स्थान फिसल गया है। वहीं सांस्कृतिक, पर्यावरण स्कोर और अपराध दर में वृद्धि के कारण स्थिरता स्कोर में गिरावट से सूचकांक में नई दिल्ली की स्थिति कमजोर हुई है। उल्लेखनीय है कि इस सूची में ऑस्ट्रिया का वियना लगातार दूसरी बार पहले स्थान पर रहा है। अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया के रहने लायक शहरों में कुल मिलाकर एशियाई शहरों का प्रदर्शन औसत से नीचे है।

पिछली कुछ वैश्विक अध्ययन रिपोटरे में कहा गया कि भारत में तेजी से विकसित होते हुए नये शहरों का लाभप्रद परिदृश्य दिखाई देगा। प्रतिष्ठित थिंकटैंक ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स द्वारा पिछले दिनों प्रकाशित दुनिया के 780 बड़े और मझोले शहरों की बदलती आर्थिक तस्वीर और आबादी की बदलती प्रवृत्ति को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 से 2035 तक दुनिया के शहरीकरण में काफी बदलाव देखने में आएगा। तेजी से विकसित होते नये वैश्विक शहरों की रफ्तार के मामले में टॉप के 20 शहरों में पहले 17 भारत के होंगे और उनमें भी सबसे पहले दस शहर भारत के ही होंगे। पहले 10 शहरों में  सूरत, आगरा, बेंगलुरू, हैदराबाद, नागपुर, त्रिपुरा, राजकोट, तिरु चिरापल्ली, चेन्नई और विजयवाड़ा चमकीले वैश्विक शहरों के रूप में दिखाई देंगे। अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों के कारण ही भारत की वैश्विक काराबोर, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, वैश्विक नवाचार के क्षेत्र में विशेष पहचान बनी है। निश्चित रूप से देश में बढ़ते हुए औद्योगीकीकरण और कारोबार विकास के कारण भी शहरीकरण की रफ्तार बढ़ रही है। शहरों की बड़ी आबादी मूलभूत चिकित्सा सेवा से भी वंचित है। सड़क, बिजली, पानी के मोर्चे पर भी समस्याएं बढ़ी हुई हैं। बड़ी संख्या में बच्चे उपयुक्त शिक्षा से वंचित हैं। जरूरी है कि शहर सुनियोजित रूप से विकसित हों। निश्चित रूप से नये शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल उपयुक्त होगा।
ऐसे में हाल ही में इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मद्देनजर हमें हमारे शहरों की चिंता करनी होगी। वैश्विक जरूरतों की पूर्ति करने वाले शहरों के विकास की दृष्टि से भारत के लिए यह एक अच्छा संयोग है कि अभी देश में ज्यादातर शहरी ढांचे का निर्माण बाकी है, और शहरीकरण की चुनौतियों के मद्देनजर देश के पास शहरी मॉडल को परिवर्तित करने और बेहतर सोच के साथ शहरों के विकास का पर्याप्त समय अभी मौजूद है। ऐसे में हमें वियना, मेलबर्न, सिडनी, टोक्यो जैसे गुणवत्तापूर्ण शहरों से सीख लेना होगी। शहरों को जीवन अनुकूल बनाने के लिए शासन-प्रशासन के साथ-साथ सभी वगरे के लोगों द्वारा एकजुट होकर प्रयास करना होगा। ऐसा होने पर निश्चित रूप से हम अधिक विदेशी पूंजी आकर्षित कर पाएंगे। अधिक प्रतिभाओं का लाभ ले पाएंगे और अधिक वैश्विक तकनीकी विशेषज्ञों को आकर्षित कर पाएंगे। ऐसा होने पर ही हम वैीकरण के लिए चमकीले और लाभप्रद शहरों वाले देश के रूप में अपनी पहचान बना पाएंगे। आशा करें कि सरकार देश के शहरों को एक बेहतर सोच, दृढ़ इच्छाशक्ति और सुनियोजित रणनीति से सजाएगी-संवारेगी ताकि शहर राष्ट्रीय और वैश्विक जरूरतों की पूर्ति के अनुरूप लाभप्रद दिखाई दें। देश में जीवन अनुकूलता मापदंडों की बुनियादी ताकत बन जाएं।

जयंतीलाल भंडारी


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