मीडिया : मोदी की जादू की झप्पी

Last Updated 08 Sep 2019 06:58:17 AM IST

‘चंद्रयान टू’ चांद पर उतरा न उतरा, लेकिन पीएम की ‘जादू की झप्पी’ ने उनके दुश्मनों का भी दिल जीत लिया!


मीडिया : मोदी की जादू की झप्पी

चंद्रयान टू की कहानी की जगह मोदी की झप्पी ने ले ली! सारे चैनल इस झप्पी पर लहालोट हो गए। इसे कहते हैं दृश्य बनाना। इसे कहते हैं नया दृश्य बनाकर कहानी को बदल देना। 
बहुत से मानते हैं कि ‘चंद्रयान टू’ के चांद पर उतरने के मीडिया हाइप के बाद अचानक उसकी असफलता से उत्पन्न निराशा की स्थिति को पीएम ने मौके की नजाकत देख, अच्छी तरह संभाला। ‘नाट्य कला’ की भाषा में इसे ‘इंप्रोवाइजेशन’ कहा जाता है, और हिंदी में ‘प्रत्युत्पन्न्मति’ कहा जाता है। ऐसे सीन न पटकथा में लिखे होते हैं, न इनका कोई ‘प्रॉम्प्टर’ होता है, बल्कि इनका निर्माता कुशल अभिनेता ही होता है। ऐसा अभिनेता सीन की आपात् स्थिति के हिसाब से अपने ‘कायिक’ या ‘वाचिक’ अभिनय से, अचानक बनते-बिगड़ते दृश्य को, सही और सटीक डायलाग बोलकर या कायिक अभिनय करके को पटरी पर लाने के लिए करता है, ताकि कहानी बिखरे नहीं।
‘चंद्रयान टू’ की कहानी के अंतिम सीन में मोदी ने यही किया। वे ‘इसरो’ के मेहनती, कुशाग्र किंतु अचानक निराश हुए वैज्ञानिकों को आशा और विश्वास से भरने वाले संबोधन को पूरा करके वापस जा रहे थे कि अचानक ‘इसरो’ के चेयरमैन शिवन जी उनको विदा देते-देते उनके कंधे से लगकर फफक पड़े। मोदी जी ने उनकी विकलता को समझा और उनको गले से लगा लिया। वे उनकी पीठ पर ढांढसभरी थपकी देते रहे,  हिम्मत बनाए रखने के लिए उनकी पीठ पर हाथ फेरते रहे। इस बीच मोदी जी का अपना चेहरा भी कुछ गमगीन दिखा, लेकिन उनने उसे संभाल लिया और जल्दी ही सामान्य मुद्रा में आ गए।

एक लंबी ‘जादू की झप्पी’ वाला यह सीन पीएम मोदी के बारे में बहुत कुछ कह गया। आप मोदी के विरोधी हों या अनुरोधी, भक्त हों या अभक्त, घोर निंदक हों या प्रशंसक, इस एक सीन ने सबको अवाक् कर दिया। इसरो के चेयरमैन ने उनमें एक अभिभावक देखा। इसीलिए वे उनके कंधे पर सिर रखकर रोते रहे। मोदी का भी चेहरा विकल दिखा। ‘चंद्रयान टू’ की असफलता ने उस मीडियाकृत ‘क्लाइमेक्स’ को अचानक ‘एंटीक्लाइमेक्स’ में ला पटका, जिसे मीडिया पिछले बारह घंटे से बनाए जा रहा था। चैनलों ने ‘चंद्रयान टू’ में ‘देशभक्ति’ का पॉपुलर भाव अधिक देखा, ‘वैज्ञानिक उपलब्धि’ बहुत न देखी। उसने ‘चंद्रयान टू’  को  सिर्फ ‘इसरो’ का नहीं रहने दिया था, बल्कि उसे देश की ‘सफलता’ से जोड़ दिया था क्योंकि पिछले कुछ बरसों में अपने मीडिया की बनाई, सबसे अधिक बिकने वाली ‘कमोडिटी’ इस किस्म कर ‘हाइपर देशभक्ति’ ही है, जो एक हल्ले की तरह बनाई जाती है जो न कुछ सोचने देती है, न टोकने देती है। बस, ‘जय जयकार’ करती आती है। असहमति जताने वाले को सीधे देशद्रोही बताकर आगे बढ़ जाती है।
यों भी अपने मीडिया का मुहावरा ‘रीयलिस्ट’ नहीं, बल्कि ‘हाइपवादी’ यानी ‘अतिरंजनावादी’ है। इसी कारण क्लाइमेक्स जब ‘एंटीक्लाइमेक्स’ में बदला तो ‘दर्द’ तो हुआ ही निंदकों की दुनिया में इसकी ‘खिल्ली’ भी उड़ी। इतना ‘हाइप’ न किया गया होता तो  ‘एंटीक्लाइमेक्स’ भी इतना तीखा महसूस न होता। अपना मीडिया कई बार ऐसा कर चुका है। जब भारतीय टीम ‘वर्ल्ड कप’ खेल रही थी तो ज्यदातर खबर चैनल भारतीय टीम को फाइनल से पहले ही विश्व विजेता घोषित कर चुके थे। उनके लिए टीम का मतलब ‘भारत’ था और भारत का मतलब ‘टीम’ था।
और हमने देखा कि जब भारत की टीम पिट गई तो चैनलों ने उसे हाइप से पल्ला झाड़ लिया और अपनी हार दिखाने की जगह जीतने वाले की कहानी कहने लगे। कुछ कुछ उसी तरह से ‘चंद्रयान टू’ का एक दिन पहले से ‘क्लाइमेक्स’ रचने के बाद उसका भी ‘दी ऐंड’ दिखाने लगे। पहले तो चैनल एक से एक उत्तेजक लाइन लगाकर ‘क्लाइमेक्स’ बनाते रहे। जैसे: ‘चंद्रयान तुम आगे बढ़ो। दुनिया तुम्हारे साथ है/इतिहास बनाने में कुछ घंटे बाकी/जो आज सो गया इतिहास बनता देखने से चूक गया/चांद रात/आज जश्न में शामिल होइए/आज चंद्रमा के लिए जागते रहो/हिंदुस्तान जश्न मनाएगा चांद पर तिरंगा लहराएगा/चंद्रयान की कामयाबी की दुआ/चंद्रयान की कामयाबी के लिए गंगा आरती/‘इसरो’ के मॉडल के साथ बनेगा भारत सुपर पॉवर..ऐसे ही दो चैनल चंद्रयान को लेकर कवि सम्मेलन कराने लगे और कवि लोग इसमें भी देशभक्ति को लहराने लगे।
अजीब अंतर्विरोध है कि न इतना ‘हाइप’ होता, न इतनी निराशा होती। लेकिन, फिर पीएम की ‘जादू की झप्पी’ भी तो न होती।

सुधीश पचौरी


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