योजना निर्माण : उचित क्रियान्वयन भी जरूरी

Last Updated 10 Jul 2019 06:34:02 AM IST

जब भी कोई घटना होती है तो आनन-फानन में उसकी रोकथाम पर बहस शुरू हो जाती है। अनेकों योजनाओं का निर्माण ऐसी ही कई घटनाओं के परिणामस्वरूप ही हुआ है।


योजना निर्माण : उचित क्रियान्वयन भी जरूरी

योजनाओं के बनने से यह भ्रम होता है कि अमुक क्षेत्र में अब सुधार होगा किन्तु कुछ समय पश्चात जारी होने वाले आंकड़े धरातल की वास्तविक स्थिति से साक्षात्कार करा देते हैं। योजना का निर्माण एक अलग विषय है और योजना का उचित क्रियान्वयन दूसरा। 
हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लोक सभा में जानकारी दी गई है कि महिला सुरक्षा को लेकर बनाए गए ‘निर्भया फंड’ के कुल बजट का राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने लगभग 20 फीसद फंड ही खर्च किया है। ज्ञात रहे कि 16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद देश भर में आक्रोश देखा गया था। महिला सुरक्षा के मुद्दे को दृष्टि में रख वर्ष 2013 में निर्भया कोष की स्थापना की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य बलात्कार पीड़ितों की सहायता करना और उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करना था। साथ ही महिला सुरक्षा पर केंद्रित योजनाओं में सहायता करना था।
प्रारम्भ में एक हजार करोड़ रुपये इस फंड को आवंटित किए गए किन्तु उसके उपयोग पर ही ध्यान नहीं दिया गया। बात यदि वर्ष 2015 से 2018 के समय की कि जाए तो इस दौरान निर्भया फंड में 854.66 करोड़ रु पयों का आवंटन हुआ। लेकिन इस राशि में से मात्र 165.48 करोड़ रुपये ही राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा खर्च किए गए। शुरुआत में 2013-14 में जहां यह रकम 1000 करोड़ रु पये थी तो वहीं 2014-15 में भी इतनी ही रकम इस फंड में जुड़ गई। इसके बाद 2016-17 और 2017-18 में प्रत्येक वर्ष 550 करोड़ रुपये इस फंड में जुड़ते चले गए। वर्तमान में वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में 50 करोड़ की राशि इस फंड में आवंटित कर दी गई है।

‘निर्भया फंड’ में मुख्य रूप से इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम, केंद्रीय पीड़ित मुआवजा निधि, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध की रोकथाम, वन स्टॉप स्कीम, महिला पुलिस वालंटियर जैसी योजनाओं पर खर्च का प्रावधान था। मगर कई राज्य तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस कोष में से एक भी रुपया इन योजनाओं पर खर्च करना जरूरी ही नहीं समझा। ये राज्य हैं-महाराष्ट्र, मणिपुर और केंद्र शासित राज्य लक्षद्वीप।
कोष में आवंटित धन राशि को खर्च करने वाले राज्यों की बात की जाए तो इस सूची में पहले पायदान पर 59.83 फीसद के साथ चंडीगढ़ है, इसके पश्चात इस क्रम में 56.32 फीसद मिजोरम, 51.68 फीसद उत्तराखंड, 43.23 फीसद आंध्र प्रदेश और 38.17 फीसद राशि खर्च करने के मामले में नगालैंड का स्थान है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस राज्य में हैवानियत और दरिंदगी की यह घटना घटित हुई थी, उस राज्य ने इस राशि का मात्र 0.84 फीसद हिस्सा ही उपयोग किया है। पश्चिम बंगाल तो 0.76 फीसद हिस्सा प्रयोग करके दिल्ली से भी पीछे है। दिल्ली सरकार महिला सुरक्षा के नाम पर फ्री बस-मेट्रो में 1500 करोड़ रुपये सालाना खर्च कर सकती है, लेकिन निर्भया फंड की एक फीसद राशि का भी उपयोग नहीं कर पाती। क्या वाकई में सरकारें महिलाओं की सुरक्षा के प्रति गंभीर हैं या महज राजनीतिक लाभ के लिए फ्री बस-मेट्रो जैसी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है? निर्भया फंड में प्रत्येक जिले में वन स्टॉप सेंटर प्रारम्भ करने की बात कही गई थी किन्तु यह सपना भी अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है। निर्भया कांड के बाद मंत्रालय ने वन स्टॉप सेंटर को महिलाओं के लिए सबसे जरूरी माना था, लेकिन फंड स्थापना के छह वर्ष बीत जाने के बाद भी यह स्थिति क्यों है?
साइबर अपराध रोकथाम पर चर्चा की जाए तो देश के एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने साइबर अपराध की रोकथाम के लिए आवंटित राशि का एक भी पैसा कार्य में नहीं लगाया है जबकि इस योजना के लिए 2017 में केंद्र सरकार ने कुल 93.12 करोड़ रु पये की राशि आवंटित की थी। पिछले छह वर्षो में यह फंड 3600 करोड़ रु पये तक पहुंच चुका है। फंड में राशि की मात्रा निरंतर बढ़ती जा रही है, लेकिन इसके वास्तविक उपयोग की नीयत राज्यों की नहीं दिखती वर्तमान समय के यह तमाम आंकड़े महिला अपराधों के प्रति राज्यों की गंभीरता पर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। एक ओर जहां महिलाओं के प्रति घटित होने वाले अपराधों के आंकड़ोें में वृद्धि हो रही है तो वहीं इन्हें रोकने के लिए जिम्मेदार उपाय उठाने वाला तंत्र अपनी जिम्मेदारी से विमुख होता प्रतीत हो रहा है।

सौरभ जैन


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