बिहार : सियासी बदलाव के संकेत!

Last Updated 24 Jun 2019 07:00:39 AM IST

केंद्रीय मंत्रीमंडल में जनता दल (यू) के शामिल नहीं होने और नीतीश कुमार के इस ऐलान कि हम एनडीए के साथ हैं और हम आगे भी बिहार में साथ चुनाव लड़ेंगे के बावजूद बिहार में सब कुछ सामान्य नहीं है।


बिहार : सियासी बदलाव के संकेत!

एनडीए के भीतर शह-मात की राजनीति के साथ विरोधी दलों में भी वाकयुद्ध के सियासी मतलब हैं।
राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार के जनता दल को केंद्रीय मंत्रीमंडल से बाहर रखे जाने के बाद नीतीश चुप नहीं बैठे हैं। उनकी सतर्क नजर दूसरे चाणक्य (अमित शाह) की चाल पर भी है और इसी वजह से वे लगातार अपनी चाल चलते जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्रीमंडल में भी बिहार से लोक सभा सदस्यों में से पिछड़े, अति पिछड़ों, दलितों की भागीदारी कराकर वे बिहार में एक मैसेज देना चाह रहे थे जो फेल हुआ और उसने महज दो दिन बाद ही अपने मिशन को पूरा करने के लिए राज्य मंत्रीमंडल का विस्तार कर पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों यहां तक की सवर्णो को भी जोड़कर बिहार के आवाम को एक मैसेज देने का काम किया। यह भी कहा गया कि भाजपा को भी मंत्रीमंडल में शामिल  होने का न्योता दिया गया था परन्तु भाजपा उससे अलग रही। इसी क्रम में दिल्ली से लौटते ही नीतीश कुमार ने अपने बयान में यहां तक कह डाला कि एनडीए की जीत बिहार के पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलित मतदाताओं की एकजुटता से हुई। कोई भ्रम नहीं पाले की जीत उन्हीं के कारण हुई।

इसके अतिरिक्त जद (यू) के वरिष्ठ नेता के.सी. त्यागी का बड़ा बयान धारा 370 और 35 ए को जम्मू-कश्मीर से हटाने के मामले में आया कि जद (यू) दोनों धारा को हटाने में सरकार के साथ नहीं है, हमारा उस पर विरोध जारी रहेगा। इस प्रकार के बयानों का भी सियासी मतलब है। इसी बीच रमजान के मौके पर नीतीश कुमार द्वारा दिए गए इफ्तार पर केंद्रीय मंत्री  गिरिराज सिंह का नीतीश पर कटाक्ष आग में घी का काम किया। फिर जनता दल (यू) चुप कैसे रहती? उसके कमान से तीर लगातार निकलते रहे, जो कहीं-न-कहीं सतारूढ़ भाजपा के सियासी चाल पर हमलावर कहे जा सकते हैं। जद (यू) के राष्ट्रीय  महासचिव  श्याम रजक ने दूसरा बयान दे डाला कि हमारी पार्टी  तीन तलाक के मुद्दे पर भाजपा के साथ खड़ी नहीं रहेगी। वैसे लोक सभा चुनाव  के समय भी एक विधान परिषद  सदस्य  ने बयान दे डाला  था कि एनडीए को बहुमत नहीं मिलने पर नीतीश कुमार होंगे पीएम उम्मीदवार और उनके नाम पर एका हो सकती है और बहुमत का गणित सुलझाया जा  सकता है। इस बीच जद (यू) के राष्ट्रीय कार्यसमिति की पटना में आयोजित  बैठक में भी यह निर्णय लिया गया कि जद (यू) झारखंड, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ नहीं बल्कि अपने बलबूते लड़ेगी, जबकि बिहार में वह नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी। इधर, केंद्रीय मंत्रीमंडल से अलग रहने के बाद से ही जद (यू) नेताओं द्वारा बिहार को विशेष राज्य का  दर्जा दिलाने की पुरानी मांग तेज होने लगी थी और 15 जून को नीति आयोग की बैठक में भी नीतीश ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग उठाई और उसके औचित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बिहार का विकास होगा।
राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित नीति आयोग की  बैठक में नीतीश कुमार ने रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट का हवाला  देते हुए कहा  कि उस रिपोर्ट में भी बिहार को पिछड़ा राज्य बताया गया है। यह तो केंद्र के पाले में है कि वह इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है परन्तु नीतीश कुमार ने बिहार वासियों को एक संदेश जरूर दे दिया कि वह बिहार के हित के लिए सभी फ्रंट पर खड़े है। इसके अतिरिक्त बिहार में 60 वर्ष या उससे ऊपर के सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए वृद्धावस्था पेंशन का ऐलान और वृद्ध माता-पिता  के सेवा की जिम्मेदारी पुत्र व अन्य करीबी परिजनों पर डालते हुए समाहर्ता स्तर पर शिकायत  और  शिकायत के निवारण की व्यवस्था का भी ऐलान  कर सीएम ने बुजुगरे को साधने का निर्णय लिया है। जनता और राजनीतिक दलों की नब्ज पहचानने में माहिर नीतीश कुमार की सक्रियता और उनके दल के नेताओं की गतिविधियां सामान्य नहीं लगती। उसका संबंध 2020 के विधानसभा चुनाव की तैयारी से लगता है। उन्हें लगता है कहीं भाजपा  से रिश्ता टूटा तो अपनी चुनावी तैयारी रहनी ही चाहिए। यह भी चर्चा है कि कांग्रेस से भी नीतीश जी की बात हो रही है। वैसे जद (यू) में भी दोनों विचार  के लोग हैं। कुछ भाजपा  के ही साथ रहने और कुछ नेता महागठबंधन से जुड़ने की मंशा रखते हैं परन्तु अंततोगत्वा जद (यू) के नेता नीतीश कुमार के निर्णय के ही साथ रहेंगे। इधर नीतीश जी की नजर राजद के साथ बिहार के अल्पसंख्यक समुदाय पर भी है।
चर्चा यह भी है कि राजद के भी कुछ नेता नीतीश कुमार के  साथ तालमेल की राय रखते है। इधर, लोक सभा चुनाव संपन्न होने और राजद की करारी हार के बाद भूमिगत राजद नेता  तेजस्वी  यादव के बारे में भी अपुष्ट खबर है कि वह दिल्ली में ही हैं और भाजपा  नेताओं के संपर्क में हैं। उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं से मिलवाया भी गया है, जबकि राजद के वरिष्ठ नेताओं को भाजपा से परहेज है। वे नीतीश कुमार के साथ गठबंधन चाहते हैं क्योंकि वे सभी समाजवादी विचारधारा से  जुड़े रहे हैं और भाजपा  के बजाय नीतीश  कुमार को तरजीह देने के पक्षधर हैं। भाजपा के साथ  मंत्रीमंडल में शामिल नहीं होने के बाद  महागठबंधन से नीतीश के रिश्ता बनाने को लेकर कई  वरिष्ठ राजद नेता का बयान भी आया था। इन सभी मुद्दों पर जेल मे बंद लालू प्रसाद  यादब की अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। चर्चा है कि तेजस्वी बगैर लालू से विमर्श किए  अपनी रणनीति बना रहे हैं।
इस बात को बल इससे भी मिलता है कि लालू जी के जन्मदिन पर  तेजस्वी न पटना, न दिल्ली में दिखे। न ही रांची में उनसे मिले। तेजस्वी को भी राजद के उनके सहयोगियों का समर्थन प्राप्त है। उधर, भाजपा की बिहार पर सतर्क नजर है। वह जानती है कि नीतीश कुमार को किसी से रिश्ता तोड़ना होता है तो महीनों पहले से भूमिका बनाते हैं। जब राजद से नाता तोड़ना था तो उस समय के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को महीनों से पब्लिक डोमेन में जाने की नसीहत दे रहे थे। बिहार में क्या खिचड़ी पक रही है, यह तो समय बताएगा परन्तु इतना तय लगता है कि नरेन्द्र मोदी की जीत का असर सभी दलों पर है और सभी अपने तरीके से गुणा-गणित में लग गए हैं। ये सब बिहार की सियासत में भूचाल आने के संकेत दे रहे हैं।

प्रो. आनंद किशोर


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