राजस्थान : मनमुटाव की परिणति कहां तक

Last Updated 06 Jun 2019 06:14:14 AM IST

महज छह महीने पहले राजस्थान में भाजपा को सत्ताच्युत कर काबिज होने वाली कांग्रेस को आखिर क्या हो गया कि वह लोक सभा चुनाव में कुल 25 सीटों में से एक भी सीट नहीं जीत पाई? यह एक बड़ा व अहम सवाल है, जिसका जवाब ढूंढ़ना कांग्रेस के लिए बहुत जरूरी हो गया है।


राजस्थान : मनमुटाव की परिणति कहां तक

आरोप-प्रत्यारोप से कुछ भी नहीं होने वाला है। जरूरत है जिम्मेदारी तय करने की ताकि पार्टी के भीतर साफ मैसेज जा सके कि अमुक-अमुक कारणों और व्यक्तियों की वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। आरोपों-प्रत्यारोपों पर तत्काल रोक लगाना होगा ताकि पार्टी की जड़ें और कमजोर नहीं हो जाए।
ताजा आरोप राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने ही सरकार के उप मुख्यमंत्री व राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट पर लगाया है और जोधपुर लोस सीट से अपने बेटे वैभव गहलोत की हार का ठीकरा पायलट के ऊपर फोड़ा है। इसका जवाब देना आसान नहीं है, लेकिन जोधपुर लोक सभा चुनाव परिणाम पर नजर डालने पर बहुत कुछ इससे जुड़ी जानकारियां हासिल हो सकती हैं। जोधपुर सीट से भाजपा के गजेंद्र सिंह शेखावत ने वैभव गहलोत को 2.7 लाख से भी अधिक मतों से हराया है।
इतना ही नहीं, वैभव अपने पिता की सरदारपुरा विधानसभा सीट में भी 19,000 वोटों से पीछे रहे हैं और गहलोत अपने पोलिंग बूथ पर भी 400 से अधिक वोटों से पीछे रहे, जबकि हकीकत यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 1998 से वहां से जीतते आ रहे हैं। वह यहां से पांच बार सांसद भी रह चुके हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो इतने बड़े कद्दावर नेता के बेटे का अपने सालों पुरानी विधानसभा सीट व पोलिंग बूथ तक से पिछड़ना बड़ी चिंता की बात है।

जोधपुर लोक सभा सीट पर हार इस लिहाज से भी चिंतनीय है कि इस लोक सभा के तहत आने वाली छह विधानसभा सीटों पर दिसम्बर में हुए चुनाव में कांग्रेस विजयी रही थी। यानी छह-छह विधायकों के रहने के बावजूद हार का सामना करना आश्चर्यजनक तो है ही। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि राजस्थान में कांग्रेस का प्रदर्शन साल 2014 के लोक सभा चुनाव से भी खराब रहा है और यह परिणाम इस लहाज से भी आश्चयर्जनक है कि महज पांच-छह महीने पहले ही यही कांग्रेस राज्य की कुल 200 सीटों में से 99 सीटें हासिल कर राज्य की कमान संभालने में सफल रही। राज्य में नई सरकार होने के बावजूद लोक सभा चुनाव में इस तरह का खराब प्रदर्शन आश्चर्यजनक है। इसके लिए राजस्थान कांग्रेस में आपसी मनमुटाव को प्रमुख कारण माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि राजस्थान में कांग्रेस के नेता मंच, सभा, रैलियों में अपनी एकता की तस्वीर तो पेश करते रहे, लेकिन हकीकत इससे ठीक उलट थी। पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। हालांकि इसमें भी दो राय नहीं कि इन चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा अच्छी रणनीति तैयार की और इसका उसे फायदा भी मिला। वहीं राज्य में दो बड़े कांग्रेस नेताओं के बीच मनमुटाव की खबरें सामने आ चुकी हैं। इससे पहले भी मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों में तनाव हो चुका है, जो अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। कांग्रेस हाईकमान को अगर आगे जीत की राह प्रशस्त करनी है तो इस मसले पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना होगा। जानकार बताते हैं कि इस दिशा में कांग्रेस आलाकमान विचार-मंथन कर रही है और हाल-फिलहाल राजस्थान को लेकर कांग्रेस की तरफ से कोई बड़ा फैसला आ जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोक सभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अपना रुख साफ कर दिया था और साथ ही इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई थी कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने अपने-अपने बेटों को स्थापित करने के लिए पार्टी हित को नजरअंदाज किया है। कांग्रेस अध्यक्ष का यह कहना उन नेताओं के लिए स्पष्ट संकेत है, जिन्होंने अपने-अपने बेटों के लिए ऐसा किया है। अब देखने वाली बात है कि इस दिशा में कांग्रेस हाईकमान क्या फैसला लेते है? लेकिन जानकारों की मानें तो देर-सवेर जरूर कांग्रेस इस दिशा में कोई कड़ा फैसला लेगी ताकि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच साफ-साफ मैसेज जा सके कि पार्टी के हित का ख्याल नहीं रखने वालों को पार्टी बिल्कुल नहीं बख्शेगी चाहे पार्टी का कोई बड़ा नेता ही क्यों न हो?

कुमार समीर


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