पानी का उपयोग : सतर्कता से ही टलेगा संकट
केंद्र ने बांधों में पानी के ‘संवेदनशील’ स्तर तक गिर जाने के बाद हाल ही में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु को सलाह जारी करते हुए कहा है कि वे पानी का समझदारी से इस्तेमाल करें।
पानी का उपयोग : सतर्कता से ही टलेगा संकट |
गौरतलब है कि राज्यों को ‘सूखा सलाह’ तब जारी किया जाता है, जब जलाशयों में पानी का स्तर बीते दस साल के जल भंडारण के औसत से 20 प्रतिशत कम हो जाता है। केंद्र सरकार के अंतर्गत काम करने वाली संस्था केंद्रीय जल आयोग ने अपनी सलाह में कहा है कि ये राज्य पानी का प्रयोग तब तक केवल पीने के लिए ही करें जबतक बांधों में पुनर्भरण नहीं हो जाता।
केंद्रीय जल आयोग की ओर से जारी यह परामर्श निश्चित रूप से खतरे का संकेत देती है।
और भविष्य में विकराल रूप में सामने आने वाली जल संकट के इस खतरे और चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के साथ-साथ नागरिकों को भी मिल कर काम करना होगा और जल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यूं तो पानी की समस्या देश में अब हर मौसम में आम बात हो गई है लेकिन गर्मी का मौसम शुरू होते ही देश में जल संकट विकराल रूप धारण कर लेता है। मीडिया में जल संकट से जुड़ी खबरों को उपयुक्त स्थान नहीं मिल पाता है, बावजूद इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि देश के कई सारे इलाके में लोगों को पेयजल तक के लिए जूझना पड़ता है।
आयोग ने अपने परामर्श में कहा भी है कि जब तक हालात ना सुधरे तब तक हमें इन पानी का इस्तेमाल केवल पेयजल के रूप में ही करना है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां पर लोग मवेशियों को भी पालते हैं और उन्हें चारा-पानी भी देना होता है। जल आयोग के परामर्श पर अगर गौर करें तो निश्चित रूप से यह एक विकरालता का संकेत देता है। यह बताता है कि इस वक्त ना तो आप कृषि कार्य करें और ना ही मवेशियों पर ध्यान दें। ऐसे में सूखा पड़ेगा और अनाज की कीमत आसमान छूएगी और फिर गरीब लोगों की माली हालात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही मैदानी इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया है। बारिश भी लंबी अवधि के औसत से 21 फीसद तक कम हुई है। देश में पानी को लेकर इमरजेंसी जैसे हालात बनते जा रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि प्रकृति के गोद में बसे उत्तराखंड जैसे राज्य में भी पानी से जुड़ी हुई काफी समस्याएं सामने आती रहती हैं।
दिल्ली जैसे महानगर में भी जल संकट आम बात है और आज भी यहां के कई इलाके टैंकरों पर निर्भर हैं। केंद्रीय जल आयोग देश के 91 मुख्य जलाशयों में पानी के भंडारण की निगरानी करता है। इसके द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अभी पानी का कुल भंडार 35.99 अरब घनमीटर उपलब्ध है, जो इन जलाशयों की क्षमता का 22 फीसद है। सभी 91 जलाशयों की कुल क्षमता 161.993 अरब घनमीटर है। हमने प्रकृति से उपहार में मिले पानी जैसे चीजों का महत्व नहीं समझा। शायद यही वजह है कि हमें अपने देश में एक इलाके से दूसरे इलाके में पानी पहुंचाने के लिए ट्रेन का टैंकर चलाना पड़ता है।
हमारे देश का अधिकांश हिस्सा सूखा प्रभावित हो चला है। साथ ही देश के कई हिस्से में लोगों को पीने का पानी लाने के लिए कई मीलों तक पैदल चलना पड़ता है। नौ मई को समाप्त हुए सप्ताह के अनुसार अब इन जलाशयों में 24 फीसद पानी है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से में पानी को लेकर दिक्कत हो सकती है। पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात और महाराष्ट्र राज्य शामिल हैं। यहां कुल 27 जलाशय हैं और इनमें से 10 गुजरात और 17 महाराष्ट्र में हैं। इनकी कुल क्षमता 31.26 अरब घन मीटर है। ऐसे में समय रहते अगर हम अभी भी सचेत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में पानी एक विकराल संकट का रूप ले लेगी। हमें जल संरक्षण के बारे में गंभीरता से विचार करना ही होगा। साथ ही इस्तेमाल हो चुके पानी का फिर से इस्तेमाल करने योग्य बनाने के लिए इसके शोधन प्रक्रिया पर तेजी से काम करना होगा।
हमने पानी के संरक्षण में इतनी लापरवाही बरती है कि इसका खामियाजा हमें जल संकट के रूप में भुगतना पड़ रहा है। ऐसे में हमें भूजल स्तर बढ़ाने और जल संरक्षण के लिए नित-नयी योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए भविष्य में सावधानीपूर्वक काम करना होगा। जल संरक्षण एक जैसा काम है, जो किसी एक व्यक्ति या संस्था के वश का काम नहीं है। ऐसे में सरकार के साथ-साथ नागरिक समाज एवं संगठनों को मिल कर काम करना चाहिए ताकि भविष्य में होने वाले जल संकट को दूर किया जा सके। इन प्रयासों से हमें काफी लाभ मिलेगा।
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