सरोकार : इंसानी करतूतें जैव प्रजातियों पर भारी
हमारा जैव मंडल एक विशाल इमारत की तरह है। हम इंसान इस इमारत के सबसे ऊपरी मंजिल पर बैठे हैं। अगर हम इस इमारत में से जीवों की कुछ प्रजातियों को मिटा भी देते हैं, तो इमारत से सिर्फ कुछ ईटें ही गायब होंगी, इमारत तो फिर भी खड़ी रहेगी।
सरोकार : इंसानी करतूतें जैव प्रजातियों पर भारी |
परंतु यदि लाखों-लाख की संख्या में जीव-जातियां लुप्त हो जाती हैं तो जैव मंडल रूपी इस पूरी इमारत के धराशायी होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। अगर इमारत ढहती है तो सबसे ऊंची मंजिल पर बैठे प्राणी (इंसान) का वजूद भी खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए आज दुनियाभर के तमाम वैज्ञानिक और इंसानियत के हिमायती जैव प्रजातियों के खात्मे को लेकर खासे चिंतित नजर आते हैं।
बीते 6 मई को जारी संयुक्त राष्ट्र और 132 देशों के समर्थन से तैयार एक आकलन रिपोर्ट में कहा गया है कि मनुष्य उसी प्रकृति को बेहद तेजी से नष्ट कर रहा है, जिस पर उसका अस्तित्व निर्भर है। इंसानी करतूतों मसलन जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और जंगलों की अंधाधुंध काटाई वगैरह का खमियाजा जैव एवं पादप प्रजातियां भुगत रही हैं। रिपोर्ट में प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र पर आर्थिक विकास के प्रभाव का विशेष रूप से विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट जारी करने वाली टीम के चेयरमैन रॉबर्ट वॉटसन ने कहा, ‘पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य जिस पर हम और अन्य सभी प्रजातियां निर्भर हैं, पहले से कहीं अधिक तेजी से खराब हो रहा है। हम अपनी अर्थव्यवस्था, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता की नींव को ही मिटा रहे हैं।’
पिछले 100 वर्षो में, रीढ़धारी प्राणियों की 200 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। यानी प्रति वर्ष औसतन 2 प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, मगर पिछले बीस लाख वर्षो में जैविक विलुप्ति की दर को देखें तो 200 प्रजातियों को विलुप्त होने में सौ नहीं बल्कि दस हजार वर्ष लगने चाहिए थे। वास्तव में, यह रिपोर्ट इससे कहीं आगे जाकर चेतावनी देते हुए कहती है कि पशुओं और पौधों की लगभग 10 लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इनमें से हजारों प्रजातियां आने वाले दशकों में ही विलुप्त हो जाएंगी। आकलन रिपोर्ट में विलुप्त होने की इस दर को अब तक के मानव इतिहास में सबसे अधिक बताया गया है!
मधुमक्खियों के खात्मे की ही कल्पना लीजिए। मधुमक्खियों के बिना परागण नहीं होगा, फसलें और पेड़ नहीं फलेंगे और पेड़ नहीं होंगे तो कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में कौन बदलेगा। फिर इंसान और दूसरे जीव सांस कैसे ले पाएंगे। इसलिए ऐसी कई प्रक्रियाएं हैं जिनमें से किसी एक जीव के गायब हो जाने से अप्रत्याशित परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। पिछले साल प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया था कि पृथ्वी एक और वैश्विक जैविक विलोपन घटना की गिरफ्त में है। वैश्विक जैविक विलोपन उस घटना को कहते हैं, जिसके दौरान धरती पर मौजूद 75 से 80 प्रतिशत जीवों की प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं। पृथ्वी अब तक वैश्विक विलोपन की पांच घटनाओं को झेल चुकी है। उक्त अध्ययन बताता है कि हम छठे वैश्विक विलोपन के दौर में प्रवेश कर रहे हैं। आशंका जताई गई है कि इसकी चपेट में इंसान भी आएंगे। इसी तरह की घटना आज से 6 करोड़ 50 लाख साल पहले हुई थी, जब संभवत: एक उल्कापिंड के टकराने से धरती से डायनासोर विलुप्त हो गए थे।
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