दलहन उत्पादन : समन्वित रणनीति जरूरी

Last Updated 16 Jan 2019 03:05:40 AM IST

कृषि क्षेत्र का विकास आजकल सर्वाधिक चर्चा में है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत द्वारा पिछले 2-3 वर्षो से दलहन क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की नीतियों के परिणामों का विश्लेषण करना प्रासंगिक है।


दलहन उत्पादन : समन्वित रणनीति जरूरी

भारत में दलहन का वार्षिक उत्पादन कई वर्षो से 15-18 मिलियन टन के आसपास स्थिर चल रहा था, जबकि इसकी घरेलू मांग निरंतर बढ़ती जा रही थी। वर्ष 2015-16 में 23 मिलियन टन की मांग के सापेक्ष उत्पादन 16.35 मिलियन टन था। खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के दृष्टिकोण से हर वर्ष वृहद स्तर पर दलहन आयात भी करना पड़ता था। इससे निष्कर्ष स्वत: निकाला जा सकता है कि पूर्व की कृषि नीतियां दलहन उत्पादन बढ़ाने में सफल नहीं हो पा रही थीं।
एक समन्वित रणनीति का क्रियान्वयन आवश्यक हो गया। प्रधानमंत्री के दिशानिर्देश पर कैबिनेट सचिव के स्तर पर गहन विचार-विमर्श के पश्चात समन्वित रणनीति का कार्यान्वयन शुरू हुआ। इसके मुख्य आयामों में उत्पादन/उत्पादकता बढ़ाना, उत्पाद के लिए समुचित दाम, उत्पाद के लिए आकषर्क बाजार विकसित करना तथा आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े परिवारों को सस्ती दरों पर दालें उपलब्ध कराना सम्मिलित था। परिणामस्वरूप दलहन का उत्पादन जो 2010-11 से 2014-15 तक लगभग गतिहीन रहते 2015-16 में 16.35 मिलियन टन था, वह 2016-17 में बढ़कर 23.13 मिलियन टन तथा 2017-18 में 25.23 मिलियन टन हो गया। इस रणनीति के दो सकारात्मक परिणाम परिलक्षित हुए हैं। पहला, दलहन के बाजार मूल्य में गिरावट परिलक्षित नहीं हुई जिससे किसानों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य प्राप्त हुआ। साथ ही, दलहन का मजबूत बफर स्टॉक विकसित होने से मूल्य नियंत्रण को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सका। निर्णय लिया गया कि न्यूनतम 20 लाख टन का बफर स्टॉक सदैव बना रहेगा। इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि एक ओर किसानों को उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो रहा है, वहीं उपभोक्ताओं को भी 2015-16 के बाद वाजिब मूल्य पर दलहन उत्पाद निरंतर प्राप्त हो रहा है। कालाबाजारी पर भी रोक लगी है।
किसानों को उनके उत्पादन का समुचित मूल्य मिलने से ही दलहन उत्पादन में आई वृद्धि को स्थायी रखा जा सकता है। इसीलिए 2018-19 में सरकार द्वारा एक समन्वित योजना ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (पीएम-आशा) आरंभ की गई है। इसके अंतर्गत राज्यों को दलहन की खरीद के लिए मूल्य समर्थन का विकल्प दिया गया है, जिसमें केंद्रीय एजेंसियां न्यूनतम समर्थन मूल्य राज्य के कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत तक किसानों से खरीद कर सकेंगी। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, ओडिशा, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में इस अभियान के अंतर्गत दलहन उत्पादनों की खरीद की जा रही है। इससे किसान दलहन के उत्पादन में सतत रूप से प्रोत्साहित होंगे। दलहन के उत्साहवर्धक उत्पादन को दृष्टिगत रखते हुए व्यापार नीति में भी किसान हित के निर्णय लिए गए हैं। दालों के निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक छूट दी गई हैं। सफल खरीद के कारण दलहन का स्टॉक भारी मात्रा में उपलब्ध होने के पश्चात यह निर्णय लिया गया कि मूल्य स्थायित्व के लिए आवश्यक बफर के अतिरिक्त, शेष स्टॉक को जनकल्याण के कार्यक्रमों में उपयोग में लाया जाएगा। सरकार नें राज्यों को विकल्प दिया है कि जन कल्याण की योजनाएं जैसे प्राथमिक विद्यालय में संचालित मध्याह्न भोजन योजना, आंगनबाड़ी केंद्रों के पुष्टाहार तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि के माध्यम से दालों को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराएं। इस हेतु केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को 15 रु. प्रति किलो की केंद्रीय सब्सिडी पर दालों को उपलब्ध कराया जा रहा है।

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात तथा केरल जैसे राज्यों ने इस कार्यक्रम के अंतर्गत सस्ती दरों पर दालों का वितरण विभिन्न योजनाओं में करने का निर्णय लिया है। यह रणनीति ग्रामीण क्षेत्र के परिवारों को पोषण सुरक्षा तथा स्टंटिंग एवं वेस्टिंग जैसी कुपोषण की प्रवृत्तियों पर भी रोक लगाने हेतु कारगर साबित होगी। इस प्रकार समन्वित रणनीति से कई समस्याओं के एक साथ निराकरण का सफल प्रयास किया गया है। देश को दलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने, महंगाई पर नियंत्रण तथा सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर दलहन उत्पाद उपलब्ध कराने के जनकल्याणकारी उद्देश्यों की पूर्ति की जा रही है।  स्पष्ट है कि समन्वित नीति व रणनीति से कृषि क्षेत्र में दरपेश चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए उपभोक्ताओं और उत्पादकों, दोनों के हितों की रक्षा की जा सकती है।

देवेश चतुर्वेदी


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