बांग्लादेश : अजेय होतीं हसीना

Last Updated 02 Jan 2019 03:32:28 AM IST

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने लगातार तीसरी बार संसदीय जीत हासिल कर बांग्लादेश की राजनीति में एक नया रिकॉर्ड दर्ज किया है।


बांग्लादेश : अजेय होतीं हसीना

जीत का फासला 2008 और 2014 से भी ज्यादा है। सत्तारूढ़ महागठबंधन ने 266 और उसके सहयोगी जातीय पार्टी ने 21 सीटें जीती हैं। विपक्षी नेशनल यूनिटी फ्रंट को सिर्फ  7 सीटें ही मिलीं। बांग्लादेश के विपक्षी एनयूएफ गठबंधन ने आम चुनाव के इन नतीजों को खारिज कर दिया है और एक निष्पक्ष कार्यवाहक सरकार के तहत नये सिरे से चुनाव कराने की मांग की है। एनयूएफ के घटक दलों में बीएनपी, गोनो फोरम, जातीय समाजतांत्रिक दल, नागरिक वोइका और कृषक श्रमिक जनता दल लीग शामिल थे। विपक्षी गठबंधन के नेता कमल हुसैन ने चुनाव को फर्जी और गलत बताया है, जबकि विपक्षी दलों की दलील में कोई जान नहीं है। चुनाव में सार्क, इस्लामिक देशों के प्रतिनिधि सहित भारत के ऑब्जर्वर शामिल थे। कहीं से भी यह बात नहीं उठी कि चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। दरअसल, हार और जीत के कारण और हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी की नेता बेगम खालिदा जिया भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में थीं। इस चलते विपक्षी पार्टी पूरी तरह से तितर-बितर थी। शेख हसीना के 10 वर्षो के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था लीक पर आती हुई दिखाई दी। सामाजिक समरसता में भी इजाफा हुआ है, लेकिन कई मुसीबतें भी पैदा हुई हैं।

जो भी हो, भारत शेख हसीना की जीत से बहुत उत्साहित है। भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों की कई योजनाएं बांग्लादेश की सहभागिता पर निर्भर हैं। दक्षिण एशिया के अन्य देश भी चुनाव परिणाम से खुश हैं। निश्चित रूप से पाकिस्तान और चीन इस जीत से चोटिल होंगे। इस परिप्रेक्ष्य में शेख हसीना की इस जीत के मायने क्या है? इसका आंतरिक और बाह्य जगत पर क्या असर होगा, इसकी चर्चा जरूरी है। शेख हसीना के 10 वर्षो के कार्यकाल में बांग्लादेश की प्रगति काबिलेतारीफ रही है। आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत से ऊपर  रही है। इसमें बांग्लादेश का दक्षिण और पूर्वी एशिया के बीच स्थित होना भी एक कारण है। दोनों खंडों के बीच व्यापारिक समीकरण को जोड़ना न केवल बांग्लादेश के लिए हितकर है, बल्कि आसियान देश भी इसका लाभ उठा रहे हैं। चूंकि इस समीकरण की शुरुआत का आरम्भिक वर्ष है, इसलिए भी इस समीकरण का बने रहना बहुत जरूरी है। बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी इसे सम्प्रभुता का उल्लंघन मानती है। ऐसे में अगर आवामी लीग की जगह बीएनपी की सरकार बनती तो बन रहे अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक योजनाएं खटाई में पड़ जातीं। बिम्सटेक और बंगाल की खाड़ी में निर्मिंत ब्लू इकोनॉमी पर भी ताला जड़ जाता। इस लकीर में भूटान, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और मालदीव की आर्थिक व्यवस्थाएं एक साथ जुड़ी हुई हैं।
2008 तक बांग्लादेश में बेगम खालिदा जिया की सरकार थी। बेगम जिया के बड़े बेटे ने जमात-ए-इस्लामी पार्टी से गठजोड़ बनाया था। तकरीबन 2001 से लेकर 2007 तक बांग्लादेश में इस्लामिक उन्माद चरम पर था, पाकिस्तान समर्थित ताकतें भी बांग्लादेश में हावी थीं। अल्पसंख्यकों का बड़े स्तर पर कत्लेआम हुआ। लाखों की संख्या में हिन्दू वहां से भागकर भारत आ गए। लोकतांत्रिक संस्थाएं टूटती चली गई। शेख हसीना ने उन्हें बहुत हद तक बचाने का काम अपने कार्यकाल में बचाने का काम किया है। शेख हसीना की अपील थी कि ‘धैमो जन-जन और उत्सव शोबर’ अर्थात धर्म व्यक्तिगत है और उत्सव सबके लिये है। यह सच है कि बांग्लादेश एक इस्लामिक देश है, लेकिन इस्लामिक क्रूरता जो बीएनपी के कार्यकाल में आ गई थी, उसको हरसंभव कम करने में आवामी लीग सरकार सफल रही है। बांग्लादेश की राजनीति के कई मोड़ हैं। राष्ट्र-निर्माण की दो धाराएं एक साथ निकलीं। 1969 के पाकिस्तान के आम चुनाव में मुजीबुर्रहमान की जीत हुई, जिसे पाकिस्तान की सैनिक हुकूमत ने मानने से इनकार कर दिया, उसके बाद जो हुआ, वह जिंदा इतिहास है। बांग्लाभाषियों के उत्पीड़न के साथ जिस राष्ट्रवाद की नींव मुजीबुर्रहमान ने रखी थी, वह 1975 के सैनिक तख्तापलट के साथ ध्वस्त हो गई। फिर धर्म निर्देशित राष्ट्रवाद जोर पकड़ने लगा, जिसके चलते पाकिस्तान और बांग्लादेश का अंतर मिटता सा गया। इसी आड़ में पाक समर्थित कई इस्लामिक समूह बांग्लादेश में सक्रिय हो गए। शेख हसीना सरकार ने इस पर रोक लगाने का काम किा और भी उल्लेखनीय काम किये।  भारत से बेहतर संबंध की वजह से बांग्लादेश की आर्थिक व्यवस्था निरंतर आगे बढ़ती जा रही है। राजनीतिक मतभेद मसलन; घुसपैठियों की तादाद पर भी अंकुश लगा है।
फिर भी कई मुश्किलें पिछले एक दशक में पैदा हुई हैं, जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती; मसलन, संसदीय लोकतंत्र का ढांचा भी कमजोर हुआ है। बांग्लादेश की राजनीति में 1991 के बाद दो दलों की परंपरा कायम हुई, लेकिन सत्तापक्ष हरसंभव इस प्रयास में रहा है कि विपक्षी खेमे को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया जाए। इस पहल में शेख हसीना भी पाक साफ नहीं रही हैं। लोकतंत्र में विरोधी दल की अपनी प्रतिष्ठा है, उसको तोड़ना देश की लोकतांत्रिक परम्परा के लिए उचित नहीं है। शेख हसीना ने लिबरेशन आर्मी सिद्धांत को अपना भीष्म प्रतिज्ञा बना लिया है, इससे देश दो खेमों में बंट-सा गया है। हजारों लोग जेलों में सड़ रहे हैं, कई सूली पर भी चढ़ाये जा चुके हैं। दूसरा कारण संस्थाओं के टूटने का है। लोकतंत्र के आधारभूत स्तंभ  न्यायालय और संसद पूरी तरह से निष्पक्ष होकर काम नहीं करते, इसलिए लोगों में इस व्यवस्था को लेकर मोहभंग जैसी स्थिति पैदा होने लगी है। बांग्लादेश में चुनाव इतना पेचीदा हो गया था कि चुनाव सम्पन्न करने के लिए एक कार्यकारी सरकार का गठन होता था। इस बार ऐसा नहीं  हुआ, इसलिए विपक्षी पार्टियां पुन: चुनाव की मांग कर रही हैं। चूंकि शेख हसीना आने वाले 5 वष्रो के लिए पुन: प्रधानमंत्री चुनी गई हैं, इसलिए उनसे बांग्लादेश की उम्मीद बेइंतहां हैं। उन्हें नाहक टकराव को रोकना होगा। देश का विकास इसी में निहित है। बांग्लादेश की स्थिरता व उन्नति भारत के लिए लाभप्रद है। पूर्वोत्तर का विकास भी बांग्लादेश के सहयोग पर टिका हुआ है। इसलिए भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि भारत बांग्लादेश सम्बन्ध और मजबूत होगा। यह सच है कि चीन 2005 से ही बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक मित्र देश है। पर उम्मीद है कि शीघ्र ही भारत उससे यह स्थान ले लेगा। इसलिए कि शेख हसीना चीन के डेब्ट ट्रैप में फंसना नहीं चाहतीं।

प्रो. सतीश कुमार


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