फसल लागत : घटाने की जुगत जरूरी

Last Updated 25 Dec 2018 03:13:44 AM IST

किसानों की कर्ज माफी समाधान नहीं, महज कुछ समय के लिए राहत देने वाला कदम है।


फसल लागत : घटाने की जुगत जरूरी

किंतु यह कदम किसान को स्वावलंबी और सशक्त नहीं बना सकता। अत: भारत की कृषि समस्याओं के समाधान की दृष्टि इसकी बहुत तारीफ भी नहीं की जा सकती। यह सच है कि न्यूनतम समर्थन खरीद मूल्य और सरकारी खरीद..दोनों की क्षमता बढ़ाने तथा किसानों को न्यूनतम मूल्य से कम  में  फसल बेचने के लिए विवश करने वाले खुले बाज़ार पर सख्ती बरतकर किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता है। उत्पादक से उपभोक्ता के बीच सक्रिय दलालों के मुनाफे को नियंत्रित करना भी एक आवश्यक कदम है। किंतु कॉरपोरेट नियंत्रित वर्तमान राजनीतिक दौर को देखते हुए जन-दबाव बनाये बगैर ये कदम संभव नहीं दिखते हैं। अत: इसके लिए जन दबाव बनाने के जो भी शांतिमय तरीके हों; आजमाने चाहिए।
लेकिन कृषि, कर्ज और बाज़ार का गठजोड़ बनाते हुए हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि सरकार और बाज़ार..दोनों ही कभी भी किसान के नियंत्रण में नहीं रहे। जब तक किसान अपनी फसल के भण्डारण की स्वावलंबी क्षमता हासिल नहीं कर लेता; आगे भी ऐसी कोई संभावना नहीं होने वाली। लिहाजा, सरकार, कर्ज और बाज़ार के भरोसे खेती करना अब पूरी तरह जोखिम भरा सौदा है। यहां गौर करने की बात है कि नफे-नुकसान के गणित में लागत भी एक अन्य आवश्यक मद है। फसल उत्पादन लागत में घटोत्तरी करना भी मुनाफा बढ़ाने का एक स्थाई उपाय है। इस उपाय की खासियत यह है कि इसकी कुंजी, काफी कुछ स्वयं किसान के हाथ में है। अत: यह ज़रूरी है कि लागत में घटोत्तरी के उपायों की दिशा में अमल शुरु  हो।
कृषि में लागत मूल्य के मुख्य 10 मद हैं : भूमि, मशीनी उपकरण, सिंचाई, बीज, खाद, कीट-खरपतवारनाशक, मड़ाई, भण्डारण, समय और आवश्यक श्रम। कृषि ज़रूरत की इन चीजों पर किसान का स्वयं का नियंत्रण हुए बगैर न कृषि की लागत घटाई जा सकती है और न ही खेती को स्वाभिमानपूर्वक उदर-पोषण करने वाले कार्य की श्रेणी में लाया जा सकता है। जो भूमिहीन किसान, दूसरों के खेत किरायेदारी पर लेकर खेती करते हैं, उनकी भूमि किरायेदारी लागत घटाने के लिए जबरन किया गया कोई भी प्रयास अंतत: सामाजिक विद्वेष खड़ा करने वाला साबित होगा। जैसे-जैसे खेत मालिक की शर्त पर श्रम की उपलब्धता घटती जायेगी, यह लागत स्वत: कम होती जायेगी; यह भरोसा रखें।

दूसरा पहलू देखें तो सस्ते श्रम की उपलब्धता घटने से खेती में श्रम की लागत बढ़ी है। इसका एक पक्ष यह भी है कि बुआई, सिंचाई, निराई, कटाई, मड़ाई आदि के जो काम मानव श्रम से संभव थे, अब उन्हें आधुनिक मशीनी उपकरणों से करने की बाध्यता है। किंतु भारत के ज्यादातर किसानों के पास कृषि जरूरत के सभी उपकरण खरीदने क्षमता नहीं है। इस तरह आधुनिक मशीनी उपकरण, बड़े किसान के लिए तो एक मुश्त लागत का मद है, लेकिन छोटे किसानों को हर फसल पर इनके सेवा ठेकेदारों को दाम चुकाना पड़ता है, जो काफी अधिक होता है। हमारे वैज्ञानिक व इंजीनियरों ने सस्ते, स्वावलंबी और लंबी आयु वाले कृषि उपकरण ईजाद तो कई किए, लेकिन इनमें से ज्यादातर के व्यापक उत्पादन को सरकारों ने प्रोत्साहन नहीं दिया। जो कृषि उपकरण उद्योगपतियों और व्यापारियों की शरण में पहुंचे, वे किसान तक महंगे होकर ही पहुंचे।
 लिहाजा, कृषि मशीनी उपकरण खरीद और उपयोग लागत घटाने का तात्कालिक उपाय यही है कि किसान मशीनी उपकरण खरीद तथा रखरखाव की सामिलात व्यवस्था करें। साझा व्यवस्था होगी, तो एक ही उपकरण 20-25 किसानों के काम आ सकेगा। उपकरण खराब होने पर ठीक करने के हुनर को भी किसान समूहों को खुद ही हासिल करना होगा। इससे लागत घटेगी; साझा बढ़ेगा। साझा बढ़ते ही लागत घटोत्तरी के कई मार्ग स्वत: खुल जायेंगे। मेरे पास श्रम है, आपके पास ट्यूबबैल मैंआपकी दो बीघा खेत में गेहूं की बुआई, कटाई, मड़ाई मुफ्त कर दूंगा, आप मेरे दो बीघा गेहूं की तीन सिंचाई मुफ्त कर देना। आप मुझे सरसों के अच्छे बीज दे देना। मैं आपको मटर के अच्छे बीज दे दूंगा। इसी तरह उपज की खरीद-फरोख्त भी बाज़ार की जगह, पहले आपस में होने लगेगी। इससे लागत घटेगी और मुनाफा बढ़ेगा। पारंपरिक खेती और बार्टर पद्धति का गुण यही था। श्रम लागत बढ़ाने वाले कुछ और कारणों को समाप्त करना ज़रूरी है, जिनका प्रवेश ट्रेक्टर और बाज़ारू बीज के साथ हुआ। ऐसे ही कुछ व्यावहारिक उपायों को अपना कर किसानों का भला किया जा सकेगा।

अरुण तिवारी


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