ग्लोबल वार्मिंग : छोड़ना होगा अड़ियल रुख
दुनिया भर के 200 देशों के प्रतिनिधियों के बीच जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की 24वीं कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप-24) पोलैंड के काटोविक शहर में चल रहा है।
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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेज ने जलवायु सम्मेलन के नेताओं से आग्रह किया है कि वे अपना अड़ियल रवैया छोड़कर पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने के लिए प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए मिलकर काम करें। जलवायु समझौते से अमेरिका के हटने के फैसले के बाद विश्व के नेता पेरिस समझौते में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं।
पेरिस जलवायु समझौते पर होने वाला फैसला 2020 से लागू होना है, जिसका मकसद औद्योगिकीकरण से पहले के तापमान से ग्लोबल वार्मिंंग को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होने देना है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुसार साल 2020 तक अगर दुनिया, जलवायु परिवर्तन पर ठोस कदम नहीं उठाती है तो हम जलवायु परिवर्तन के जोखिम को और आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि जलवायु में इंसान के मुकाबले ज्यादा तेजी से बदलाव हो रहे हैं। उन्होंने वैश्विक नेताओं को इस विषय पर पहले ही चेताया है और कहा है कि यह हमारे दौर का एक अहम परिभाषित मुद्दा है। पेरिस समझौते को लागू करने के लिए दिशा-निर्देशों पर सहमति बनने की संभावना के बीच 14 दिसम्बर तक चलने वाले जलवायु सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में शामिल केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हषर्वर्धन ने इस सम्मलेन से सकारात्मक उम्मीद जताई है।
असल में भारत को उम्मीद है कि कॉप-24 विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों के सामने मौजूद चुनौतियों को समझेगा। उम्मीद की जा रही है कि सम्मेलन से निकलने वाला परिणाम ‘संतुलित और समावेशी’ होना चाहिए। वास्तव में अधिकांश विकासशील देश अति संवदेनशीलता, विकास की प्राथमिकता, गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा की मांग और स्वास्थ्य ढांचा उपलब्ध कराने के मामले में अभी शुरु आती स्तर पर खड़े हैं। ऐसे में भारत को इस सम्मेलन में समयबद्ध तरीके से लागू होने वाले दिशा-निर्देश तैयार किए जाने की भी उम्मीद है। लेकिन इस सम्मलेन में विकसित और विकासशील देशों के बीच टकराव की नौबत आ सकती है। दरअसल, इस सम्मेलन में पेरिस समझौते के क्रियान्वयन के लिए पेरिस नियमावली को मंजूरी दी जानी है। नियमावली तैयार है, लेकिन विकसित देशों के रु ख के कारण विकासशील और गरीब देश इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी प्रकट कर रहे हैं। यूरोपीय देश हालांकि प्रतिबद्ध हैं। लेकिन तीन बड़े देशों के रु ख, ग्लोबल हरित फंड में अपेक्षित राशि जमा नहीं होने से विकासशील और गरीब देशों की तरफ से वित्तीय जरूरतों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, क्योंकि मदद के लिए हरित कोष के पास राशि नहीं है। समय कम है क्योंकि 2020 तक पेरिस समझौते का पूरी तरह से क्रियान्वयन किया जाना है। लेकिन इस राह में अभी कई रोड़े हैं। दरअसल, इस समझौते में असल अड़चन विकसित देशों के रु ख को लेकर है। अमेरिका के समझौते से बाहर होने के बाद उससे वित्तीय मदद मिलने के आसार खत्म हो गए। ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने लक्ष्यों को छोड़ने की बात कही है। जबकि जर्मनी ने कहा कि कि उसके लिए लक्ष्यों को पूरा कर पाना संभव नहीं है। भारत और अन्य विकासशील देशों ने आरोप लगाया है कि धनी देश जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए तय सिद्धांत से पीछा छुड़ाने में लगे हैं, जिसके तहत सबकी साझी जिम्मेदारी तय करने के साथ-साथ विकसित देशों का दायित्व उनके सामथ्र्य के अनुसार अपेक्षाकृत बड़ा रखने पर सहमति बनी हुई है।
विकासशील देशों ने अपनी नाराजगी यहां चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान कई बार जाहिर की। यह सम्मेलन 2020 में वायुमंडल में ग्रीन-हाउस प्रभाव पैदा करने वाली गैसों के उत्सर्जन को कम करने की नियमावली तय करने के लिए बुलाया गया है। इस विषय पर यहां वार्ताएं अब महत्त्वपूर्ण दौर में हैं। बातचीत में अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेतृत्व में विकसित देशों का प्रयास है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के ‘साझा प्रयास पर सामथ्र्य के अनुसार कम-बेसी दायित्व’ (सीबीडीआर) डालने के सिद्धांत को हल्का किया जाए। भारत और अन्य विकसित देश इस बात का विरोध कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि पोलैंड जलवायु सम्मेलन का परिणाम सकारात्मक हो जिससे पेरिस जलवायु समझौता ठीक से लागू किया जा सके। साथ ही हमें समझना होगा की ऊर्जा संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कटौती करके ही हम ग्लोबल वार्मिंग को रोक सकते हैं।
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