रोस्टर नीति : बदलाव से बढ़ेंगी मुश्किलें

Last Updated 09 Mar 2018 06:26:08 AM IST

संविधान के निर्माताओं का संविधान को बनाने के पीछे उद्देश्य ये था कि भारत यूनिटी इन डाईवर्सिटी स्पिरिट ऑफ डेमोक्रेसी और सामाजिक क्रांति के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके.


रोस्टर नीति : बदलाव से बढ़ेंगी मुश्किलें

इसके लिए समावेशी विकास की आवश्यकता है तभी गरीबी,  भुखमरी, निरक्षरता और सामाजिक कुरुतियों से छुटकारा मिल सकेगा, संविधान निर्माताओं ने इस लक्ष्य को पाने के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया ताकि समाज के वंचित समूह समाज की मुख्यधारा में आकर भारत निर्माण में अपना योगदान दे सकें. इसके साथ-साथ प्रजातांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान कर सके. 

संविधान बनाने वालों का मानना था कि राजनीतिक प्रजातंत्र को सामाजिक प्रजातंत्र में तब्दील करना है ताकि आजादी, समानता और भाईचारा का समाज से तारतम्य हो सके. पिछले सात दशक में देखें तो पाते हैं कि आरक्षण का लाभ समाज के वंचित लोगों तक पहुंचा है और सामाजिक समरसता भी बढ़ी है. परन्तु पिछले कुछ सालों में ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार वंचित जमात के साथ न्याय नहीं कर पा रही है. जब हम केंद्रीय विविद्यालय में नियुक्त प्रक्रिया को देखते हैं तो ये पाते हैं कि रोस्टर के नाम पर नियुक्तियों पर ग्रहण सा लग गया है. जैसा कि हमें मालूम है; अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को क्रमश: 15 फीसद, 7.5 फीसद और 27 फीसद आरक्षण का प्रावधान है, मगर जब केंद्रीय विविद्यालय में दाखिले में आरक्षण लागू हुआ तब सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसद सीटें बढ़ा दी ताकि जनरल कैटेगरी के स्टूडेंट्स की सीट कम न हो सके. दाखिले में आरक्षण लागू होने से लगभग 50 फीसद वर्क लोड बढ़ गया, जिससे 50 फीसद शिक्षक के नये पद की जरूरत केंद्रीय विविद्यालयों और उससे संबद्ध कॉलेज में हुई. 47 केंद्रीय विविद्यालयों में फिलहाल करीब 6000 पद खाली हैं. इसके लिए रोस्टर के ऊपर नियम बदल दिया गया है. जैसा की हमें मालूम है 13 प्वॉइंट  रोस्टर में विभाग को यूनिट माना गया था, जिसमें एक से तीन पद सामान्य वर्ग के कैंडिडेट को जाता है, चौथा सीट ओबीसी को, पांचवां और छठा सीट सामान्य वर्ग के कैंडिडेट को जाता है, सातवां एससी को, आठवां फिर ओबीसी, नौवां, दसवां और ग्यारहवां पद सामान्य वर्ग  के कैंडिडेट को जाता है, बारहवां फिर ओबीसी को जाता है और तेरहवां सामान्य और चौदहवां एसटी को जाता है.  चूंकि विभाग को यूनिट माना गया है, इसलिए जिस विभाग में 3 पद हैं, वहां आरक्षण की सुविधा नहीं मिल पाएगी या जहां 6 पद हैं वहां सिर्फ  1 ओबीसी का आरक्षित पद है या फिर जहां बारह पद है वहां एसटी वर्ग आरक्षण लाभ से वंचित है. इस नये बदलाव से सबसे ज्यादा नुकसान क्रमश: एसटी, एससी और ओबीसी तबमे को होगा. 13 प्वॉइंट  रोस्टर से आरक्षण का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है, जोकि संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन है.  इसी के चलते संस्था को यूनिट मान कर 200 प्वॉइंट रोस्टर केंद्रीय विविद्यालयों में लागू था. जिससे आरक्षण का 49.5 फीसद सीट सभी तीनों कैटेगरी को नियम अनुसार आरक्षण मिल रहा था. पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट को सुप्रीम कोर्ट ने भी वैद्य माना और 200 प्वॉइंट  रोस्टर को गलत माना है.
इलाहाबाद हाकोर्ट का यह मानना है कि किसी संस्था को यूनिट मानें तो यह संभव है कि किसी एक विभाग में सभी पद आरक्षित श्रेणी के कैंडिडेट को जा सकता है या फिर सभी सामान्य वर्ग के कैंडिडेट को जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो यह गलत होगा और संविधान के अनुच्छेद 14 जोकि समानता के अधिकार और अनुच्छेद 16 अवसरों की समानता का विरोध करता दिखता है. इसी कारण विविद्यालय अनुदान आयोग ने 5 मार्च 2018 को विविद्यालयों को लिखा कि नियुक्तियां 13 प्वॉइंट रोस्टर से शुरू की जाए. 13 प्वॉइंट रोस्टर आरक्षण के मूल भाव को ही नष्ट कर रहा है, इसके बावजूद इस नियम को अमल में लाने का फरमान जारी किया गया है. इस निर्णय से प्रतियोगी विचलित हैं और नियुक्तियों में भी देरी हो रही है. कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि आरक्षण के नाम पर राजनीति हावी है. जब तक आरक्षण अपने उद्देश्य में सफल नहीं होगा, तब तक भारत में वंचित और शोषित समाज मुख्यधारा में अपना योगदान नहीं दे पाएगा. आरक्षण ही सामाजिक कुरीतियों को हटा कर भारत को प्रतिद्वंद्वी बाजार में हिस्सेदारी सुनिश्चित कर सकेगा और संविधान के लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकेगा.

डॉ. सुबोध कुमार


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