वैश्विकी : निर्गुट से बहुगुट की तरफ भारत

Last Updated 04 Feb 2018 02:56:03 AM IST

चाइना इंस्टीटय़ूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के वाइस प्रेसीडेंट रोंग यिंग ने स्वीकार किया है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की कूटनीति ने ‘मोदी सिद्धांत’ (डॉक्ट्रिन) का निर्माण किया है.


वैश्विकी : निर्गुट से बहुगुट की तरफ भारत

भारत ने पिछले तीन साल के दौरान अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में विशिष्ट नीतियों का क्रियान्वयन किया है, और इस आधार पर अंतरराष्ट्रीय विद्वानों का एक समूह इसे मोदी सिद्धांत के रूप में देखता है. हालांकि कुछ अन्य प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति को कुछ बदलावों के साथ पूववर्ती नीतियों का ही विस्तार देखते हैं. भारत की वर्तमान विदेश नीति को शाब्दिक अथरे में मोदी सिद्धांत भले न कहा जाए लेकिन इतना अवश्य है कि भारत पारंपरिक गुट-निरपेक्षता की नीति के बजाय बहुगुटता में विश्वास रखता है. इस तरह वह विभिन्न देशों के गठबंधनों में शामिल होकर अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों की पूर्ति करने का इच्छुक है. इसके तहत उसने अनेक देशों के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों का विस्तार किया है. इसमें अधिकतम राजनीतिक और आर्थिक लाभ तथा न्यूनतम जोखिम है.
नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के नेताओं को आमंत्रित करना उनके साथ रिश्तों को गंभीरता से लेने का संकेत था. सहयोग और संपर्क योजनाओं की कूटनीति के साथ उन्होंने नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव का दौरा किया. आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान का जवाब देने के लिए मोदी ने उन देशों की यात्राएं कीं जिनके इस्लामाबाद के साथ घनिष्ठ व्यापारिक रिश्ते हैं. अरब देशों की नाराजगी का जोखिम उठाते हुए वह इस्रायल की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री थे. यह भारतीय कूटनीति की नई पहल थी. इससे पहले इस्रइल की यात्रा करने वाले भारतीय अधिकारी फिलिस्तीन और इस्रइल, दोनों देशों की यात्रा एक साथ करते थे. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की इस्रइल यात्रा को भारतीय मुसलमानों ने फिलिस्तीनी समर्थन को तिलांजलि देने के रूप में देखा. अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए उन्होंने परस्पर विरोधी देशों के साथ संबंध बढ़ाने का भरसक प्रयास किया. इस्रइल और ईरान, दोनों के साथ सहज रिश्ता कायम रखना मोदी की कूटनीति की अग्नि परीक्षा थी, जिसमें वह पूरी तरह सफल रहे. इसी तरह परस्पर विरोधी चीन और जापान के साथ उन्होंने रिश्तों को एक साथ स्थिर और गतिशील बनाए रखा. जापान के साथ मजबूत रिश्तों से भारतीय अधोसंरचना में आधुनिकीकरण को नई ऊंचाइयां मिल सकती हैं. 

पड़ोसी चीन के साथ भारत के जटिल किंतु सहयोग पर आधारित प्रतियोगितापूर्ण संबंध रहा है. चीन का बढ़ता राजनीतिक प्रभाव चिंता का विषय है. विशेषकर पाकिस्तान के साथ चीन के आत्मीय रिश्ते और भारतीय सीमाओं में चीनी सैनिकों की अवांछित गतिविधियां. चीन के इस साम्राज्यवादी और वर्चस्ववादी नीतियों का माकूल जवाब देने के लिए पीएम मोदी ने जापान के साथ मिल कर आसियान के साथ रिश्ते और प्रगाढ़ बनाने की कोशिश की है. अभी गणतंत्र दिवस पर आसियान के 10 देशों को न्योतना भी कुशल कूटनीति का उदाहरण है. इसी वजह से चीन में खलबलाहट है और उसका सरकारी थिंक टैंक माना है कि भारतीय विदेश नीति आक्रामक हुई है.

डॉ. दिलीप चौबे


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