नजरिया : फिर भी बढ़ा दोस्ती का दायरा
इस्राइल के रूप में भारत को नई सदी में नया दोस्त मिला है. एक प्राकृतिक दोस्त, जो लंबे सफर का हमराही साबित हो सकता है.
नजरिया : फिर भी बढ़ा दोस्ती का दायरा |
‘जोड़ी ऊपर से बन कर आती है, धरती पर हम सिर्फ उन्हें तलाशते हैं’, इस्राइल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह कहकर ऐसा संदेश दिया है मानो भारत और इस्राइल के बीच सात जन्मों का नाता हो. हालांकि, इस जोड़ी ने एक-दूसरे को तलाशने में वक्त लिया. इस्राइल को मान्यता देने में तो भारत पीछे रहा ही, वह अब तक यह भी नहीं मान पाया है कि येरुशलम इस्राइल का दिल भी है और उसकी राजधानी भी.
इस्राइल ने भारत को बहुत पहले पहचान लिया था. उसने समझ लिया था कि भारत ही उसका सच्चा हमराही और हमखयाल बन सकता है. इस समझ के पीछे दोनों देशों का एक जैसा इतिहास था. दोनों ही देशों की धरती ने सैकड़ों साल अस्तित्व की लड़ाई लड़ी है. शायद इसीलिए संकट की हर घड़ी में इस्राइल भारत की एकतरफा मदद करता रहा है. फिर चाहे वह पाकिस्तान या चीन के साथ युद्ध हो या फिर तकनीक, कृषि और व्यापार. कभी खुफिया जानकारी मुहैया कराकर, तो कभी हथियारों से मदद देकर वह हमेशा भारत के साथ खड़ा दिखाई देता रहा है. मगर, भारत न सिर्फ हमेशा इस्राइल के बजाए उससे लड़ते रहे फिलीस्तीन के प्रति आकर्षित रहा, बल्कि इस्राइल के खिलाफ उसकी लड़ाई को समर्थन भी देता रहा. फिर भी, इस्राइल का भारत के प्रति यह लगाव ही था कि वह भारत की इस नीति से कभी नाराज नहीं हुआ. इस्राइली नेताओं को यह यकीन था कि एक न एक दिन स्वर्ग में बनी जोड़ी धरती पर जरूर एक दूसरे के गले लगेगी.
बेंजामिन नेतन्याहू की 6 दिन की भारत यात्रा का कार्यक्रम ही इतिहास को बदलने की कोशिश करता दिखता है. इससे पहले इस्राइल के पीएम शेरॉन 2003 में भारत आए थे. भारत की ओर से प्रधानमंत्री का इस्राइल दौरा पिछले साल ही सम्भव हुआ, जब नरेन्द्र मोदी वहां गए. जिस तरह का स्वागत इस्राइल में पीएम नरेन्द्र मोदी का हुआ और जिस तरीके से इस्राइल जाकर भी उन्होंने फिलीस्तीन से दूरी बनाए रखी, वह भारतीय विदेश नीति के ख्याल से अचरज की बात थी तो इस्राइली नजरिए से धरती पर ‘स्वर्ग में बनी जोड़ी’ का एक-दूसरे से औपचारिक परिचय था. फिर तो यह सिलसिला कुछ यों परवान चढ़ा कि इस्राइली प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी ने प्रोटोकॉल तक तोड़ दिया.
छह दिन की भारत यात्रा के दौरान बेंजामिन नेतन्याहू के लिए यहां हर दिन नया रहा. उन्होंने इस्राइल के लिए भारत में नई ऊर्जा महसूस की, उगता हुआ नया सूरज देखा. यात्रा के दूसरे ही दिन भारत और इस्राइल के बीच 9 अहम क्षेत्रों में करार हुए. ये करार अगर पूरे होते हैं तो भारत विकास की नई ऊंचाई को छूने में कामयाब होगा, वहीं इस्राइल को भी इस करार से फायदा होगा. साइबर सुरक्षा, फिल्म निर्माण, पेट्रोलियम, ‘इनवेस्ट इंडिया इनवेस्ट इस्राइल’ को लेकर परस्पर समझौते के साथ-साथ सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच मिलकर काम करने पर सहमति बनी.
रक्षा के क्षेत्र में इस्राइल दुनिया में अलग स्थान रखता है. अमेरिका भी इस्राइल से हथियारयुक्त रक्षा प्रणाली खरीदता है. इस्राइली डिफेंस फोर्स दुनिया का सबसे शक्तिशाली सैन्य बल है. इस्राइल एन्टी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेन्स सिस्टम से भी लैस है. दुनिया का कोई देश आज की परिस्थिति में इस्राइल से सैन्य स्तर पर टकराने की हिम्मत नहीं रखता. ऐसे में भारत को रक्षा के क्षेत्र में इस्राइल की दोस्ती नई सदी के उपहार से कम नहीं है.
गंगा की सफाई की योजना अब तक परवान नहीं चढ़ सकी है. मगर, अब इस्राइल के भारत में निवेश की इच्छा से इस दिशा में भी उम्मीद बंधी है. इस्राइल के पास पानी साफ करने की उच्चस्तरीय तकनीक है, जिसकी मदद से गंगा की सफाई का काम आसानी से किया जा सकता है. पीएम मोदी इसमें भी इस्राइल की मदद लेने की योजना रखते हैं.
विकास से जुड़े सहयोग समझौते दो देशों के लिए जितने महत्त्वपूर्ण होते हैं, उससे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक संबंध हुआ करते हैं. अब तक अगर भारत और इस्राइल एक-दूसरे के करीब नहीं आ सके, तो उसकी वजह भारत का फिलीस्तीन के प्रति झुकाव रहा है. बदली हुई परिस्थिति में अरब देश भी फिलीस्तीन के साथ-साथ इस्राइल को महत्त्व दे रहे हैं. वहीं, रूस के साथ बढ़ी दूरी ने भी भारत को रक्षा क्षेत्र में नया सहयोगी ढूंढ़ने को विवश किया. अमेरिका के साथ बढ़ी नजदीकी ने स्वाभाविक रूप से इस्राइल के प्रति हमारे नजरिए को बदलने में भूमिका निभाई. भारतीय कूटनीति की एक और विवशता ये बनी कि चीन और पाकिस्तान ने हाथ मिला लिए. अब शक्ति संतुलन के लिए भारत को अमेरिका, इस्राइल, जापान की जरूरत है. कहने का मतलब ये है कि इस्राइल के साथ रिश्ते की अहमियत अंतरराष्ट्रीय है. यही वजह है कि नेतन्याहू की यात्रा को लेकर पाकिस्तान लगातार उत्तेजक बयान दे रहा है.
इस्राइल की राजधानी के तौर पर येरुशलम को मान्यता देने संबंधी अमेरिकी प्रस्ताव का विरोध करना भारत के लिए कूटनीतिक जरूरत थी. इस बात को इस्राइल भी समझता है. फरवरी महीने में नरेन्द्र मोदी को ओमान और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा करनी है. संयुक्त अरब अमीरात ने 75 बिलियन की रकम भारत में निवेश करने का वादा किया है. इतना ही नहीं, 2019 में होने वाले आम चुनाव से पहले पीएम मोदी ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहते, जिससे खाड़ी में रहने वाली मुस्लिम आबादी में कोई भ्रम हो या उनके लिए कोई सुरक्षा चिन्ता पैदा हो. भारत यह बात भूल नहीं सकता कि बाबरी विध्वंस से पहले नरसिम्हा राव सरकार ने इस्राइल के साथ नए संबंध का नया युग शुरू करने की बात कही थी. मगर, बाबरी की घटना पर मध्यपूर्व के देशों की निन्दा ने भारत को उस दिशा में आगे बढ़ने से रोक दिया. इस बार भारत येरूशलम के बहाने अरब देशों को भारत के खिलाफ एकजुट होने का अवसर नहीं देना चाहता है.
निश्चित रूप से येरूशलम पर इस्राइल का विरोध और पीएम नेतन्याहू का भारत में जबरदस्त स्वागत भारतीय कूटनीति की खूबसूरती का उदाहरण है. भारत हमेशा से ही द्विराष्ट्र सिद्धांत का समर्थन करता रहा है और इस्राइल एवं फिलीस्तीन के सहअस्तित्व का हिमायती रहा है. इसके बावजूद संबंधों का संतुलन अतीत में बिगड़ा था. इस्राइल के साथ हमारी दूरी थी. इस बिगड़े संतुलन को बनाने में पीएम मोदी ने आगे बढ़कर अपनी भूमिका निभाई है.
मोदी-नेतन्याहू की दोस्ती दुनिया के कूटनीतिक मानचित्र में महत्त्वपूर्ण मानी जाएगी. हालांकि, इस्लामिक देश इस दोस्ती को सशंकित नजरों से देख रहे हैं लेकिन भारत की संतुलित कूटनीति उनकी आशंकाओं को दूर करने के प्रयासों में जुटी हुई है. इस्राइल के साथ संबंध मजबूत होने से भारत की रक्षा संबंधी जरूरतें पूरी होंगी, तो इस्राइल को भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत जैसे देश का मजबूत समर्थन हासिल हो जाएगा. परस्पर लेन-देन के हिसाब से यह संबंध दीर्घकालिक रहने वाला है. यही उम्मीद है, जो दो नैसर्गिक मित्र देशों को एक-दूसरे के करीब लाती है.
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