प्रासंगिक : हज के नाम पर लूट बंद

Last Updated 18 Jan 2018 05:16:35 AM IST

और कुछ किया हो या ना किया हो, पर एक बात अवश्य मुस्लिमों के लिए मोदी सरकार ने अच्छी कर दी है कि उनको सरकारी हज यात्रा के मकड़जाल से बाहर निकाल दिया.


प्रासंगिक : हज के नाम पर लूट बंद

कहने को तो यह मुसलमानों की हज सेवा थी मगर वास्तव में उन्हें हज अनुदान के नाम में लूटा जाता था. सरकार उनसे 37 हजार रुपये लेकर मात्र 10 हजार की छूट देती थी और बेचारा मुस्लिम हाजी दो पाटों के तले पिसता था.
मुस्लिम हाजियों को सऊदी अरब में भी मुअल्लिमों के नाम में लूटा जाता था कि वे आसानी से हज कराएंगे. वास्तव में मुअल्लिम के पैसे यहीं भारत में काट लिये जाते थे और जब हाजी बेचारा सऊदी अरब में लैंड करता तो मुअल्लिम का कोई पता नहीं होता क्योंकि भारतीय हज कमेटी उनको बहुत कम पैसा भेजती थी, जिसे वे हिकारत की निगाहों से देखते थे और मुअल्लिम की डयूटी करने नहीं आते थे. यहां अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का भी मुस्लिम धन्यवाद कर रहे हैं कि एक तो उन्होंने अपने आने से पूर्व ऑक्सीजन पर चल रहे अल्पसंख्यक मंत्रालय को पी.टी. ऊषा की तरह दौड़ा दिया है. उनका मानना है कि अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण नहीं सशक्तिकरण करना है. अपने राजकाज के सत्तर साल में कांग्रेस ने मुस्लिमों की रत्ती भर भी सेवा नहीं की है. अभी हाल ही में उन्होंने सही रूप से मस्लिमों के उत्थान के लिए एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया है, जिसके तहत भारत में बढ़िया शिक्षा एवं शोध का कार्य किया जाएगा. ऐसे ही इसी कमेटी के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के लिए सौ स्कूलों का निर्माण होना है, जिनमें से कुछ इंटर कॉलेज और छात्राओं के होस्टलों का उन्होंने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र में निर्माण व उद्घाटन भी करा दिया है.

हज सब्सिडी के नाम पर मुस्लिमों को वोट बैंक बनाकर पिछले कई सालों में न तो उनके उर्दू माध्यम स्कूलों, मदरसों और उर्दू का कोई उद्धार हुआ और न ही उन्हें मुख्यधारा में रखा गया या रोजगार दिया गया. अत: हमने निर्णय लिया है कि हज अनुदान की रकम हम मुस्लिम बच्चियों की शिक्षा के उत्थान में लगाएंगे. मात्र जबानी जमा-खर्च से नहीं बल्कि सही मायनों में हम मुस्लिम बच्चियों का सशक्तिकरण करेंगे. बिलकुल ठीक बात कही है नकवी ने क्योंकि हज अनुदान को बहाना बना कर संघ परिवार मुस्लिमों को ताना देता रहा है. आमतौर से भारतीय मुस्लिम जनता ने इसका स्वागत किया है. धर्मनिरपेक्ष देश होने का अर्थ यह नहीं कि सभी धर्मो के सभी तीर्थयात्रियों को विशेष तीर्थयात्रा छूट दी जाए. यदि मुसलमानों को ‘सब्सिडी’ देनी ही है तो शिक्षा के क्षेत्र में दें. बहुत से मुस्लिम बच्चे अच्छी शिक्षा का लाभ इसलिए नहीं उठा पाते क्योंकि उनकी जेब में फूटी कौड़ी नहीं होती. सऊदी अरब जाने से पूर्व ही हाजियों की समस्याएं प्रारम्भ हो जाती हैं. हर बड़े शहर में हज गृह होते हैं, जिनका संचालन राज्य हज कमेटियां करती हैं. फ्लाइट से पूर्व आस-पास के गांव-कस्बों से हाजी इन्हीं हज गृहों में रहते हैं जहां न तो उनके लिए और न ही उनके साथ छोड़ने आए अतिथियों के लिए कोई विशेष व्यवस्था है.
हज सुविधाओं के नाम पर सऊदी अरब जाने का एक अन्य अभिप्राय वहां हाजियों के लिए किराए की इमारतों का बंदोबस्त करना भी है. इसमें बहुत से लोगों की चांदी हो जाती है. करोड़ों रुपये का गोल-माल इस संबंध में हो जाता है. होता यह है कि इन इमारतों की व्यवस्था सऊदी अरब में भारतीय हज काउंसिल करती है. हज के समय हाजियों को जिन इमारतों में ठहराया जाता है, उसमें दिखाई तो अच्छी इमारत जाती है और वास्तव में सौदे के बाद साधारण सी या घटिया इमारतों को बुक कर दिया जाता है. पैसे वही वातानकूलित व मक्का से निकटतम इमारतों वाले लिये जाते हैं. बीच में दलालों की लाटरी खुल जाती है. कुछ समय पूर्व एक हज डेलिगेशन जब सऊदी अरब गया तो पता चला कि मात्र 20 प्रतिशत इमारतों की ही बुकिंग हो पाई थी. अंत तक सौदेबाजी होती है कि कम-से-कम दामों पर घटिया-से-घटिया इमारत बुक कर हिसाब में बढ़िया-से-बढ़िया ऊंचे दामों वाली इमारतें दिखा दी जाएं.
पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलयेशिया, इंडोनेशिया आदि देश तो हज से छह माह पूर्व ही बढ़िया-बढ़िया इमारतों का चयन कर बुक करा लेते हैं क्योंकि वहां घूस खाने और चूना लगाने वाले बिचौलियों के जत्थे नहीं होते. 250 करोड़ की ‘सब्सिडी’ (विशेष छूट) के असल हकदार वे हाजी होते हैं जो ‘भारतीय हज कमेटी’ द्वारा हज करते हैं. लिहाजा हज कराने वाली प्राइवेट टूर कंपनियां भी अपने ग्राहकों को भेजतीं तो हज कमेटी के मार्फत ही हैं, मगर उनके ठहरने का बंदोबस्त अलग से करती हैं. ये कंपनियां अपने हाजियों को अलग इमारतों में पहले से तयशुदा ‘ब्लैक’ के दामों में ठहराती हैं. इसमें होता यह है कि रकम तो हाजी देता है. ‘ए-कैटेगरी’ की मगर उसे ठहराया जाता है ‘‘सी-कैटेगरी’’ के मकानों में. जो पैसा चला गया वह फिर कहां वापस मिलता है चाहे लाख चिट्ठियां लिखो, मंत्रियों से शिकायत करो या अखबारों में छपवाओ. अब इससे होता यह है कि सरकारी छूट के वास्तविक हकदारों की संख्या कुछ कम हो जाती है. फिर अंत में निजी टूर कंपनियों वाले हाजियों को भी हज कमेटी की सूची में शामिल कर लिया जाता है. यह एक ऐसी तकनीकी दरार है, जिससे गरीब हाजियों का अरसे से शोषण होता चला आया है. जिन हाजियों का जाना तय होता है उन्हें लिवा जाने के लिए हज कमेटी एयर इंडिया से अनुबंध करती है, जो कुछ उसी प्रकार का होता है जैसे अरब स्थित इमारतों के मालिकान के साथ होता है कि दिखाओ कुछ और दो कुछ और बीच में फुल-फुल गोल माल!
सरकार अपनी ओर से हज यात्रा के खर्च में प्रति हाजी जो अनुदान प्रदान करती है, उसे नागरिक उड्डयन मंत्रालय सीधे ही विदेश मंत्रालय से प्राप्त कर लेता है. ऐसा इसलिए कि यह अनुबंध नागरिक उड्डयन मंत्रालय की अपनी कंपनी ‘एयर इंडिया’ के पास होता है. इसमें भी एक ‘रैकेट’ (धांधली) वर्षो से चल रहा है कि ऐन वक्त पर किराये बढ़ा दिए जाते हैं. उनसे यह होता है कि अनुदान की मोटी रकम ‘एयर इंडिया’ की झोली में जा पड़ती है. कहने का तात्पर्य यह है कि गरीब हाजी का ख़ून चूसने के लिए सरकारी एजेंसियां भी तत्पर रहती हैं.

फिरोज बख्त अहमद


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