क्रिकेट : प्रदर्शन को अहमियत जरूरी

Last Updated 04 Jan 2018 05:10:11 AM IST

पिछले एक-दो दशक में भारतीय क्रिकेट का नक्शा बदला है. अब क्रिकेट चंद टीमों की बपौती नहीं रह गई है. इसकी वजह राष्ट्रीय चैंपियनशिप के तौर पर खेले जाने वाली रणजी ट्रॉफी में नये-नये चैंपियन सामने आने लगे हैं.


प्रदर्शन को अहमियत जरूरी

इस बार इसका खिताब विदर्भ ने पहली बार जीता है. उसे यह सफलता 266 मैच खेलने के बाद मिली है. पिछली बार यानी 2016-17 के सत्र में गुजरात चैंपियन बनी थी. इससे पहले 2010-11 और 2011-12 में राजस्थान की टीम चैंपियन बनी थी. पर इन टीमों के चैंपियन बनने पर भी आप इनके खिलाड़ियों को टीम इंडिया में खेलते नहीं देख पाते हैं. इस वजह से ही रणजी ट्रॉफी अपनी पुरानी चमक को एकदम से खो बैठी है. अब टीम इंडिया में खेलने वाले खिलाड़ी रणजी मैचों में खेलते कम ही नजर आते हैं.
यह भी महत्त्वपूर्ण है कि रणजी ट्रॉफी में गेंद या बल्ले से शानदार प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों के नाम पर टीम इंडिया के लिए कम ही विचार किया जाता दिखता है. हमारे सामने गौतम गंभीर का उदाहरण है. वह काफी समय से टीम इंडिया से बाहर हैं. वह रंगत पाने के लिए रणजी मैचों में खेले और उन्होंने नौ मैचों में 56.91 के औसत से 683 रन बनाए, जिसमें तीन शतक शामिल हैं. पर गंभीर इस सबके बावजूद चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी तरफ आकषिर्त करने में असफल रहे. इसी तरह इस सीजन में कर्नाटक के मयंक अग्रवाल ने सर्वाधिक 1160 रन बनाए, जिसमें पांच शतक शामिल हैं. पर उनके भी टीम इंडिया में खेलने की कोई संभावना नहीं दिखती है.

यही नहीं इस सीजन के टॉप छह रन बनाने वाले-फैज फजल (912 रन), एस रामास्वामी (775 रन), अनमोलप्रीत (753 रन), एच विहारी (752 रन) और गंभीर में से किसी के भी टीम इंडिया में खेलने की संभावना नहीं है. हम अगर यह कहें कि बल्लेबाजों के मुकाबले गेंदबाजों की राह थोड़ी आसान है तो इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता है. पेस गेंदबाजों को किसी-न-किसी प्रारूप में खेलने का मौका मिल जाता है. केरल के लिए खेले जलज सक्सेना ने इस बार सर्वाधिक 44 विकेट लिये. पर वह 31 साल के होने से टीम इंडिया में शायद ही खेल पाएं. हां, इतना जरूर है कि इस सीजन में दो हैट्रिक से 39 विकेट लेने वाले आर गुरबानी और दिल्ली के 34 विकेट लेने वाले नवदीप सैनी जरूर टीम में स्थान पा सकते हैं. सच यही है कि यदि इसमें अच्छा प्रदर्शन करने वालों को टीम इंडिया में जगह मिलने की गुंजाइश रहती तो और भी युवा अच्छा प्रदर्शन करते नजर आ सकते थे. मुझे याद है कि एक समय था जब कोई दिग्गज खिलाड़ी फॉर्म खो देता था, तो उसे घरेलू क्रिकेट में खेलने को भेज दिया जाता था. पर अब दिग्गज खिलाड़ी इसमें खेलने में परहेज करते हैं. अब व्यस्त अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की वजह से पहले तो राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट खेलने का मौका ही नहीं मिलता है. जब कभी उनके सामने खेलने का मौका होता भी है तो वह खेलने के बजाय आराम करना बेहतर समझते हैं. कई बार मामूली बदलाव ही टीम को चैंपियन टीम में बदल देती हैं. विदर्भ की इस टीम का कोच मुंबई के पूर्व खिलाड़ी चंद्रकांत पंडित को बनाया गया. साथ ही वसीम जाफर मुंबई से विदर्भ टीम में आ गए. इन दो बदलावों ने टीम की शक्ल ही बदल दी. वसीम जाफर की मौजूदगी ने टीम को भरोसा दिया और कोच चंद्रकांत पंडित टीम को अपना बेस्ट देने के लिए प्रेरित करने में सफल रहे. जाफर ने इस सीजन में 54.09 के औसत से 595 रन बनाए.
असल में जाफर ने रन बनाने से भी महत्त्वपूर्ण काम कोच चंद्रकांत पंडित के साथ मिलकर साथी खिलाड़ियों की मानसिकता को विजेता टीम के खिलाड़ी के रूप में बदला, जिसका परिणाम सभी के सामने है. विदर्भ टीम के कप्तान फैज फजल कहते हैं कि जाफर ने टीम में मेंटोर की भूमिका निभाई. वहीं पूर्व तेज गेंदबाज और विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रशांत वैद्य ने बताया कि वह चंद्रकांत पंडित को कोच बनाने के लिए पांच-छह साल से लगे थे पर हर बार कुछ न कुछ गड़बड़ हो जाती थी. पर इस बार हम उन्हें लाने में सफल रहे और उसका परिणाम सभी के सामने है. पंडित अब तक मुंबई के अलावा, राजस्थान और गुजरात को रणजी ट्रॉफी चैंपियन बना चुके हैं. पर उनके इस प्रयास का राष्ट्रीय स्तर पर क्या फल मिला है? इसलिए इस चैंपियनशिप की अहमियत बढ़ाने के लिए जरूरी है कि इसमें चमक बिखेरने वाले खिलाड़ियों को उसका ईनाम पूरी ईमानदारी से दिया जाए. ऐसा करके सीढ़ियां चढ़ रहीं टीमें अपना स्थान सुरक्षित बना सकती हैं.

मनोज चतुर्वेदी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment