वायु प्रदूषण : आसान नहीं समाधान

Last Updated 02 Jan 2018 03:28:03 AM IST

वायु प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जिससे आज कोई भी अछूता नहीं है. बच्चे, नौजवान, वृद्ध, स्त्रियां, पेड़-पौधे, वनस्पतियां और जीव-जंतु सभी इससे प्रभावित हैं.


वायु प्रदूषण : आसान नहीं समाधान

कहीं इंसान इसके चलते जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहा है, कहीं नवजात बच्चे कम वजन के पैदा हो रहे हैं तो कहीं यह बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डाल रहा है. कहीं गर्भस्थ शिशुओं के लिए यह जानलेवा साबित हो रहा है, कहीं बच्चों को गुस्सैल बना रहा है. यह न केवल इंसान के फेफड़े खराब कर रहा है, बल्कि नौनिहालों के ‘आईक्यू’ को कम कर उनमें स्मृति लोप ला रहा है. यह भिन्न प्रकार के तंत्रिका संबंधी और सांस व दमा रोगों का भी जन्मदाता है. इसका सीधा संबंध न्यूमोनिया से है जो अकेले भारत में हर साल तकरीब 18 लाख बच्चों की जान ले लेता है.
यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक यह बच्चों में चिंता और विकास संबंधी बीमारियों को भी जन्म देता है.

प्रदूषण एक साल से कम उम्र के बच्चों के दिमाग पर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव डालता है. इसके अति सूक्ष्म कण बच्चों के खून में प्रवेश करके वहां से दिमाग में पहुंच जाते हैं. उस पर बुरा प्रभाव पड़ने से बच्चों में अलजाइमर और पार्किंसन जैसी भयानक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. पांच साल की उम्र तक वायु प्रदूषण के प्रभाव से बच्चों के ‘आईक्यू’ में पांच अंकों तक की गिरावट आ सकती है. यह खतरनाक संकेत है. प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी असर डाल रहा है. प्रदूषण की वजह से मां के पेट में भ्रूण का विकास प्रभावित हो रहा है. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2500 ग्राम से कम वजन वाले नवजात कम वजन में आते हैं. आंकड़ों के अनुसार समूची दुनिया में पैदा होने वाले बच्चों में 15 से 20 फीसद कम वजन वाले होते हैं. यूनीवर्सिटी ऑफ लंदन के इंपीरियल कालेज और किंग्स कालेज लंदन द्वारा किए गए शोध के मुताबिक मां बनने जा रही महिला जब इन रसायनों और वायु प्रदूषक तत्वों के संपर्क में आती है तो उसकी कोख में पल रहे शिशु के स्वस्थ मस्तिष्क के विकास में अवरोध पैदा होता है. दुनिया में 19.2 करोड़ बच्चे औसत से कम वजन के हैं. वहीं 56 फीसद लड़के दुनिया में कम वजन वाले हैं. जबकि भारत में कम वजन वाले बच्चों की तादाद 9.7 करोड़ है. यह आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा है. सच तो यह है कि गर्भाशय किसी भी भ्रूण को बाहरी तरह के किसी भी नुकसान से बचाता है. शोध के दौरान महिलाओं की जांच में पाया गया कि उनके शरीर में विषैले रसायन मौजूद हैं जिसकी असली बजह वायु और ध्वनि प्रदूषण है. इतना ही नहीं वायु प्रदूषण का उच्च स्तर किशोरों के बीच आपराधिक व्यवहार के खतरों को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है. वायु प्रदूषण के उच्चतम स्तर के चलते छोटे और विषैले कण विकसित हो मस्तिष्क में प्रवेश कर जाते हैं. नतीजन मस्तिष्क में सूजन आ जाती है, जिससे फैसले लेने के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के हिस्से को नुकसान पहुंचता है. यह खुलासा शोधकर्ता डायना योनान ने अपने अनुसंधान के उपरांत किया है. यही नहीं लॉसेंट पत्रिका में प्रकाशित एक नये अनुसंधान की रिपोर्ट का जायजा लें तो यह साफ हो जाता है कि व्यायाम से सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बेअसर हो जाते हैं.
यह पहला अध्ययन है, जो सेहतमंद लोगों के साथ-साथ पहले से ही दिल और फेफड़ों की बीमारियों से परेशान लोगों में इस तरह के नकारात्मक प्रभाव को सामने रखता है. दुनिया में 1.70 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में हैं. इनमें से 1.20 करोड़ बच्चे दक्षिण एशियाई देशों के हैं जो अंतरराष्ट्रीय वायु प्रदूषण के मानकों से भी छह गुणा अधिक प्रदूषित माहौल में रहने को विवश हैं. जहां तक हमारे देश का सवाल है, हमारे यहां मानक वायु गुणवत्ता एक सपना है. असल में आज राजधानी दिल्ली ही नहीं वरन समूचा उत्तर भारत वायु प्रदूषण की मार झेल रहा है. इसमें दो राय नहीं कि वातावरण खराब करने में औद्योगिक प्रदूषण, कृषि अवशेष जलाना और वाहनों से निकलने वाला धुंआ अहम् भूमिका निभा रहा है. अगर ऐसे ही हालात रहे तो स्थिति और भयावह होगी. अभी दिल्ली की हवा में सांस लेना दूभर है, ऐसी हालत में भविष्य की कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं. फिर इस विभीषिका से जन्मी बीमारियों के निदान की आशा तब और धूमिल हो जाती है जब यह मालूम पड़ता है कि देश में एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर भी नहीं है. ऐसा लगता है कि हवा में घुल रहा यह जहर मानव अस्तित्व के विनाश का कारण बनेगा. इसमें दो राय नहीं.

ज्ञानेन्द्र रावत


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