वैश्विकी : देखें, बॉन में कितना टिकता है पेरिस!

Last Updated 12 Nov 2017 04:58:12 AM IST

यह महज संयोग है कि धुआंसी दिल्ली के बीच संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में जलवायु परिवर्तन पर सालाना सम्मेलन होने जा रहा है.


वैश्विकी : देखें, बॉन में कितना टिकता है पेरिस!

23वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी (कॉप-23)  इस बार जर्मनी के बॉन में जुटेगी. जर्मनी यह दायित्व फिजी की तरफ से वहन कर रहा है, जो सम्मेलन का औपचारिक मेजबान देश है. इसमें पेरिस समझौते-2015 पर विस्तार से चर्चा की जाएगी, जिसके तहत दुनिया के 100 देश वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने की दीर्घावधि योजना पर एकमत हुए थे. पेरिस समझौते में यह बात भी थी कि अंगीकरण पर एक वैश्विक लक्ष्य को विकसित किया जाएगा और ‘नुकसान या क्षति’ की भरपाई के मसले को इस ‘अंगीकरण’ से पृथक रखा जाएगा. कॉप-23 पर इस समझौते के क्रियान्वयन की नियमावली बनाने, 2018 में होने वाले विमर्श को सफल बनाने और इन सबके साथ 2023 की दुनिया के हालात के मुताबिक एजेंडा तय करने की जवाबदेही है.

इतने बड़े मकसद को पूरा करने के लिए अमेरिका का सहमत होना जरूरी है पर वह तो पेरिस समझौते से बाहर आने का औपचारिक ऐलान कर रखा है. हालांकि इसके वास्तविक अर्थ में लागू होने में अभी दो साल का वक्त है. सो उसका प्रतिनिधिमंडल भी कॉप-23 में भाग लेने आएगा. अब सब यही देखने को उत्सुक हैं कि उसके प्रतिनिधि जलवायु-चर्चाओं में क्या रुख रखते हैं. दूसरे, फिजी के प्रधानमंत्री ने  ‘नुकसान या क्षति’ मसले को लेकर अपना अलख जगाए हुए हैं, जो मानव द्वारा पैदा किये गए जलवायु परिवर्तन के आसानी से कारण हो सकते हैं. इस साल भारत, बांग्लादेश समेत दक्षिण एशिया में आई विध्वंसकारी बाढ़ को मनुष्य की गलतियों से होने वाली आपदा की कोटि में रखा गया है.

दरअसल, यह श्रेणी चार और पांच में उल्लिखित तूफान हैं, जिन्होंने इस साल टेक्सास, फ्लोरिडा और प्यूरेटो रिको में भयावह तबाही मचायी हैं. हालांकि समुद्री तूफान आते रहते हैं, लेकिन इन तूफानों के दौरान अटलांटिक और कैरिबियन सागर के जलस्तरों में अभूतपूर्व असामान्य बदलाव देखा गया. इसके चलते तूफान भीषण और ज्यादा विनाशकारक हो गया. इससे 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ. अमेरिकी कांग्रेस इस नुकसान की भरपाई में लगी है.

अमेरिका की तरह ही दुनिया के कुछेक देशों में इन तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भरपाई की व्यवस्था है पर यह वैश्विक स्तर पर ऐसी कोई प्रणाली अभी विकसित नहीं हो पाई है. पोलैंड में 2013 में हुए कॉप-19 में ‘नुकसान या क्षति’ की पूर्ति पर सभी देश वारसा इंटरनेशनल मैकनिज्म (वीम) के तहत एक व्यवस्था बनाने पर सहमत हुए थे. इसके अंतर्गत ही एक कार्यकारी कमेटी बनाई गई थी. अब इसने मसले पर पंचवर्षीय कार्ययोजना तैयार की है, जिस पर बॉन में विचार किया जाना है.

हालांकि इस कार्ययोजना में ‘नुकसान या क्षति’ की भरपाई के लिए कोष जुटाने पर कोई विचार नहीं है. लिहाजा, बॉन में फिजी व छोटे द्विपीय देशों के संगठन, कम विकसित देशों तथा अफ्रीका समूह के नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से बचाव के लिए कोष गठन पर विचार के लिए जोर दिया जाएगा. जाहिर है कि विकसित देश विरोध करेंगे.

डॉ. दिलीप चौबे


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