एलईडी बल्ब : रोशनी का काला धंधा

Last Updated 04 Nov 2017 06:32:57 AM IST

भले ही देश में लाइट एमिटिंग डियोड्स (एलईडी) बल्ब का बाजार दस हजार करोड़ रुपये से ऊपर चला गया है, लेकिन धीरे-धीरे यह काले कारोबार में तब्दील हो रहा है, जो निश्चित रूप से चिंता की बात है.


एलईडी बल्ब : रोशनी का काला धंधा

मौजूदा समय में एलईडी बल्ब का बाजार नकली उत्पादों से भरा पड़ा है. कंपनियां इसे मुनाफा कमाने का एक बड़ा साधन मानकर चल रही हैं.

इलेक्ट्रिक लैंप एंड कंपोनेंट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (एलकोमा) की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2010 में एलईडी लाइटिंग का भारतीय बाजार महज 500 करोड़ रु पये का था, जो अब बढ़कर 10 हजार करोड़ रु पये का हो गया है. यह 22 हजार करोड़ रु पये की पूरी लाइटिंग इंडस्ट्री का लगभग 45 प्रतिशत से भी ज्यादा है. दरअसल, एलईडी बल्ब में विद्युत ऊर्जा की कम खपत होती है और इसकी रोशनी पारंपरिक बल्ब से ज्यादा होती है.

फिर भी यह आंखों को नहीं चुभती है, जिसके कारण इसकी लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है. वैश्विक स्तर की ख्यातलब्ध एजेंसी नीलसन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि घरेलू बाजार में उपलब्ध एलईडी बल्ब के 76 और एलईडी डाउनलाइटर के 71 प्रतिशत ब्रांड सुरक्षा मानकों के अनुकूल नहीं हैं. गौरतलब है कि ये मानक भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय ने तैयार किए हैं.

नीलसन ने अपने सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद में बिजली के उत्पादों की खुदरा बिक्री करने वाली 200 दुकानों के एलईडी बल्बों को नमूने के तौर पर शामिल किया था. एलकोमा के अनुसार बीआईएस मानकों के उल्लंघन के सबसे ज्यादा मामले दिल्ली में देखे गए हैं. एलकोमा की मानी जाए तो अधिकृत मापदंडों पर खरा नहीं उतरने वाले उत्पादों से उपभोक्ता गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं. अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (एएमए) द्वारा 14 जून 2016 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार एलईडी द्वारा निकलने वाली रोशनी मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. नकली उत्पाद से जोखिम की गंभीरता और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

दूसरी तरफ नकली उत्पादों को बेचने से सरकार को भारी-भरकम राजस्व का नुकसान हो रहा है. देखा जाए तो नकली एलईडी बल्ब के कारोबार से सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ संकल्पना को भी नुकसान हो रहा है. उल्लेखनीय है कि अगस्त, 2017 में बीआईएस ने एलईडी बल्ब निर्माताओं को उनके उत्पाद के सुरक्षा जांच के लिए बीआईएस में पंजीकृत कराने का निर्देश दिया था, लेकिन कंपनियां इस आदेश की अनदेखी कर रही हैं. एलईडी बल्ब के काले कारोबार में बढ़ोतरी का एक बहुत बड़ा कारण भारतीय बाजार का चीन के उत्पादों से भरा हुआ होना भी है. आज की तारीख में एलईडी बल्ब बड़े पैमाने पर चीन से भारत गैर कानूनी तरीके से लाई जा रही है.

सर्वेक्षण के मुताबिक एलईडी बल्ब के 48 प्रतिशत ब्रांडों पर बनाने वाली कंपनी का पता दर्ज नहीं है, जबकि 31 प्रतिशत ब्रांडों की पैकिंग पर कंपनी का नाम नहीं लिखा है. साफ है, इनका निर्माण गैर-कानूनी तरीके से किया जा रहा है. इसी तरह एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले में भी 45 प्रतिशत ब्रांडों की पैकिंग पर निर्माता का नाम दर्ज नहीं है और 51 प्रतिशत ब्रांडों के उत्पादों पर कंपनी का नाम नहीं लिखा हुआ है. नीलसन के रिपोर्ट के अनुसार सर्वे में शामिल दिल्ली में बिकने वाली एलईडी बल्ब की तकरीबन तीन-चौथाई ब्रांड बीआईएस मानकों के अनुरूप नहीं हैं. एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले में भी लगभग ऐसी ही स्थिति है. वर्तमान में घर, बाजार और दफ्तर में धड़ल्ले से एलईडी बल्ब का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी वजह से रोशनी के बाजार में इसकी हिस्सेदारी बढ़कर आज 50 प्रतिशत हो गई है.

हाल ही में सरकार ने ‘उजाला’ योजना के तहत देशभर में 77 करोड़ पारंपरिक बल्बों की जगह एलईडी बल्ब इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखा है. इस आलोक में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) ने आपूर्ति करने वाले निर्माताओं या डीलरों को ‘स्टार रेटिंग’ वाले एलईडी बल्ब की आपूर्ति करने का निर्देश दिया है, ताकि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े. कहा जा सकता है कि मौजूदा परिदृश्य में सरकार को नकली एलईडी बल्बों के प्रसार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए. खास करके चीन से गैरकानूनी तरीके से आने वाली नकली एवं बिना ब्रांड वाले उत्पादों पर. नकली या बिना ब्रांड वाले एलईडी बल्ब ईमानदार कारोबारियों, सरकार एवं उपभोक्ताओं सभी के लिए नुकसानदेह है, क्योंकि कारोबारियों एवं सरकार को तो इससे सिर्फ आर्थिक नुकसान ही हो रहा है, लेकिन उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य इससे खतरे में है.

सतीश सिंह


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