कश्मीर : वार्ताकार महज शिगूफा!

Last Updated 01 Nov 2017 04:28:33 AM IST

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बीती 23 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर में सभी दावेदारों से बातचीत करने, समस्या समझने और उसका समाधान सुझाने के लिए दिनेश्वर शर्मा को नये वार्ताकार के रूप में नियुक्त किया है.


कश्मीर : वार्ताकार महज शिगूफा!

आईबी के पूर्व निदेशक शर्मा के भारत सरकार के ‘विशेष प्रतिनिधि’ के रूप में  कैबिनेट सचिव का भी दर्जा दिया है. लेकिन इस निर्णय को लेकर कई ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर सरकार से अपेक्षित हैं. पूछा जा सकता है कि क्या सरकार को वे सारे तयशुदा लक्ष्य प्राप्त हुए जिसके बिना सरकार कश्मीरी अलगाववादियों सहित सभी पक्षधरों से कोई गंभीर वार्ता शुरू नहीं कर रही थी? कहा तो यह भी जा रहा है कि सरकार विपक्ष के दबाव में आकर ऐसा कदम उठाने को विवश हुई है, और यह भी कि गुजरात में होने जा रहे विधान सभा चुनाव के चलते उसने कश्मीर को लेकर कारगर छवि दिखाने की चाल चली है.

देखा जाए तो सरकार ने शुरू से ही कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के बदले अपनी दोषपूर्ण नीतियों से उत्तरोत्तर उलझाया है, या एकता और अखंडता की दृष्टि से कमजोर ही किया है. अर्ध-अलगाववादी पीडीपी के साथ राज्य में साझा सरकार बनाकर रही-सही कसर पूरी की. क्या राज्य की साझा सरकार के ‘एजेंडा ऑफ एलायंस’ को  जानकारों ने ‘विश्वासघात का घोषणा पत्र’ यों ही कहा है! आप जानते हैं कि कश्मीर में सभी अलगाववादी गुट इसका बहिष्कार करेंगे और सरकार इस आरोप से बरी हो जाएगी कि वह कश्मीरी अलगाववादियों और शेष पक्षधरों से संवाद शुरू करने की विरोधी है.

सितम्बर में राजनाथ सिंह जम्मू-कश्मीर के दौरे पर थे. छिटपुट गैर-अलगाववादी गुटों को छोड़ कौन आया था उनसे मिलने! गृह मंत्री ने कश्मीर में जम्मू और लद्दाख की जनता की भावनाओं को अनदेखा कर एक बड़ा बयान दिया-भारत सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी जो कश्मीर के अवाम की आकांक्षाओं के खिलाफ हो. गृह मंत्री ने सोच-समझ कर ही ऐसा बयान दिया होगा क्योंकि इससे पूर्व भी विगत दो महीनों में उन्होंने कश्मीर को लेकर तीन-चार चौंकाने वाले बयान दिए हैं. जैसे कश्मीर की समस्या का हम ऐसा समाधान करेंगे जिससे कश्मीर, कश्मीरियत और कश्मीर का अवाम दुष्प्रभावित नहीं होगा अर्थात केंद्र सरकार के पास ऐसा कोई समाधान है, जिसे देश की जनता जानना चाहेगी. क्या है वो समाधान? उन्होंने कुछ अंतराल के बाद फिर से एक बयान दिया-हम जल्द ही कश्मीर समस्या को स्थायी रूप से हल करेंगे.
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 15 अगस्त को लाल किले से कहा ,‘न गोली से न गाली से, कश्मीर की समस्या सुलझेगी गले लगाने से.’ क्या  भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में शर्मा की नियुक्ति को गंभीरता से लिया जाना चाहिए? ऐसा है तो क्यों  सरकार  ने हुर्रियत सहित तमाम पक्षधरों से सीधे संपर्क कर उन्हें संवाद के लिए आमंत्रित नहीं किया? क्यों नये वार्ताकार को निर्देश दिया गया है कि संवाद शुरू करें और अपनी रिपोर्ट पेश करें. सरकार तो समस्या जानती है, और कथित रूप से  समाधान भी उसके पास है. कोई गृह मंत्री से पूछे कि कश्मीर समस्या को भाजपा के नेता कभी यह कहते हुए सिरे से नकारते हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य के 26 अक्टूबर, 1947 को भारत में विलय के साथ ही यह कोई समस्या ही नहीं रही; और धारा 370, अलग संविधान, अलग ध्वज, 35-ए, स्वायत्तता जैसे  आपत्तिजनक प्रावधान हैं  भी तो वे नेहरू और कांग्रेस की देन हैं. अब आप ही के बड़े-बड़े भाजपा नेता हैं, जिनमें गृह मंत्री के रूप में आप भी शामिल हैं, जो कह रहे हैं कि कश्मीर समस्या को हम हल करेंगे और जो हम कहते हैं  करके दिखाते हैं.
कृपया सरकार बताए कि क्या है कश्मीर की समस्या उनकी इस नई दृष्टि में? कश्मीरी मुसलमानों के एक बड़े अलगाववादी वर्ग की मांग है कि कश्मीर का पाकिस्तान में विलय करना, ‘निजामे मुस्तफा’ (इस्लामी राष्ट्र) कायम करना. दूसरे बड़े वर्ग की मांग है ‘भारत से आजादी’, जिसे वे ‘लाइल्ला इल्लाह’ वाली व्यवस्था के रूप में व्याख्यायित करते हैं. तीसरे बड़े वर्ग की मांग है ‘बृहद् स्वायत्तता ‘जिसे ‘लगभग आजादी’ या ‘लगभग पाकिस्तान’ या ‘लगभग भारत’ के फ्रेमवर्क में पेश किया जा सकेगा. चौथे बड़े वर्ग पीडीपी की मांग है ‘सेल्फ रूल’ (स्व-शासन), दोनों ओर के कश्मीरों का साझा शासन, विसैन्यीकरण, साझी मुद्रा, अनियंत्रित सीमाएं (पोरस बोर्डर्स), अलग-अलग विधानसभाएं आदि इत्यादि. क्या गृह मंत्री बताएंगे कि समस्या के किस पहलू को चयनित किया है  सरकार ने और जिसका वह समाधान देगी?  केंद्र सरकार यह भी तो भलीभांति जानती है कि कश्मीरी युवाओं का ‘कट्टर’ वहाबी तहरीक के तहत जिस गति से उनका तालिबानीकरण चल रहा है, जिसके चलते आईएसआईएस के झंडे फहराए जा रहे हैं, कश्मीर को सीरिया की खिलाफत से जोड़कर अब जेहादी ब्रिगेड खुल्लमखुला गीलानी जैसे अपने इस्लामी नेताओं को भी धमका रहे हैं कि कश्मीर को इस्लामी समस्या के बदले अगर इसे वे राजनीतिक मसला कहेंगे तो वे लालचौक में उनका गला रेत देंगे.
अब अलगाववादी आतंकवाद को ‘गज्वाए हिंद’ का रूप देने में लगे हैं, इस तथ्य से भी तो सरकार अवगत है ही. धर्म के आधार पर ‘जीनोसाइड’ के शिकार लाखों विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं की जो मांग है कि कश्मीर घाटी में उनके लिए केंद्र शासित यूनियन टेरिटरी का निर्माण हो जहां निर्बाध रूप से भारतीय संविधान लागू हो. कोई मजहबी कट्टरता न हो. सच्ची सेक्युलर राजनीतिक व्यवस्था हो. समस्या के दो और पहलू भी हैं. जम्मू की जनता और लद्दाख की जनता की भू-राजनीतिक आकांक्षाएं जिन्हें कोई भी केंद्र सरकार अनदेखा नहीं कर सकती.
पाकिस्तान का दूसरा पहलू तो जगजाहिर है ही. भाजपाई भी कांग्रेसियों की तरह कहते नहीं थकते कि अवैध रूप से पाकिस्तान के कब्जे में जम्मू-कश्मीर के भूभाग को छुड़ाना ही उनके साथ शेष काम है. ऐसी पृष्ठभूमि में नये वार्ताकार महोदय कौन-सी नई खोज करने के लिए भेजे जा रहे हैं? जम्मू-कश्मीर का दुर्भाग्य है कि भारतीय राज्य ने कश्मीर को लेकर हमेशा अंतर्विरोधों-विरोधाभासों की ही राजनीति की है, और वो भी कभी तुष्टीकरण के चलते और कभी उससे भी क्षुद्र राजनीतिक स्वाथरे के चलते. इस दृष्टि से भाजपा सरकार की कश्मीर नीति भी कांग्रेस की नीतियों से भिन्न नहीं दिखती.

अग्निशेखर


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