विश्लेषण : शी की जीत के मायने

Last Updated 28 Oct 2017 04:20:34 AM IST

उन्नीसवीं कांग्रेस के समापन के साथ शी जिनपिंग का आगाज नये अवतार में हुआ है. दरअसल, यह बात चौंकाने वाली नहीं है.


विश्लेषण : शी की जीत के मायने

इसकी संभावना पूरी थी कि शी जिनपिंग का एक नई शक्ति के साथ पदार्पण होगा. वह पिछले दो वर्षो में अपने चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा चुके हैं. चीन में माहमारी की तरह  पसरे बेतरतीब भ्रष्टाचार पर अंकुश डालने की वजह से भी जिनपिंग की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी. कांग्रेस का महासम्मेलन पांच वर्षो के अंतराल पर होता है, और इसलिए इस बार का महासम्मेलन पांच साल बाद हुआ था. इसमें इस बार 2800 प्रतिनिधियों ने शिरकत की.

दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल, जिसके 89 मिलियन सदस्य हैं, के 2800 प्रतिनिधियों ने 25 पोलित ब्यूरो का चयन किया. तदोपरांत सात सबसे मजबूत राजनीतिक इकाइयों, जिन्हें स्टैंडिंग समिति कहा जाता है, का गठन किया गया. 19वीं महासभा कई रूपों में निराली थी. राष्ट्रपति शी जिनपिंग को दूसरी बार राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया. इस बात की उम्मीद भी पूरी थी. चूंकि अभी तक चीन की राजनीतिक परम्परा रही है कि 5 वर्षो बाद राष्ट्रपति का उत्तराधिकारी चुन लिया जाता है.

लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. शी जिनपिंग ने अपने 5 विश्वस्त मित्रों का चयन स्टैंडिंग समिति में कर लिया है. उत्तराधिकारी का चयन नहीं होना,  कई महत्वपूर्ण बातों की विवेचना करता है. पहली, शी जिनपिंग तीसरी बार भी राष्ट्रपति बनने के मूड में हैं. किसी भी सदस्य का कद इतना बढ़ा नहीं है कि शी जिनपिंग को चुनौती दे सके. दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि शी जिनपिंग अपने जीवनकाल में ही ऐतिहासिक पुरुष हो गए हैं. राष्ट्रपति के रूप में एक राजनीतिक चिंतक और सिद्धांत प्रतिपादक के रूप में स्थापित हो गए हैं.

इसके पहले केवल माओ त्से तुंग को यह उपलब्धि प्राप्त थी, जिनका वर्णन चीन के संविधान में है. देंग की चर्चा भी उनके मरने के बाद हुई. शी जिनपिंग ने जीते जी अपना नाम पार्टी संविधान में अंकित करवा लिया. चीन विद्यालयों और महाविद्यालों में शी जिनपिंग के विचारों को पढ़ा जाएगा. मार्क्‍सवाद को नया आयाम देने वालों में माओ की चर्चा राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों में होती है. देश और दुनिया के कई हिस्सों में क्रांतिकारी परिवर्तन माओ के तर्ज पर होता रहा है. भारत में माओवादी क्रांति माओ त्से तुंग की सोच पर ही चलाई जाती है. शी जिनपिंग के विचारों के मुख्य अंश क्या हैं? शी जिनपिंग ने चीनी समाजवाद की अलग व्याख्या की है. उन्होंने कहा कि चीन का प्रारूप अलग है.

शी जिनपिंग तीसरे चरण की चर्चा करते हैं. पहला चरण माओ का क्रांतिकारी युग था. दूसरा चरण देंग का परिवर्तनवादी चरण था. तीसरा चरण दोनों का मिशण्रहै. शी जिनपिंग की मानें तो चीन एक ऐसा देश है, जो आर्थिक रूप से मजबूत है, और सामरिक-सैनिक शक्ति की ऊचांइयों पर बैठा हुआ है. शी जिनपिंग चीन प्रथम की भी बात करते हैं अर्थात चीन में सब कुछ पार्टी के द्वारा ही तय किया जाएगा. इसका मतलब यह हुआ कि चीन में बाजारोन्मुखी परिवर्तन पर अंकुश लगाया जाएगा. बाजारोन्मुखी परिवर्तन बना रहेगा. शी जिनपिंग की सोच ‘चीन पहले’ का अर्थ यह भी है कि विदेशों में रहने वाले चीनियों को वापस बुलाया जा सकता है. ऐसा होना संभव नहीं लगता. इसका विरोध भी होगा.

तीसरा महत्त्वपूर्ण तत्व चीन की सियासी शक्ति में इजाफे को लेकर है. हांगकांग पिछले साल राजनीतिक विद्रोह का शिकार रहा. एक देश दो व्यवस्था को लेकर खूब बवाल हुआ. शी जिनपिंग इस व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं. केवल एक सिस्टम होगा. शी जिनपिंग तिब्बत के मसले पर भी उग्र हैं. उनकी नजर में दलाई लामा देशद्रोही हैं, जो भी देश उनके संपर्क में है, वो  चीन का दुश्मन है. भारत के साथ 70 दिनों की टशन के बाद चीन का वक्तव्य भारत के लिए चुनौती है. चीन की विदेश नीति पहले से ही दुनिया के लिए पहेली से काम नहीं है. शी जिनपिंग की सोच में भारत चीन का सबसे प्रबल प्रतिद्वंदी है. इस विचार की आड़ में एक ऐसी सोच को विकसित किया जाता है, जिसकी समझ जरूरी है.

शी जिनपिंग एक मजबूत नेता हैं. भारत में भी एक महत्वपूर्ण नेतृत्व है. आने वाले समय में स्थिति विकट बन सकती है. भारत, जापान और अमेरिका का त्रिगुट चीन के लिए चिंता का कारण है. चूंकि शी जिनपिंग की विदेश नीति इसी बात पर तिकी हुई है कि इस त्रिगुट को कैसे तोड़ा जाए इसलिए शी जिनपिंग का सिद्धांत इस बात की विवेचना करता है कि आने वाले समय में चीन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश होगा. विश्व राजनीति उसके इर्द गिर्द घूमेगी. दक्षिण चीन सी इसका महत्वपूर्ण आयाम है. शी जिनपिंग 2022 में होने वाले सम्मलेन में संभवत: तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाएंगे क्योंकि उन्होंने पूरब की परम्परा को तोड़ने की बात कही है. जिआंग जमीन और हु जनता ने दो टर्म के बाद सत्ता को छोड़ दिया. लेकिन शी जिनपिंग का मकसद कुछ और है. शी जिनपिंग के सामने भी कई चुनौतियां हैं. उत्तरी कोरिया चीन के लिए सरदर्द बना हुआ है.

चीन के भीतर  अल्पसंख्यक समुदायों के विरोध प्रदशर्न भी चल रहे हैं. तिब्बती समुदाय ने शी जिनपिंग की नीतियों की आलोचना की है. किसी भी नेता के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि वो अपने जिन्दा रहते हुए ऐतिहासिक हो जाए. उसके सिद्धांतों की चर्चा पुस्तकों में हो, बच्चे उनको पढ़ें और दुनिया में उनकी डंका बजे. चीन में आर्थिक संपनता के साथ बौद्धिक उग्रता बढ़ती जा रही है. इसी साल नोबेल लरेट के मरने पर चीन में खूब हंगामा हुआ. चीन की दूसरी आंतरिक मुसीबत है धनवान और गरीबों के बीच अंतर. उत्तर और दक्षिण चीन में इस लिहाज से खासा अंतर है. यह सब कुछ शी जिनपिंग के लिए संभालना आसान नहीं होगा. माओ त्से तुंग सिद्धांत प्रतिपादक नेता थे. देंग ने चीन को नया जीवन दिया. चीन में आर्थिक समृद्धि देंग की नीतियों के कारण से आई. शी जिनपिंग के सिद्धांत जमीन पर खरा होने शेष हैं. अभी तक उनकी सोच सिद्धांत में नहीं बदल पाई है. उनका दूसरा कार्यकाल यकीनन बेहद महत्त्वपूर्ण होगा.

प्रो. सतीश कुमार


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