मुद्दा : ‘मर्सल’ पर सियासी मारामारी
तमिल फिल्म ‘मर्सल’ बीजेपी के निशाने पर है. बीजेपी, फिल्म में जीएसटी और नोटबंदी के विरोध वाले डायलॉग को हटाने की मांग कर रही है.
मुद्दा : ‘मर्सल’ पर सियासी मारामारी |
तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष तमिलसाई सुंदरराजन का कहना है कि इससे समाज में गलत संदेश फैल रहा है. केंद्रीय मंत्री पोन राधाष्णन इससे भी आगे बढ़ गए उनका कहना है कि फिल्म निर्माता, ‘मर्सल’ से जीएसटी के बारे में दी गई ‘गलत’ जानकारी को हटा दें.
सिनेमा के माध्यम से गलत जानकारियों को नहीं फैलाया जाना चाहिए. बीजेपी जहां इस फिल्म का विरोध कर रही है, तो दूसरी ओर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम और शशि थरूर ने ‘मर्सल’ में जीएसटी के विरोध वाले डायलॉग हटाने की बीजेपी की मांग पर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि सरकार आजाद आवाजों का दम घोंट रही है. एटली निर्देशित ‘मर्सल’ 18 अक्टूबर को रिलीज हुई थी. फिल्म में मुख्य अभिनेता के रूप में तमिल सुपरस्टार विजय हैं. फिल्म आम फिल्मों की ही तरह बदले की कहानी है और देश के चिकित्सा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द घूमती है. फिल्म में जीएसटी, डिजिटल पेमेंट और भ्रष्ट चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल उठाए गए हैं. फिल्म के संवादों में एक जगह हीरो कहता है कि सिंगापुर में सिर्फ 7 फीसद ही जीएसटी लगता है, जबकि भारत में जीएसट 0 फीसद से 28 फीसद तक लगता है.
फिल्म में एक जगह सवाल उठाया गया है कि सरकार हमें मुफ्त में इलाज और दवा क्यों नहीं मुहैया कराती? सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन के सिलेंडर नहीं होते, जिससे लोगों की जान चली जाती है. यही नहीं फिल्म के इसी सीन में सरकारी अस्पताल में किडनी डायलिसिस के दौरान बिजली चले जाने से हुई मौतों के बारे में भी बात होती है. जाहिर है कि फिल्म में जो सवाल उठाए गए हैं, वे कहीं से भी गलत नहीं हैं. जीएसटी के अंतर्गत कई वस्तुओं और सेवाओं पर 28 फीसद टैक्स है. मध्य प्रदेश के इंदौर और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में ऑक्सीजन न होने की वजह से हाल ही में हुई बच्चों की मौतों को भला कौन झुठला सकता है? मीडिया के जरिये ये बातें सारा देश जान चुका है. फिर फिल्म में इन बातों के दोहराने पर सत्ताधारी पार्टी को एतराज क्यों है?
इन सब विरोध-प्रदर्शनों और सियासी बयानबाजी के बीच फिल्म ‘मर्सल’ बॉक्स ऑफिस पर सिक्का जमाए हुए है और शानदार कमाई कर रही है. दक्षिण की फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत, कमल हासन और शरत कुमार ने फिल्म के इस सीन को बहुत बढ़िया बताया है. सोशल मीडिया पर फिल्म के समर्थन में संदेशों की बाढ़ आ चुकी है. ‘प्रोड्यूसर्स गिल्ड अफ इंडिया’ ने फिल्म ‘मर्सल’ के निर्माताओं को अपने विचारों को स्वतंत्रतापूर्वक अभिव्यक्त करने की अनुमति देने के लिए सेंसर बोर्ड की सराहना की है. नेता-अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भी ‘मर्सल’ के विरोध को बेतुका बतलाया है. उनका कहना है कि ‘कुछ लोग जीएसटी का समर्थन करते हैं और कुछ विरोध. इसी तरह कुछ लोग नोटबंदी का समर्थन करते हैं और कुछ विरोध.
इसका मतलब यह नहीं है कि इनकी आलोचना करने वाले देश विरोधी हैं.’ सरकार की आर्थिक नीतियों पर तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी ने भी सवाल उठाए हैं. क्या उन्हें देश विरोधी कहा जा सकता है? फिल्म पर जब ज्यादा बात बढ़ गई, तो बीजेपी ने हमेशा की तरह इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देना शुरू कर दिया है. बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव एच. राजा अब अभिनेता विजय के ईसाई मूल को उठा रहे हैं. उन्होंने ट्विट करते हुए लिखा है कि ‘फिल्म ‘मर्सल’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति जोसफ विजय की नफरत जाहिर करती है.’ जबकि इस बात में जरा सी भी सच्चाई नहीं है. फिल्म की कहानी और स्क्रिप्ट में अभिनेता की कोई भूमिका नहीं होती. उसे जो भी तैयार स्क्रिप्ट मिलती है, वह उसे सिर्फ अदा करता है.
मनोरंजन के साथ संदेश जरूर होता है. यह अलग बात है कि कुछ संदेश सरकार या सत्ताधारी पार्टी को पसंद आते हैं, तो कुछ नहीं ! ‘मर्सल’ फिल्म में जो संदेश है, वह सत्ताधारी पार्टी को रास नहीं आ रहा. जिस फिल्म को सेंसर बोर्ड अपनी मंजूरी दे चुका हो, उस पर पाबंदी की मांग करना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं. यदि फिर भी किसी को यह फिल्म पसंद नहीं आई तो वह अदालत का दरवाजा खटाखटा सकता है. लेकिन तोड़-फोड़ और हंगामा करके वे फिल्म पर पाबंदी नहीं लगा सकते. इस तरह की हरकतें, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है. सरकार और सत्ताधारी पार्टी के लोग लाख चाहें, मगर सच को डंडे के जोर से दबा नहीं सकते.
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