लंबित मामले : उपाय तो तलाशने होंगे

Last Updated 04 Oct 2017 04:25:40 AM IST

न्यायालय का नाम सुनते ही न्याय के मंदिर का स्मरण होता है. आज भी लोग विवाद के दौरान सामने वाले को अदालत में देख लेने की धमकी दे डालते हैं.


लंबित मामले : उपाय तो तलाशने होंगे

इससे जाहिर होता है कि लोगों की अदालतों में चरम आस्था है. यहां तक कि सरकार के खिलाफ भी कोई फरियाद करनी हो तो वे अदालत की शरण लेने से नहीं चूकते. और यह इसलिए है कि न्यायपालिका लोगों के अधिकारों की रक्षा करती है.

चूंकि पहले-पहल किसी भी मामले को घरेलू या फिर सबसे निचली अदालत में दर्ज किया जाता है और अगर पार्टयिां अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं होती हैं तो वे संविधान के अनुच्छेद 32 और 132 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के दरवाजे खटखटाते हैं. मगर ऊपरी अदालतों के पास हजारों मामले पहले से ही होते हैं, जिन्हें सुलझाने में ही उन्हें काफी वक्त लग जाता है. परंतु सुप्रीम कोर्ट का हाल में जारी आंकड़ा थोड़ी खुशी भी देता है तो थोड़ा निराश भी करता है.

आंकड़ों के मुताबिक, पिछले तीन साल में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में लंबित मामलों में कमी आई है. जहां सुप्रीम कोर्ट में 2014 में 62,791 मामले लंबित थे, वहीं 2017 में ये घटकर 58,438 हो गए. वहीं हाईकोर्ट में 2014 में जहां 41.52 लाख मामले लंबित थे, उनकी संख्या घट कर 2016 में 40.15 लाख हो गई है. जहां ऊपरी अदालत में मामले कम हुए हैं वहीं निचली अदालतों में लंबित केस कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं. 2014 में जहां इनकी संख्या 2.64 करोड़ थी, वह 2017 में  बढ़ कर 2.74 करोड़ हो गई है. इसकी एक वजह निश्चित तौर पर न्यायाधीशों की कमी है.

1 सितम्बर 2017 तक उच्च न्यायालय में जहां 413 जजों की कमी थी, वहीं निचली अदालतों में 4,937 जजों की जगह खाली है. न्यायालयों में खास तौर पर निचली अदालतों में जजों के पद अगर जल्द नहीं भरे गए तो फाइलों की तह बढ़ती जाएगी. न्यायपालिका का इकबाल बनाए रखने के वास्ते सरकार व न्यायपालिका को मजबूत कदम उठाना ही होगा. सिर्फ  जजों की संख्या बढ़ा देने से ही इस समस्या का समाधान नहीं निकलेगा. अगर जजों की कमी को पूरा भी कर दिया गया तो मामले जल्दी सुलझाने के चक्कर में हो सकता है पीड़ितों को पूरी तरह न्याय नहीं मिल पाए. और अगर लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तो वे फिर से ऊपरी अदालतों की तरफ रुख करेंगे. यानी मसले सुलझने के बजाय बढ़ते ही जाएंगे. लिहाजा, मामले सुलझाने के दूसरे विकल्पों की तरफ ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.

मसलन; लोक अदालत और नेशनल लोक अदालतो के गठन को तत्काल मंजूरी देनी होगी. इसके अलावा केस की नियमित सुनवाई, मध्यस्थता, वैकल्पिक विवाद समाधान आदि के बारे में भी संजीदगी से विचार करने की जरूरत है. नेशनल लोक अदालत अभी भी लगाई जाती है. मगर यह एक वर्ष के अंतराल पर हर राज्य में एक ही दिन लगती है. इसी साल फरवरी माह में लोक अदालत बिठाई गई थी, उसमें पूरे देश के 9,34,180 मामले एक साथ सुलझाए गए. अब अगर एक ही दिन के अंतराल में लाखों मामले सुलझाए जाएंगे तो कितनों के साथ न्याय हुआ होगा, यह सोचने वाली बात है!

ऊपरी अदालत में लंबित मामलों में कमी की एक वजह नियमित रूप से सुनवाई हो सकती है. मगर निचली अदालतों में केस बढ़ोतरी के कई कारण हो सकते हैं. उनमें से एक वजह लोगों में कानून और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता भी है. इसकी दूसरी वजह यह भी हो सकती है कि बढ़ते मामलों के मुताबिक अदालतों में जजों की संख्या नहीं बढ़ाई जा रही है. ऊपरी अदालतों के मुकाबले निचली अदालतों में जजों की कमी लाखों में है.

ज्यादातर लंबित मामलों में एक पक्ष सरकार है. एक विभाग ने दूसरे विभाग के खिलाफ मामला दर्ज कराया है, लिहाजा पेंडिंग मामले बढ़ते ही जाते हैं. वहीं, पुराने कानून जो किताबों में दोषपूर्ण या अस्पष्ट रूप से दर्ज हैं, लेकिन उनमें व्यावहारिकता नहीं है. और अदालतों ने विभिन्न तरीके से उनकी व्याखाएं समय-समय पर कीं हैं, वे बेवजह की मुकदमेबाजी का कारण हैं.

जजों की संख्या बढ़ाई जाए और नये कोर्ट-फास्र्ट ट्रैक कोर्ट, लोक अदालत और ग्राम न्यायालयों को स्थापित किया जाए, नये पद सृजित किए जाएं, कोर्ट मैनेजर, अदालत की सुनवाई नियमित कर दी जाए तो लंबित मामलों में कमी आ सकती है. अंग्रेजी में कहावत है कि ‘जस्टिस डिलेड इस जस्टिस डिनाइड’ और ‘जस्टिस हरीड इज जस्टिस बरीड’. लंबित मामलों की सुनवाई होनी चाहिए किंतु दोनों पक्षों को न्याय देने के इरादे से न की सिर्फ मामले को खत्म करने के इरादे से.

दीक्षा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment