स्वच्छता को कर्त्तव्य समझें

Last Updated 02 Oct 2017 05:11:47 AM IST

स्वच्छता एक सामाजिक और सांस्कृतिक रूपांतरण है. यह लोगों व देश के आर्थिक रूपांतरण से ज्यादा नहीं तो कम महत्त्वपूर्ण भी नहीं है.


स्वच्छता को कर्त्तव्य समझें

इसलिए आधुनिक भारत के निर्माताओं में गांधी वह पहले राजनीतिक-संत हैं, जिन्होंने राजनीतिक स्वाधीनता पर स्वच्छता को तरजीह दी और मनुष्य के समस्त आचार-विचार में उसके निर्विवाद महत्त्व को रेखांकित किया. उनके मुताबिक साफ-सफाई का संबंध मनुष्य की सभ्य-जीवन शैली और उसकी गुणात्मक मानसिक उपलब्धि से है. इसलिए स्वच्छता के प्रति हमारा नजरिया निजी और समाज के प्रति हमारे ख्यालात को जाहिर करता है. स्वच्छता के प्रति गांधी के इतने प्रबल आग्रह को देखते हुए नरेन्द्र मोदी सरकार ने उनकी जयंती दो अक्टूबर और अपने महत्त्वाकांक्षी ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को जैसे एक कर दिया है. इसके तहत पूरे देश में ‘स्वच्छता ही सेवा है’ अभियान चलाया जा रहा है. ऐसा करने वाले नरेन्द्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के पहले साल ही लाल किले से गांवों व शहरों में स्वच्छता अभियान चलाने की घोषणा की थी. और अब तो प्रधानमंत्री ने उस अभियान को ‘न्यू इंडिया’ के सपने से भी जोड़ कर उसे बड़ा आयाम दे दिया है. यह चकाचक नया भारत मोदी सरकार का नया दर्शन है.

यह कोई भी कहेगा कि सरकार ने बड़ा ठान लिया है, जिसका क्रियान्वयन उसके अकेले बूते संभव नहीं है. सरकार भी यह मानती है. इसलिए वह गांधी के सहारे है, जो स्वच्छता के लक्ष्य को सामुदायिक भागीदारी के जरिये पाने में विास करते थे. सरकार ने सभी वर्गों से, खास कर उनसे सहयोग का आह्वान किया है, जिनके कहे और किये का सामाजिक समूहों के लिए प्रेरणा-अनुकरण का उदाहरण बन जाता है. इनमें चर्चित कलाकार, खिलाड़ी, नेता, अभिनेता, मीडिया से लेकर शैक्षणिक जगत की हस्तियां को उसने जोड़ रखा है. ये विभिन्न माध्यमों से लोगों की सोच को बदलने के नेक काम में लगे हैं. समाज के इन अग्रणियों की बातें विभिन्न वय के लोगों पर अपने हिसाब से असर दिखा रही हैं.

आज यह संभव हुआ है कि सार्वजनिक या निजी स्थलों पर किसी तरह की गंदगी बिखेरने से पहले लोगों की नजरें उस पात्र की खोज जरूर करती हैं, जहां उपयोग हो चुकीं वस्तुओं को फेंका जा सके. इसलिए पहले की तुलना में शहर या गांवों के वे सार्वजनिक स्थल जवाबदेहीपूर्ण ऐहतियात से साफ लगते हैं. स्कूलों में क्लास के प्रारंभ और अंत में बच्चों को दी गई शिक्षकों की सीखों का खूब असर हुआ है. वे बच्चे घरों में गलती से भी गंदगी फैलाते अपने माता-पिता को टोक कर सावधान करने से नहीं चूकते. बच्चे पढ़-सुनकर सीखते ही हैं, वह देखकर ज्यादा सीखते हैं. उन्हें अपने प्रधानमंत्री मोदी की संसद में आयोजित एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान रैपर फेंकने के लिए कूड़ेदान खोजतीं नजरें और उसे वहां न पाकर रैपर को अपनी जेब में रखने का सीन का स्वच्छता का जीवन भर के लिए एक यादगार पाठ हो जाता है.



लेकिन ढेर सारे लोगों को सरकार का यह स्वच्छता अभियान एक तरह के भ्रम की रचना और उसका प्रोत्साहन लगता है, जिसमें सफलता इस बात पर निर्भर करती है, उसका ढिंढोरा कौन, किस तरह और किस स्तर पर पीट रहा है. उनका मानना है कि कई वाजिब प्राथमिकताओं की जगह अकेली स्वच्छता को समस्त सरकारी क्रिया-कलाप की धुरी बना देना एक तरह की ज्यादती है. लेकिन सरकार का विास है कि ‘साफ-सफाई से दमकता भारत एक ऐसी नेक सेवा है, जिसे वह देश के गरीब, दबे-कुचले और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए कर सकती है.’ इसलिए उसका स्वच्छता मिशन भारतीयों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन ला सकता है. आर्थिक तरक्की और स्वच्छता अभिन्न हैं.

हालांकि स्वच्छता के मायने और दरकार भूगोल पर निर्भर करते हैं. व्यक्ति से लेकर संस्था और गांवों से लेकर शहरों तक में यह भिन्न-भिन्न हो सकते हैं. यह उचित भी है. गांवों के संदर्भ में स्वच्छता का संदर्भ रिहाइश में ही शौचालय का निर्माण ‘खुले में शौच की बेइज्जती से मुक्ति’ है. यह महिलाओं के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. गांवों में अपना शौचालय होने को उस परिवार की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता है. इसलिए बनारस में लोगों ने शौचालय का नाम ‘इज्जत घर’ रखा हुआ है. सच में ऐसा है भी. खुले में जातीं महिलाओं से यौन र्दुव्‍यवहार की घटनाओं को देखते हुए कई शादियां लड़कों के परिवार में शौचालय न होने की वजह से टूटीं. कई इसी शर्त पर तय हो सकीं कि शादी से पहले ससुराल में शौचालय बन जाएगा. कई लड़कियों ने इसके लिए अपने गहनों तक का मोह छोड़ दिया. निश्चित रूप से इसमें सुपर स्टार अमिताभ बच्चन और विद्या बालन के प्रचार का बड़ा हाथ है.

इसलिए जब सरकार ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की तो गांव को उसके मूल में रखा. सरकार ने पिछले तीन सालों में गांवों में पांच करोड़ शौचालयों का निर्माण किया है. यूपीए सरकार के 10 वर्षो के राजकाज में महज तीन करोड़ टॉयलेट का ही निर्माण हो सका था. इस तरह टॉयलेट निर्माण की दर 39 फीसद से बढ़कर 69 फीसद पर पहुंच गई है. इसमें शहरों में बनने वाले तीस लाख आठ हजार टॉयलट की गिनती अलग है. देश के कुल जिलों के तिहाई 203 जिले खुले में शौच करने से मुक्त हो गए हैं. सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, केरल, उत्तराखंड और हरियाणा ऐसे ही राज्य हैं, जहां कोई खुले में शौच के लिए नहीं जाता. हालांकि सरकार को क्रियान्वयन के मोच्रे पर त्रुटिरहित तरीके से और काम करना होगा. केवल शौचालयों का निर्माण ही काफी नहीं है. उसके लिए पानी, सीवर लाइन और गंदगी को साफ करने की व्यवस्था को भी दुरुस्त करना होगा. यह सुनिश्चित करना होगा कि शौचालय सचमुच काम करे.

बापू की जयंती पर हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सभी स्वच्छता जैसे महत्तर मकसद के लिए आगे आएं. ‘स्वच्छता ही सेवा है’ के बजाय ‘स्वच्छता ही कर्त्तव्य’ को अपना जीवन मंत्र बनाएं. अकादमिकों, युवाओं की तरह मीडिया की भी इसमें बड़ी भूमिका है. जिस तरह से एक चर्चित हास्य कलाकार शो के अंत में दर्शकों को अपने आसपास को साफ रखने का संदेश देता है, मीडिया भी ऐसे ही प्रेरित करने वाले सकारात्मक संदेशों को जगह दे सकता है.

डॉ. विजय राय


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