प्रसंगवश : जीने की चुनौती

Last Updated 24 Sep 2017 01:41:10 AM IST

आज सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी हमारे जीवन के हर पहलू को बेरोकटोक छूती जा रही है.


जीने की चुनौती

इसकी चाही-अनचाही घुसपैठ के साथ हमारी जिंदगी में कामों की नई श्रृंखला पैदा हो रही है, और पुराने कामों का स्वरूप भी बदल रहा है. इन सब के सूत्रधार कंप्यूटर महाशय हैं, जिनका हमारे परिवेश में अवतरण कई रूपों में हुआ है.

परंतु सबका आधार कृत्रिम बुद्धि (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) की व्यवस्था है, जिससे तरह-तरह की समस्याओं का समाधान किया जा रहा है. स्थिति यह है कि सिर्फ  अध्ययन-अनुसंधान ही नहीं देशों की अर्थव्यवस्था और सामरिक शक्ति सब कुछ उस देश की कंप्यूटर के क्षेत्र में काबिलियत पर निर्भर करने लगी है.

कंप्यूटर की शब्दावली का दम-खम अद्भुत है. मसलन, ‘डाउन लोड’ और ‘अपलोड’ करना (जिसका हिंदी अनुवाद ‘उतारना’ ‘चढ़ाना’ होगा),  ऐसी क्रियाएं हैं, जो क्षण भर में व्यक्ति को सारी दुनिया से जुड़ने और जोड़ने की शक्ति रखती है. आप सूचना के साथ लॉक, सेलेक्ट, ट्रैक, डिलीट, कॉपी, पेस्ट, शेयर, फ्लिप, जूम कुछ भी आसानी से कर सकते हैं. सच्चाई यही है कि कंप्यूटर का दखल का क्षेत्र दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. ज्ञान, खेलकूद, देशाटन, स्वास्थ्य, बाजार की खरीद-फरोख्त और नागरिक सुविधाएं आदि  से जुड़े सारे प्रश्नों का जवाब और समस्याओं का समाधान इसी की सहायता से मिलने लगा है. इसके चलते कई नये व्यवसाय भी पैदा हो रहे हैं.

जीवन व्यापार में सूचना की यह अभूतपूर्व उपस्थिति हम सबके जीवन में गजब ढा रही है. सूचना का अतिरेक और उसकी सरल उपलब्धता आदमी को शायद विराटता का भी बोध कराती है पर साथ ही साथ जीती-जागती दुनिया से काट कर अकेला भी करती जाती है. आज प्राय: परिवार में हर सदस्य के पास सूचना तंत्र से जुड़ने की अपनी-अपनी स्वतंत्र  व्यवस्था  रहती है. एंड्रायड मोबाइल तमाम सुविधाओं वाला होता है. कंप्यूटर भी आसानी से उपलब्ध हो रहा है. सूचना के इस संसार में हर तरह की सूचनाएं हैं, और इस बात की पूरी छूट रहती है कि अच्छी-बुरी, नैतिक-अनैतिक कौन-सी सूचना चुनी जाए और किसके साथ कितना जुड़ा जाए. सब कुछ कागज से उठाकर इस सूचना तंत्र के हवाले कर देने के अपने खतरे भी हैं. सूचना की तस्करी भी है, और डकैती (हैकिंग) भी चल रही है.

निजी व्यक्तिगत जीवन में सूचना-व्यसन कितना घातक हो सकता है, यह पिछले दिनों ब्लू ह्वेल गेम के सिलसिले में हुई दुर्घटनाओं से समझा जा सकता है. किस तरह वर्चुअल रिएलिटी (आभासी/भ्रामक सच की दुनिया) आदमी को बांध कर क्या-क्या करने को प्रेरित करती है, या कर सकती है, इसका यह त्रासद नमूना है. जो रपटें अखबारों में छपी हैं, और विवरण सामने आए हैं, वे किसी यंत्र-मंत्र के वशीकरण से कम नहीं लगते. जो आधे-अधूरे ब्योरे सामने आए हैं, उनके आधार पर  पर किसी स्पष्ट और सामान्य निष्कर्ष तक पहुंचना मुश्किल है. फिर भी इस तरह की घटना से लगता यही है कि सूचना का खेल निराला है. वह कुछ भी करा सकता है. दूर देश से सूचना मार्ग से नियंत्रित ब्लू ह्वेल का खेल किस तरह बच्चों को बांधता है, और उन्हें कुछ भी करने को बाध्य कर देता है. ये बच्चे नेट पर खेल से जुड़ते हैं, सूचना पाते हैं, आकर्षित होते हैं, और निर्देशों के हिसाब से दिए काम को अंजाम देते हैं, जिसका चरम कार्य मौत को गले लगाना होता है.

निश्चय ही ‘थ्रिल’ भी इस खेल का एक पक्ष है. उसे अपने अनुभव में लाकर महसूस करना क्षणिक ही सही बेहद उत्तेजक होता है. इस हद तक कि अंजाम का अर्थ समझने और उस पर विचारने की फुर्सत ही नहीं बचती. नये से नये तरीकों को आजमाना और उनका तजुरबा ‘सेंसेशन सीकिंग’ की प्रवृत्ति को झलकाता है, जो आज बढ़ रही है.

अपने-अपने सूचना संसार में खोए परिवार के सदस्य बच्चों के लिए सजीव सक्रिय रूप से कम उपलब्ध रहते हैं. वैसे भी विकसित होते समाज में अकेले निजीपन के अंधेरे-उजाले ही बढ़ रहे हैं. आत्मलीन सभ्यता का स्वप्न व्यक्ति का उत्कर्ष है. उसकी मर्जी! वह जैसे चाहे रहे, जिए, मरे उसकी बला से. पर यह खाम खयाली अंतत: बेहद खतरनाक है. सूचना का तंत्र और उसका उपयोग सकारात्मक और उपयोगी होना चाहिए. परिवार के स्तर पर उसका संतुलित उपयोग कैसे किया जाए, विचारना होगा. समझना होगा कि परिवार और समाज की ओर उन्मुख जीवन व्यक्ति के विरु द्ध नहीं होता. दोनों की पारस्परिकता को ग्राह्य बनाना होगा.

गिरीश्वर मिश्र


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