वैश्विकी : संबंधों में आया नया सबेरा

Last Updated 17 Sep 2017 01:30:11 AM IST

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अपनी रणनीतिक साझेदारी को उच्च स्तर तक ले जाने का फैसला किया है, जिसका एशिया प्रशांत क्षेत्र में दूरगामी परिणाम होंगे.


वैश्विकी : संबंधों में आया नया सबेरा

इस क्षेत्र में विस्तारवादी चीन के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था का निर्माण हो रहा है, जिसमें लोकतांत्रिक प्रणाली वाले देश भारत, जापान और आस्ट्रेलिया एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. इस क्षेत्र में बड़ी आर्थिक और सैनिक मौजूदगी वाला देश अमेरिका भी इस वैकल्पिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. अपनी परंपरागत नीति के अनुसार भारत किसी सैनिक गठबंधन में शामिल नहीं होगा. हालांकि वह आसियान देशों सहित देशों के साथ मिलकर एक सुरक्षित एवं स्थायित्व वाले एशिया प्रशांत क्षेत्र के निर्माण का प्रयास करेगा. ‘लुक ईस्ट नीति’ से आगे बढ़ते हुए ‘एक्ट ईस्ट नीति’ के क्रियान्वयन की दिशा में भारत की यह महत्त्वपूर्ण पहल होगी.

शिंजो आबे की यह स्वीकारोक्ति काफी महत्त्वपूर्ण है कि भारत के साथ दोस्ती टोक्यो के हित में है. उनकी इस आत्म-स्वीकारोक्ति को चीन के साथ जापान के तनावपूर्ण रिश्तों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. सच तो यह भी है कि भारत और चीन के रिश्ते भी हमेशा संदिग्ध रहे हैं. लेकिन भारत के मुकाबले चीन की चुनौतियां ज्यादा गंभीर हैं. पूर्वी चीन सागर में स्थित द्वीपों के मसले पर जापान और चीन का लंबे समय से विवाद चल रहा है. हालांकि अमेरिका और जापान के बीच की सैन्य संधि इन द्वीपों के लिए सुरक्षा कवच की तरह मौजूद है, लेकिन अमेरिका असल विवाद में जापान को असहाय छोड़ देता है. अमेरिका जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों को अपना सुरक्षा घेरा देने की प्रतिबद्धता जाहिर करता रहता है. लेकिन दूसरी ओर मित्र देशों को सुरक्षा के मसले पर आत्म-निर्भर बनने का पाठ भी पढ़ाता रहता है. इसके कारण अमेरिका के प्रति जापान का विश्वास हिला हुआ है. हाल के दिनों में परमाणु सम्पन्न उत्तर कोरिया जापान के लिए सबसे खतरनाक चुनौती बन कर सामने आया है. उसने हाईड्रोजन बम विस्फोट करके और जापान के लिए सबसे खतरनाक चुनौती बन कर सामने आया है. उसने हाईड्रोजन बम विस्फोट करके और जापान के ऊपर से मिसाइल दाग करके टोक्यो को अपनी सुरक्षा के लिए दूसरे विकल्पों पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है.
यह जगजाहिर है कि उत्तर कोरिया को परमाणु सम्पन्न बनाने में चीन और पाकिस्तान ने मदद की है. प्योंगयांग चीन का विश्वस्त मित्र है और जापान का पारंपरिक शत्रु. इस आसन्न संकट से निपटने के लिए जापान भारत की ओर देख रहा है. वह चीन की विस्तारवादी नीति का विरोध करने के लिए भारत से सहयोग चाहता है. चीन के विरोध में भारत-जापान समुद्री क्षेत्र में सैनिक कार्रवाई का विस्तार कर सकते हैं. चीन के सम्पर्क मार्ग ओबोर के समानांतर एशिया प्रशांत से लेकर अफ्रीका तक के क्षेत्र में ‘फ्रीडम कॉरिडोर’ की शरुआत भी हो सकती है. अगर ऐसा हुआ तो इस क्षेत्र में आक्रामकता को रोकने में सफलता मिलने की उम्मीद की जा सकती है. जापान सूर्योदय का देश है. भारत-जापान की बढ़ती दोस्ती एशिया के लिए सूर्योदय साबित हो सकते हैं.

डॉ. दिलीप चौबे
लेखक


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