पेट्रोल-डीजल : रोज मूल्य निर्धारण जनविरोधी

Last Updated 05 Sep 2017 02:09:07 AM IST

पेट्रोल एवं डीजल के खुदरा बिक्री मूल्य (आरएसपी) के रोज मूल्य निर्धारण की व्यवस्था 1 मई से उदयपुर, जमशेदपुर, विशाखापट्टनम, चंडीगढ़ और पुडुचेरी में प्रयोगिक तौर पर शुरू की गई.




रोज मूल्य निर्धारण जनविरोधी

वर्तमान में सरकारी तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों की हर पखवाड़े 1 और 16 तारीख को समीक्षा करती हैं. तदुपरांत मध्यरात्रि से पेट्रोल एवं डीजल की नई कीमत लागू की जाती है.

रोज मूल्य निर्धारण की प्रयोगिक सफलता के बाद 15 साल की पुरानी व्यवस्था को छोड़कर इस नई व्यवस्था को 16 जून से देश भर में लागू किया गया. तेल की नई कीमत को प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से भी रोज ग्राहकों को बताने की बात कही जा रही है, लेकिन क्या ऐसा होता दिख रहा है? जाहिर है, नहीं. अगर सरकार की तरह व्यापारी भी आम जनता को पेट्रोल एवं डीजल के कम कीमत का फायदा देने से परहेज करेंगे तो महंगाई में और भी ज्यादा इजाफा होना निश्चित है.

ऐसे में अगर रोज महंगाई बढ़ेगी तो आम आदमी की कमर टूट जाएगी. जुलाई से पेट्रोल की कीमत में 6 रु पये प्रति लीटर का इजाफा हो चुका है. इस समय पेट्रोल की कीमत तीन साल के उच्चतम स्तर पर है. तेल कंपनियों के आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में  डीजल की कीमतों में 3.67 रु पये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है. इस समय दिल्ली में डीजल 57.03 रु पये प्रति लीटर है जो पिछले चार महीने के उच्चतम स्तर पर है, जबकि पेट्रोल की कीमत 69.04 रु पये प्रति लीटर है, जो अगस्त 2014 के दूसरे पखवाड़े के बाद से सबसे अधिक है.

मुंबई में पेट्रोल की कीमत देशभर में सबसे ज्यादा है, जिसका कारण राज्य सरकार द्वारा पेट्रोल एवं डीजल पर ज्यादा कर आरोपित करना है. अगस्त महीने के अंत में मुंबई में पेट्रोल की कीमत 81.11 रुपये थी. गौरतलब है कि सरकार ने 2010 में पेट्रोल की कीमत को नियंत्रणमुक्त कर दिया था. वर्ष  2014 में डीजल की कीमत को भी नियंत्रणमुक्त कर दिया गया. तब से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत में लगातार गिरावट आ रही रही है, जिसका उपभोक्ताओं को कोई फायदा नहीं दिया जा रहा है. वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत गिरने के बावजूद भी सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पादन शुल्क और अन्य कर काफी बढ़ा दिए हैं, जिसके कारण जनता को राहत मिल नहीं पा रही है. देखा जाए तो मुख्य रूप से सरकार को पेट्रोल एवं डीजल से दो तरह के फायदे हो रहे हैं.

पहला, वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कम कीमत होने के कारण इसके आयात पर विदेशी मुद्रा कम खर्च करनी पड़ रही है.

दूसरा, पेट्रोल एवं डीजल पर अधिक कर आरोपित करके सरकार ज्यादा राजस्व कमा रही है. देश भर में पेट्रोल एवं डीजल के रोज मूल्य निर्धारण की सार्थकता आज सवालों के घेरे में है. सितम्बर का महीना शुरू हो चुका है. फिर भी तेल कारोबार से जुड़े लोगों को छोड़कर दूसरों को रोज पेट्रोल एवं डीजल के नये दर की जानकारी नहीं हो पा रही है. सरकार ने तेल कंपनियों को बेलगाम छोड़ दिया है, जिससे इन कंपनियों द्वारा कार्टेल बनाकर ग्राहकों की रोज जेब ढीली करने की संभावना से  इनकार नहीं किया जा सकता है. सरकार का कहना है कि इस नई व्यवस्था से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दामों में होने वाले उतार-चढ़ाव का कम असर पड़ेगा समीचीन नहीं लगता है. देखा जाए तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कम कीमत है, लेकिन सरकार उसपर कर लगाकर पेट्रोल एवं डीजल की कीमत को बढ़ा रही है.

इस संदर्भ में राजनीतिक हस्तक्षेप की बात करना भी गलत है, क्योंकि जब पेट्रोल एवं डीजल की कीमत कम की जाती है तो केवल कर की दर में कटौती की जाती है न कि तेल की दर में. सरकार जानती है कि इस नई व्यवस्था की जानकारी न तो आम आदमी को होगी और न ही वह रोज-रोज तेल की कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी पर हो-हल्ला मचाएगी. मीडिया के लिए भी तेल की बढ़ती कीमतों का रोज-रोज संज्ञान लेना आसान नहीं होगा और इस तरह से तेल की कीमतों में हर महीने 2 से 3 रुपये की बढ़ोतरी हो जाएगी. कहा जा सकता है कि पेट्रोल एवं डीजल के रोज मूल्य निर्धारण का सीधा फायदा सरकार को मिल रहा है. आज की तारीख में चीन, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन आदि देशों में भी ऐसी व्यवस्था नहीं है. ऐसे में भारत द्वारा इस नई व्यवस्था को लागू करना उसके जनविरोधी नीति को उजागर करता है, जिसकी पुष्टि रसोई गैस की कीमतों में की गई हालिया वृद्धि से भी होती है, जबकि भारत का संवैधानिक स्वरूप एक लोक कल्याणकारी देश का है.
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

सतीश सिंह
लेखक


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