वैश्विकी : फ्रांस में दक्षिणपंथी राष्ट्रपति के आसार

Last Updated 23 Apr 2017 02:56:38 AM IST

ऐसे समय जब फ्रांस अपने ज्ञात इतिहास के सबसे उथल-पुथल वाले और अप्रत्याशित राष्ट्रपति चुनाव के मुहाने पर है, एक आतंकवादी हमले से वह दहल उठा है.




वैश्विकी : फ्रांस में दक्षिणपंथी राष्ट्रपति के आसार

हालांकि फ्रांस के लिए आतंकवाद की यह कोई नई घटना नहीं है. लेकिन जिस वक्त यह हुआ है, उसने आतंकवाद और उसके सरमायेदारों को देश की प्रभुता पर खतरे के रूप में चिह्नित करते हुए फौरन सख्ती की जरूरत को रेखांकित कर दिया है.

इसके चलते राष्ट्रपति के कुल 11 उम्मीदवारों में से एक सुश्री मैरिन ली पेन को अचानक बढ़त मिल गई है, जो इसके पहले हुए सव्रे में दूसरे स्थान पर थीं. सुश्री पेन धुर दक्षिण पंथी नेशनल फ्रंट की प्रत्याशी हैं, जो फ्रांस में ट्रंप की छविधारक मानी जाती हैं. वह इस आतंकवादी घटना का उपयोग मुस्लिमों और आव्रजकों की आवाजाही के खिलाफ करेंगी. यानी ताजा घटना ने फ्रांस की सुरक्षा के बुनियादी कारकों के प्रति उनकी धारणा को एक तरह से प्रामाणिकता दे दी है. वह मौजूदा राष्ट्रपति फ्रांकोसिस होलांदे की शिथिल नीतियों पर हमलावर हैं और अपने को न झुकने वाली एक मजबूत लौह महिला के रूप में स्थापित कर लिया है. हालांकि यह अभी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि वह कितने फीसद मत अपनी ओर खींच पाएंगी.

फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव द्वि-चरणीय है. पहला दौर 23 अप्रैल यानी आज है, इसमें मतदाता 11 प्रत्याशियों में चुनाव करेंगे. दूसरे और आखिरी चरण का चुनाव सात मई को है, जिसमें अगर किसी को 50 फीसद से ज्यादा मत नहीं मिला (इसकी ज्यादा संभावना है) तो ज्यादा मत पाए दो लोगों के बीच मुकाबला होगा. यह मानने वाले लोग ज्यादा हैं कि अगर आतंकवाद की ताजा वारदात नहीं हुई होती तो सामान्य रूप में यह चुनाव यूरोपीयन समुदाय के प्रति फ्रांस के रवैये और नीतियों पर लड़ा जाता. ऐसा हो भी रहा था. लेकिन आतंकवाद अब बड़ा एजेंडा बन गया है.  फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि सुश्री ली पेन को हमले से अकेले ही फायदा होगा.

इसकी संभावना ज्यादा है कि सेंटर-राइट के उम्मीदवार फ्रांकोसिस फिलॉन अधिक फायदे में रहें. उनको आतंकवाद के मूल की समझ है. इस्लामिक पूर्णतावाद को परास्त करने के तरीकों पर लिखी किताब उनके गहरे अध्ययन की बानगी है और वह आतंकवाद विरोधी लड़ाई को सभ्यता के विरुद्ध युद्ध के रूप में विश्लेषित करने में हमेशा तीखेपन की हद तक मुखर रहे हैं. वहीं उनका पिछला शासकीय अनुभव भी देश के मिजाज को समझने में मदद दे रहा है. वह पूर्व प्रधानमंत्री रहे हैं और एक बार तो राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में उतर चुके हैं.

आशय यह कि फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में आतंकवाद एक केंद्रीय एजेंडा बन गया है. ज्यादा उम्मीद यही है कि यह निर्णायक फैक्टर साबित हो. ऐसे नेता की अगुवाई वाला फ्रांस आतंकवाद से लड़ाई के मसले पर भारत की चिंताओं से सहमत होगा. लेकिन मुसलमानों और वीजा पर फ्रांस आने वाले लोगों पर जो सख्ती होगी, उससे वैश्विक समुदायों की प्रतिक्रिया अवश्य प्रभावित होगी. इसका असर घरेलू राजनीति और अर्थ नीति पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि वैश्विक परिदृश्य भी प्रभावित होगा. फिलहाल, जिज्ञासा इस पर है कि फ्रांस किसको चुनता है-सुश्री ली पेन या फिलॉन को.

डॉ. दिलीप चौबे
लेखक


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