हिन्दुत्व के एजेंडे का अनुकरण

Last Updated 03 Apr 2017 06:36:09 AM IST

इस समय आप भाजपा के किसी समर्थक या कार्यकर्ता से नरेन्द्र मोदी सरकार के बारे में सवाल करिए, उसका उत्तर उत्साह से लबरेज मिलेगा.


बीजेपी का हिन्दुत्व का एजेंडा.

अटलबिहारी वाजपेयी सरकार से यह ठीक उलट स्थिति है. वाजपेयी सरकार के एक साल के अंदर ही समर्थकों में निराशा घर करने लगी थी. करगिल युद्ध के बाद आए राष्ट्रभक्ति के उफान ने फिर से राजग को सत्ता में पहुंचा दिया. लेकिन फिर एक साल पूरा होते-होते स्वयं संघ परिवार में ही सरकार को लेकर अंतर्विरोध उभरने लगा था. तत्कालीन संघ प्रमुख तक को सरकार के विरुद्ध बयान देना पड़ा. स्वदेशी जागरण मंच से लेकर भारतीय मजदूर संघ एवं वि हिन्दू परिषद तक सरकार की नीतियों के विरुद्ध सड़कों पर उतर रही थी.

2004 में भाजपा नेतृत्व वाले राजग की पराजय का मुख्य कारण समर्थकों और कार्यकर्ताओं की निराशा थी. उन्हें लगा कि वाजपेयी सरकार ने उनके एजेंडे पर कोई काम ही नहीं किया, बल्कि इसकी बात करने वालों का उपहास उड़ाया. नरेन्द्र मोदी सरकार के साथ इस समय ठीक विपरीत स्थिति है. कार्यकर्ताओं और समर्थकों का समर्थन अचानक उम्मीद से कहीं ज्यादा मजबूत हुआ है. तीन वर्ष आते-आते निश्चय ही केंद्र सरकार को लेकर उस तरह की उम्मीद और उत्साह नहीं हो सकता जो मोदी के नेतृत्व में भाजपा को विजय बनाने के समय था. लेकिन सबसे पहले योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने के कदम ने जो कुछ नाउम्मीदी थी, उसे क्षण में परिणत कर दिया. योगी सरकार द्वारा अवैध बूचड़खानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और एंटी रोमियो स्क्वॉयड की सक्रियता ने उत्साह को परवान चढ़ा दिया.

अगर इसमें कोई कसर थी तो गुजरात की विजय रूपानी सरकार द्वारा गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध ने उस उत्साह को और बढ़ा दिया. एंटी रोमियो स्क्वॉयड को लेकर चाहे मॉरल पुलिसिंग या नाम के आधार पर आलोचना की जाए जो भाजपा के समर्थक हैं, संघ परिवार के कार्यकर्ता हैं, उनके बीच संदेश यही है कि बिल्कुल सही दिशा में काम हुआ है. यानी अब लव जिहाद की संभावना उत्तर प्रदेश में खत्म हुई है. भारतीय राजनीति के दूसरे खिलाड़ी चुनाव के दौरान एंटी रोमियो स्क्वॉड का मजाक उड़ा रहे थे. लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिन्दुओं के बीच इस एक घोषणा ने भाजपा के लिए चमत्कार का काम किया.

एंटी रोमियो स्क्वॉयड के गठन की घोषणा ने उनमें उम्मीद जगाई कि भाजपा सत्ता में आएगी तो उनकी बहु-बेटियों की रक्षा होगी..हिन्दू लड़कियों-महिलाओं में अपनी सुरक्षा बोध का भाव जागृत हुआ. एंटी रोमियो स्क्वॉयड के जवानों ने कुछ ज्यादतियां या नासमझी भी की हैं, परंतु उसका केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में समर्थन मिल रहा है. जितना इसका विरोध करेंगे भाजपा का समर्थन उतना ही बढ़ेगा. मोदी को इसका आभास है, इसलिए उन्होंने इसे तुरंत गठित कराकर सक्रिय करा दिया. यही पक्ष अवैध बूचड़खाने पर भी लागू होता है. भाजपा के समर्थक वर्ग या कार्यकर्ताओं में मांसाहार करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन बड़े जानवरों को काटे जाने को लेकर उनका तीखा विरोध है. अवैध बूचड़खाने का व्यापक विरोध था. हिन्दू और मुसलमान दोनों के दरवाजे से पालतू जानवरों की चोरी प्रदेश में व्यापक पैमाने पर होती थी. इसकी जड़ लोग बूचड़खानों को ही मानते थे. किसान की एक भैंस चोरी हो जाए तो उसकी आर्थिक कमर टूट जाती है.



जब भाजपा ने घोषणा किया तो लगा था कि यह चुनावी घोषणा तक सीमित रह जाएगा. लेकिन योगी सरकार ने दृढ़ संकल्प दिखाया. यही नहीं वैसे वैध बूचड़खाने जो मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं, उनको भी सील किया जा रहा है. अब तो उत्तर प्रदेश की देखा-देखी अन्य राज्य भी अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं. इनमें भाजपा शासित राज्य आगे हैं. यह चल ही रहा है कि गुजरात सरकार का गोहत्या निषेध कानून पारित हो गया. कांग्रेस ने उसमें मदद की बजाय नासमझी में बहिष्कार किया. भाजपा यही चाहती थी कि विपक्ष इसका विरोध करे और वही हुआ. गुजरात को मिलाकर अब 11 राज्य हो गए हैं, जहां गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लग गया है. यह इतना कड़ा कानून है कि भय से लोग इससे बचेंगे. गोवंशीय पशुओं की हत्या करने या कराने वालों के लिए उम्र कैद का प्रावधान है. न्यूयनत सजा दस साल की रखी गई है. आर्थिक दंड लगेगा सो अलग. गोवंश की तस्करी, उसे रखने, खरीदने आदि के अपराध को अब गैर जमानती बना दिया गया है एवं सात से दस साल तक की सजा और पांच से दस लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान डाला गया है.

इसका महत्व तो है. महत्मा गांधी ने भी भारत के अपने सपनों में गोवध रहित देश की बात की है. हमारे संविधान के नीति-निर्देशक तत्व में भी राज्यों से गोहत्या को प्रतिबंधित करने का लक्ष्य पाने की उम्मीद की गई है. किंतु इससे परे हटकर जरा इन सारे कदमों को एक साथ मिलाइए और भाजपा के लिए इसके राजनीतिक महत्व को समझिए. भाजपा का साथ देने वाला वर्ग उससे यही अपेक्षा रखता था. वह चाहता है कि भाजपा अपने मूल हिन्दुत्व के एजेंडा पर आगे बढ़े. धारा 370 या समान नागरिक संहिता का भी महत्व है, पर वह बौद्धिक बहस में ज्यादा है. वैसे विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर राय मांगकर इसके आगे बढ़ा ही दिया है. उसके परिणाम पर हम आगे कभी चर्चा कर लेंगे. अभी जिन तीन कदमों की हमने चर्चा की, ये भले स्पष्ट दिखाई न दें, पर हैं हिन्दुत्व से जुड़े एजेंडा के ही कदम.

समझने वाले इसे समझ रहे हैं. जिनको इससे जो संदेश जाना चाहिए वह जा चुका है. वाजपेयी सरकार से यहीं भूल हुई. वह ऐसा कोई कदम उठाने से हिचकती रही, जिससे उस पर हिन्दुत्व का एजेंडा अपनाने का आरोप लगे. कोई माने या न माने लेकिन सच यही है कि आज तक भाजपा का मत मूलत: हिन्दू मत है. उसे सुदृढ़ करना है तो इसी मत को. उसे चुनाव में विजय के लिए मताधार विस्तृत करना है तो इसी समाज में. शेष समाज का बाद में देख लेंगे. जब 2014 में हिन्दू मतों से बहुमत हासिल हो सकता है तो 2019 में उसका और विस्तार क्यों नहीं हो सकता. इसी वर्ष अंत में गुजरात चुनाव है, उसका परिणाम इसका प्रभाव प्रमाणित कर देगा.

 

 

अवधेश कुमार


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