कचरा निस्तारण की जुगत

Last Updated 04 Sep 2015 06:21:49 AM IST

कूड़े कचरे का अपेक्षित व वैज्ञानिक उपयोग सुनिश्चित हो जाने पर भविष्य में यह राष्ट्रीय आय के बड़े संसाधन के तौर पर विकसित हो जाये तो अतिशयोक्ति न होगी.


कूड़े कचरे का अपेक्षित व वैज्ञानिक उपयोग सुनिश्चित हो.

भाभा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डॉ एस.पी. काले की मानें तो देश में कूड़ा प्रबंधन के क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध व तकनीक अपनाने की जरूरत है. कूड़ा प्रबंधन में वैज्ञानिक शोध के सार्थक परिणाम सामने आये हैं. चेन्नई, मुम्बई व पुणे आदि शहरों में वैज्ञानिक तौर-तरीकों ने कूड़ा प्रबंधन की दशा-दिशा ही बदल दी है. आंकलन है कि देश में रोजाना पैदा हो रहे एक लाख टन कचरे का उचित वैज्ञानिक प्रबंधन किया जाये तो रोजाना दो लाख गैस सिलेंडर तैयार हो सकते हैं. इससे जहां गैस उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, वहीं कचरा निस्तारण-प्रबंधन को भी बल मिलेगा.

डॉ काले की मानें तो शोध के उपरांत कचरा निस्तारण के लिए खास बकेट (विशेष टोकरी) विकसित की गयी है. टोकरी का उपयोग घरेलू कचरा निस्तारण के लिए किया जा सकता है. इसमें खाद्य सामग्री का कचरा-खास तौर से फल-सब्जियों के छिलके एकत्र हो सकते है. टोकरी में पड़े कचरे से न सडांध आयेगी और न संक्रमण फैलेगा और एक से दो सप्ताह के बीच यह खाद में बदल जाएगा जिसका उपयोग घरेलू या सार्वजनिक बाग-बगीचे में किया जा सकता है. ठोस कचरा, इलेक्ट्रानिक कचरा, चिकित्सीय और प्लास्टिक कचरे का भी तरीके से निस्तारण किया जा सकता है. इनमें से कुछ से भले कोई लाभ न हो लेकिन उसका अपेक्षित निस्तारण तो हो ही जायेगा.

प्रदूषण कूड़ा-कचरा जनित हो या अन्य किसी प्रकार का, पर्यावरण से लेकर इंसान तक सभी के लिए खतरनाक व संक्रमण का कारक है. यह प्रदूषण कैंसर, एलर्जी, अस्थमा सहित अनेक व्याधियां देता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर करता है. उद्योग उत्पादित प्रदूषण ग्लोबल वार्मिग का भी मुख्य वाहक है. रासायनिक उद्योग, तेल रिफायनरीज, प्लास्टिक-पॉलीथिन उद्योग, कार-मोटर साइकिल उद्योग, पशु वधशाला आदि खतरनाक प्रदूषण पैदा करते हैं. इन कल-कारखानों से हाइड्रोकार्बन, भारी तत्व में लेड, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक, आर्सेनिक, बैनजीन आदि प्रदूषणकारी तत्व उत्सर्जित होते हैं.

केन्द्र से लेकर प्रदेश सरकारें तक कचरा निस्तारण के प्रति चिंता जताती रही हैं लेकिन अब तक सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है. एक-डेढ़ दशक पहले केन्द्र सरकार ने जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन के तहत देश के नगर निकायों को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की परियोजनाएं दी थीं लेकिन अधिसंख्य नगर निकायों में अब तक परियोजनाएं अपेक्षित आकार नहीं ले सकीं हैं. देश में प्रदूषण पर अंकुश या नियंत्रण के लिए कानूनों की कमी नहीं है लेकिन समस्या उन्हें सख्ती से अमल में लाने की है. हालांकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने देश के दो हजार उद्योगों को नोटिस जारी कर कहा है कि उद्योग स्थल पर ऐसे संयंत्र लगाये जाएं जिससे प्रदूषण के स्तर को मापा जा सके. मंत्रालय की मानें तो एक हजार उद्योग संचालकों ने संयंत्र लगा भी लिये लेकिन मंत्रालय के लिए नोटिस जारी करना ही पर्याप्त नहीं. उस पर अमल भी होना चाहिए.

आज हालात यह हैं कि खास तौर से राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण गंभीरतम स्तर तक पहुंच चुका है. हालांकि इसका संज्ञान लेते हुए सरकार ने दिल्ली में डीजल चालित वाहनों के परिचालन पर रोक लगाने की कोशिश की है लेकिन इससे आगे कहीं जरूरी उपाय कठोरता से अपनाने होंगे. वैश्विक स्तर की बात करें तो लंदन में पिछले वर्ष वायु प्रदूषण के विभिन्न कारकों से कई मौतें हो गयीं. कैलिफोर्निया सहित अमेरिका के कई शहरों में भी प्रदूषण चरम पर है. विशेषज्ञों की मानें तो दुनिया के बीस सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से 18 एशियाई देशों में हैं. इनमें सर्वाधिक तेरह शहर भारत के हैं. एशियाई देशों के 18 शहरों में से 13 हिन्दुस्तान के होने से देश के सम्पूर्ण परिवेश के प्रदूषण का आंकलन खुद-ब-खुद लग सकता है कि आखिर हम पर्यावरण संवर्धन व प्रदूषण नियंत्रण संबंधी नीतियों, कानून, उनका अमल, चिंतन व विचार-विमर्श के स्तर पर कहां खड़े हैं.

देश के नीति-नियंताओं को पर्यावरण संवर्धन व प्रदूषण नियंत्रण के गम्भीर मसले पर गम्भीरता से विचार कर व्यवस्थायें लागू करनी चाहिए ताकि देश का परिवेश प्रदूषण मुक्त हो सके. व्यवस्थापकों को कानून बनाने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, उसके क्रियान्वयन तक निगहबानी सुनिश्चित करनी चाहिए.

 

रामेन्द्र सिंह चौहान
लेखक


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