गरीबी मिटाने में मिट न जाएं गरीब
हर बजट में वित्त मंत्री गरीबी मिटाने की बात करते हैं और इस बार भी करेंगे पर बढ़ती महंगाई के बोझ तले कहीं गरीब ही न मिट जाएं.
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इसका भी उन्हें ध्यान रखना होगा. जब तक सरकार ईमानदारी से गरीबों की सही संख्या का पता नहीं लगा सकेगी तब तक उनकी खातिर बजट में मोटी धनराशि निकालना महज आंकड़ों की बाजीगरी ही कहलाएगा. इस बार भी अति गरीबों के नाम पर चलाई जाने वाली एक दर्जन से ज्यादा योजनाओं के लिए 32 हजार करोड़ रुपए से अधिक बजट में दिए जाने वाले हैं. मूल सवाल यह है कि इतनी भारी रकम के बावजूद क्या गरीबों की माली हालत सुधरेगी ? वह भी तब जब सरकार शहर में 32 रुपए और गांव में 28 रुपए प्रतिदिन कमाने वाले व्यक्ति को अति गरीब नहीं मानती हो. इस पर संसद के भीतर और बाहर खूब उपहास के बावजूद सरकार के रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया है.
गरीबों की संख्या और सही पहचान जाने बिना फीकी रहेगी गरीबी उन्मूलन की कवायद
गरीबों और गरीबी की सही पहचान की बात इसलिए हो रही है कि इसके प्रमाण पत्र के बिना तो सरकार 200 रुपए की बुजुर्ग पेंशन और 300 रुपए (तीन महीने पहले ये भी 200 रुपए ही थी) की विधवा पेंशन तक नहीं देती है. मकान, रोजगार, बिजली और स्वास्थ्य बीमा के लिए तो गरीब होने का प्रमाण पत्र होने के साथ-साथ और भी पापड़ बेलने पड़ते हैं. अब जबकि सब्सिडी के बदले नकदी हस्तांतरण की तरफ सरकार बढ़ ही चुकी है तो गरीब की सही पहचान और भी जरूरी हो गई है. ये उदाहरण भी हमारे सामने हैं कि पीछे कई जगह संपन्न और दबंगों ने अपने नाम अति गरीबों की सूची में लिखा लिए थे.
सरकार ने पिछले साल अति गरीबों के लिए चलाई जाने वाली 13 योजनाओं के लिए 29 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा दिए थे. इनमें सबसे ज्यादा 11,075 करोड़ रुपए अति गरीबों के लिए बनाए जाने वाले इंदिरा आवास के लिए थे. ग्रामीण आजीविका मिशन की मद में 3915 करोड़ रुपए दिए गए. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम की राशि में सीधे 37 फीसद की वृद्धि की गई थी और 8447.30 करोड़ रुपए दिए. गरीबों के घर बिजली पहुंचाने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में 4900 करोड़ रुपए दिए गए थे. अपनी कमाई से घण चलाने वाले कमाने वाले अति गरीब की असामयिक मौत पर दी जाने वाली सहायता राशि भी पिछले बजट में 10 हजार से बढ़ाकर 20 हजार रुपए की गई थी. इसके अतिरिक्त 6.52 करोड़ गरीबों की खातिर सार्वजनिक वितरण पण्राली के तहत राज्यों को खाद्यान्न दिया जा रहा है. 2.43 करोड अति गरीबों को अंत्योदय योजना के तहत 35 किलोग्राम अनाज हर महीने देने की भी व्यवस्था की गई है.
सक्सेना समिति 67% तो तेंदुलकर समिति 37 फीसद को मानती है गरीब
इस सबके बीच गरीबों की माली हालत सुधारने से ज्यादा अभी इसकी ही बहस खत्म नहीं हुई है कि अति गरीब (बीपीएल) कौन हैं और इनकी वास्तविक संख्या क्या है. कभी इसके लिए 2400 कैलोरी के भोजन को मापदंड बनाया जाता है और कभी कच्चा घर होने को. गरीबी पर यह भ्रम कहीं और से नहीं सरकार की बनाई विभिन्न समितियों से ही उपजा है. जहां एनसी सक्सेना समिति बताती रही कि 67 फीसद परिवार गरीब हैं वहीं सुरेश तेंदुलकर समिति ने सिर्फ 37 फीसद व्यक्तियों को गरीब माना. यानी दोनों समितियों की राय में थोड़ा नहीं दोगुने का अंतर रहा. इस प्रकार से सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) खाद्य सुरक्षा कानून पर विचार करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि गांव की आधी आबादी ही गरीब है.
24 रुपए प्रतिदिन कमाई वाले फार्मूले से नहीं बनेगी बात
गरीब की आमदनी और गरीबी के आंकड़ों को लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट की डांट भी खा चुकी है. सरकार के पास गरीबी के सही आंकड़े नहीं हैं वह अभी तेंदुलकर समिति को आधार मानकर ही यह कह रही है कि गरीब घट गए हैं और इनकी संख्या 28 फीसद रह गई है. इसे कैसे नजरंदाज किया जा सकता है कि जिस तेंदुलकर समिति के फार्मूले पर सरकार गरीबी का आकलन करती है वह स्वयं कह गए हैं कि देश का हर तीसरा व्यक्ति गरीब है. इस बात पर भी गौर करना होगा कि मुद्रास्फीति का रिश्ता गरीबी से है और खाने-पीने की चीजें महंगी होने से गरीबी ज्यादा बढ़ती है. जहां तक गरीबों की सही संख्या और गरीब की पहचान की बात है उसको लेकर सामाजिक-आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना अभी चल ही रही है. बिना कागज-कलम के हो रही यह जनगणना टेबलेट पर हो रही है. इसमें गरीब परिवारों को तीन तरह की रैंकिंग दी जा रही है. ‘ए’ रैंकिंग पर परिवार को अति गरीब की सूची से बाहर रखा जाएगा. इसमें 8 बिंदू हैं.
अगर परिवार के पास दोपहिया वाहन, मशीन से चलने वाला कृषि उपकरण, 50 हजार रुपए से अधिक मानक सीमा का किसान क्रेडिट कार्ड, परिवार का कोई सदस्य सरकारी नौकरी में हो,पंजीकृत कृषि उद्योग, परिवार का सदस्य 10 हजार मासिक कमाता हो,आयकर देते हों या फिर व्यवसायिक कर चुकाते हो. ‘बी’ रैंकिंग वाला परिवार अतिगरीब में स्वत: शामिल हो जाएगा. इसमें बेघर परिवार, निराश्रित/भिक्षुक, मैला ढोने वाले,आदिम जनजातीय समूह और कानून रूप से मुक्त किए गए बंधुआ मजदूर शामिल किए जाएंगे. तीसरी रैंकिंग सी है जिसमें सबसे अति गरीबी के लिए परिवार को उच्च प्राथमिकता दी जाएगी. ये हैं, कच्ची दीवारों और कच्ची छत वाले एक कमरे में रह रहे परिवार. परिवार में 16-59 वर्ष का कोई वयस्यक नहीं है.
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवार. ऐसे परिवार जिनमें 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई वयस्यक साक्षर नहीं है. भूमिहीन परिवार जो अपनी ज्यादातर कमाई दिहाड़ी मजदूरी से प्राप्त करते हैं. इसे मई 2012 तक पूरा हो जाना था, लेकिन इसमें अभी और वक्त लगेगा. इस वक्त सरकार के पास गरीबी से संबंधित 2002 के ही आंकड़े हैं जिन पर सरकार को भी संदेह होता है. इस पर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कहते हैं कि गरीबी का जो पुराना सर्वे है उसकी सीमाएं थीं और नए सर्वे में इन खामियों को दूर करने का प्रयास किया गया है.
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