प्रमोटर और विक्रेता दोनों जवाबदेह : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 01 Apr 2019 05:18:11 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपार्टमेंट्स का निर्माण करने वाली कंपनी तथा बेचने वाली कंपनी-दोनों ही उपभोक्ता के प्रति जवाबदेह हैं।


सुप्रीम कोर्ट

बिल्डर यह नहीं कह सकता कि उसके प्रोजेक्ट में निर्मित फ्लैटों को बेचने वाली कंपनी का उपभोक्ता से कोई लेनादेना नहीं है।
जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की बेंच ने एसोसिएशन फॉर कन्ज्यूमर वेलफेयर एंड एड की अपील पर यह निर्णय दिया। एसोसिएशन ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग(एनसीडीआरसी) के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बिल्डर थ्री सी यूनिवर्सल डिवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड का कहना था कि नोएडा के सेक्टर 110 स्थित लोटस पनाश प्रोजेक्ट का निर्माण उसकी सहयोग कंपनी ग्रेनाइट गेट प्रॉपर्टीज प्राईवेट लिमिटेड कर रही है। उसका इस प्रोजेक्ट से कोई लेनादेना नहीं है। एनसीडीआरसी ने जुलाई 2018 में दिए आदेश में उसे पक्षकार की सूची से अलग कर दिया था। जबकि फ्लैट खरीदारों का कहना था कि थ्री सी कंपनी ही वास्तविक बिल्डर है। उसकी के लेटर हैड पर उपभोक्ताओं को आवंटन पत्र जारी किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने रियल इस्टेट अधिनियम, 2016(रेरा) के विभिन्न प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा कि अपार्टमेंट्स का निर्माण करने वाली कंपनी और उसे बेचने वाली कंपनी-दोनों प्रमोटर के दायरे में आती हैं। इसलिए इस समय यह नहीं कहा जा सकता कि थ्री सी कंपनी का लोटस पनाश प्रोजेक्ट से कोई लेना देना नहीं है। उपभोक्ताओं के दावे पर एनसीडीआरसी क्या रुख अपनाता है, यह उसके फैसले पर निर्भर करता है। इसलिए एनसीडीआरसी ने थ्री सी को द्वितीय पक्षकार के रूप में हटाकर गलती की। एनसीडीआरसी के 31 जुलाई, 2018 के आदेश को निरस्त किया जाता है। थ्री सींपनी द्वितीय प्रतिवादी के रूप में पक्षकार बनी रहेगी।
 एसोसिएशन का कहना था कि थ्री सींपनी प्रोजेक्ट की मुख्य प्रमोटर है। उसका दायित्व प्रोजेक्ट पूरा करना है। आवंटियों का करार भी थ्री सी कंपनी के साथ हुआ है। निसंदेह, ग्रेनाइट गेट प्रॉपर्टीज ने प्रोजेक्ट की मार्केटिंग की है। लेकिन दोनों ने मिलकर अपने आप को थ्री सी कंपनी के रूप में पेश किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों कंपनियों के बीच 15 दिसंबर, 2009 को लोटस पनाश परियोजना को लेकर करार भी हुआ। लेकिन थ्री सी कंपनी का तर्क था कि उपभोक्ताओं ने उसकी सेवा का उपयोग नहीं किया है, लिहाजा वह उपभोक्ता कानून के दायरे में नहीं आते।
लोटश पनाश के फ्लैट खरीदारों ने एसोसिएशन का गठन करके एनसीडीआरसी में दावा दायर किया है। जिसमें बिल्डर द्वारा अतिरिक्त राशि मांगने का विरोध किया गया है। बिल्डर द्वारा तयशुदा अवधि में फ्लैट पर कब्जा ने देने का भी मामला आयोग के समक्ष ले जाया गया है।

विवेक वार्ष्णेय/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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