आजादी की जंग का शंखनाद ‘अगस्त क्रांति’

Last Updated 09 Aug 2010 12:02:00 AM IST

अगस्त क्रांति आंदोलन की शुरूआत नौ अगस्त 1942 को हुई थी। मुम्बई के जिस पार्क से यह आंदोलन शुरू हुआ,उसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया है।




अगस्त क्रांति दिवस पर विशेष

द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन लेने के बावजूद जब अंग्रेज भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में आजादी की अंतिम जंग का ऐलान कर दिया जिससे ब्रितानिया हुकूमत में दहशत फैल गई।

अगस्त क्रांति आंदोलन की शुरूआत नौ अगस्त 1942 को हुई थी,इसीलिए इतिहास में नौ अगस्त के दिन को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है। मुम्बई के जिस पार्क से यह आंदोलन शुरू हुआ,उसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया है।

अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए चार जुलाई 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि यदि अंग्रेज भारत नहीं छोड़ते हैं तो उनके खिलाफ व्यापक स्तर पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाए।

इस प्रस्ताव को लेकर हालांकि पार्टी के भीतर मतभेद पैदा हो गए और प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ दी। पंडित जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आजाद प्रस्तावित आंदोलन को लेकर शुरूआत में संशय में थे। उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर इसके समर्थन का फैसला किया।

उधर सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ. राजेंद्र प्रसाद यहां तक कि अशोक मेहता और जयप्रकाश नारायण जैसे वरिष्ठ गांधीवादियों और समाजवादियों ने इस तरह के किसी भी आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। आंदोलन के लिए कांग्रेस को हालांकि सभी दलों को एक झंडे तले लाने में सफलता नहीं मिली। मुस्लिम लीग,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिन्दू महासभा ने इस आह्वान का विरोध किया।

आठ अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बम्बई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया।

ब्रितानिया हुकूमत इस बारे में पहले से ही सतर्क थी इसलिए अगले ही दिन गांधी जी को पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर दिया गया। कांग्रेस कार्यकारी समिति के सभी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर अहमदनगर किले में बंद कर दिया गया। लगभग सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए,लेकिन युवा नेत्री अरूणा आसफ अली हाथ नहीं आईं और उन्होंने नौ अगस्त 1942 को मुम्बई के गवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद कर दिया।

गांधी जी ने हालांकि अहिंसक रूप से आंदोलन चलाने का आह्वान किया था लेकिन देशवासियों में अंग्रेजों को भगाने का ऐसा जुनून पैदा हो गया कि कई स्थानों पर बम विस्फोट हुए, सरकारी इमारतों को जला दिया गया। बिजली काट दी गई तथा परिवहन और संचार सेवाओं को भी ध्वस्त कर दिया गया। जगह जगह हड़ताल की गई।

कई जगहों पर लोगों ने जिला प्रशासन को उखाड़ फेंका। गिरफ्तार किए गए नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को जेल तोड़कर मुक्त करा लिया तथा वहां स्वतंत्र शासन स्थापित कर दिया।

एक तो अंग्रेजों की रीढ़ द्वितीय विश्व युद्ध में टूट रही थी,दूसरी आ॓र भारत छोड़ो आंदोलन उनकी चूलें हिलाने में लगा था। इस आंदोलन से अंग्रेज बुरी तरह बौखला गए। उन्होंने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों और निर्दोष लोगों को गोली से उड़ा दिया तथा देशभर में एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

इसके बावजूद आंदोलन पूरे जोश के साथ चलता रहा, लेकिन गिरफ्तारियों की वजह से कांग्रेस का समूचा नेतृत्व शेष दुनिया से लगभग तीन साल तक कटा रहा। गांधी जी का स्वास्थ्य जेल में अत्यधिक बिगड़ गया,लेकिन फिर भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखने के लिए 21 दिन की भूख हड़ताल की।

1944 में गांधी जी का स्वास्थ्य बेहद बिगड़ जाने पर अंग्रेजों ने उन्हें रिहा कर दिया।

1944 के शुरू तक अंग्रेजों ने हालात पर काबू पा लिया जिससे बहुत से राष्ट्रवादी अत्यंत निराश हुए। गांधी जी और कांग्रेस को मोहम्मद अली जिन्ना,मुस्लिम लीग,वामपंथियों और अन्य विरोधियों की आलोचना का सामना करना पड़ा।

 



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