गुडफ्राइडे यानी बलिदान का दिन

Last Updated 02 Apr 2010 08:38:00 PM IST

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, जब-जब दुनिया में धर्म का ह्रास होता है और पाप कर्म की वृद्धि होती है, तब परमेश्वर को किसी न किसी रूप में अवतार लेना पड़ा है। कुछ ऐसा ही क्रश्चियन धर्म में भी मान्यता है।


अनिता कर्ण सिन्हा

कहा जाता है कि जब धरती पर मनुष्य पथभ्रष्ट होने लगा, धर्म के नाम पर हिंसा, आतंक, भ्रष्टाचार, अत्याचार और अंधविश्वास बढ़ गया तब परमेश्वर को शांति और प्रेम के लिए यीशु को अपने पुत्र के रूप भेजना पड़ा और यीशु ने कांटों का ताज पहन कर, सूली पर चढ़कर मानवता की सीख दी।
'गुड फ्राइडे’ इसी मानवता के लिए प्राण का न्यौछावर करने का दिन है। आज से दो हजार साल पहले धर्म और जाति के नाम पर खून-खराबा होने लगा था। लोग स्वार्थ में अंधे होकर पाप कर्म में लिप्त हो गये। जगह-जगह आतंक और अत्याचार बढ़ने लगा,तब पिता परमेश्वर ने निर्दोषों की रक्षा और भटके हुए लोगों को संमार्ग पर लाने के लिए अपने पुत्र की बलि देने का निर्णय किया। उन्होंने यीशु को धरती पर भेजकर मनुष्य को पाप कर्म से मुक्त होकर अपना जीवन सुधारने का मौका दिया।
जैसा कि कहा जाता है यीशु मसीह का जन्म ‘पलिस्तीन’ यानी इजराइल के एक गांव बैतलहम में अलौकिक शक्ति से मरियम के माध्यम से हुआ। उस वक्त यीशु मसीह की माता मरियम और यूसुफ यानी यीशु के पिता की मंगनी ही हुई थी। दोनों के संयोग से पहले ही मरियम के गर्भवती होने की वजह से यूसूफ ने उन्हें त्यागने का मन बना लिया, लेकिन इससे पहले ही प्रभु के स्वर्गदूत ने यूसूफ को स्वप्न में मरियम के गर्भ में पवित्र आत्म के होने और उसकी रक्षा करने का आदेश दिया।
यूसुफ ने प्रभु के दुत की आज्ञा मानी और जन्म के बाद बालक का नाम “यीशु” रखा। बालक यीशु को बैतलहम के राजा ‘हेरोदेस’ ने मरवाने की पर संभव प्रयास किया, लेकिन इससे पहले ही यूसूफ प्रभु के दूत के आदेश के पर मरियम और यीशु को लेकर मिस्र चले गये और राजा हेरोदेस के मरने तक मिस्र में रहे। फिर पुन: स्वप्न में चेतावनी पाकर गलील देश में चले गए और नासरत नाम के नगर में जा बसे।  
यीशु जगह-जगह जाकर लोगों को मानवता और शांति का संदेश देने लगे। उन्होंने धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने वाले फरीसियों यानी धर्मपंडितों को मानवजाति का शत्रु कहा। अज्ञानता और अंधविश्वास को मानवता का कलंक कहा। उनके संदेशों से परेशान होकर धर्मपंडितों ने उन्हें धर्म की अवमानना का आरोप लगाकर उन्हें मौत की सजा दी।
पर यीशु अपनी नियति से अवगत थे।  
यीशु मसीह को कई तरह की यातनाएं दी गयीं। सैनिकों ने यीशु का उपहास उड़ाया। यीशु को उनके कपड़े उतारकर लाल चोंगा पहनाया गया। कांटों का ताज उनके सिर पर रखा गया। इतना ही नहीं यीशु के मुंह पर थूका गया और उनके सर पर सरकण्डों से प्रहार किये गये। इसके बाद यीशु क्रूस को अपने कंधे पर उठाकर ‘गोल गोथा’ नामक जगह ले गये। जहां उन्हें दिन के बारह बजे दो डाकूओं के साथ एक को दाहिनी और दूसरा को बाई तरफ क्रूसों पर चढ़ा दिया गया। जिस दिन यीशु को सूली पर चढ़ाया गया वह शुक्रवार को दिन था।
तीन घंटे बाद यीशु ने ऊंची आवाज में परमेश्वर को पुकारा ‘हे पिता मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंपता हूं,’ इतना कहकर उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। मानवता के लिए बलिदान का वो दिन  गुडफ्राइडे था। ईसाई  धर्म के अनुयायी यीशु को उनके त्याग के लिए याद करते हैं। मौत के बाद यीशु को कब्र में दफना दिया गया, हैरानी तो तब हुई जब तीन दिन बाद यानी रविवार को यीशु जीवित हो उठे। कहते हैं पुन: जीवित होने के बाद यीशु चालीस दिन तक अपने शिष्यों और मित्रों के साथ रहे और अंत में स्वर्ग चले गये।


शुरू में किश्चियन चर्च ईस्टर रविवार यानी उनके जीवित होने के दिन को ही पवित्र दिन के रूप में मानते थे। किंतु चौथी सदी से गुडफ्राइडे सहित ईस्टर के पूर्व आने वाले प्रत्येक दिन को पवित्र घोषित किया गया।
गुड फ्राइडे को होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे और ग्रेट फ्राइडे भी कहते हैं। इस दिन तीन बजे से छह बजे तक यह पर्व मनाया जाता है। इस मौक पर चर्च को सजाया जाता है और पर्व की शुरुआत बाइबिल के पाठ से की जाती है। इसके बाद पवित्र क्रूस यात्रा शुरू होती है। फिर वापस चर्च आकर खत्म होती है। इसके बाद प्रभु के बलिदान को याद किया जाता है।



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