काकोरी कांड:जीये वतन के लिए,मरे वतन के लिए

Last Updated 19 Dec 2011 12:31:05 PM IST

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास आजादी के मतवालों के एक से बढ़कर एक कारनामों से भरा पड़ा है.


शहीद राम प्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला खान के नाम इसे और भी गौरवमयी बना देते हैं.

काकोरी शहादत 19 दिसंबर पर विशेष

जंग-ए-आजादी की इसी कड़ी में 1925 में एक महत्वपूर्ण घटना घटी, जब नौ अगस्त को चंद्रशेखर आजाद,राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया.

इतिहासकार हरिशंकर प्रसाद के अनुसार इन जांबाजों ने जो खजाना लूटा,दरअसल वह हिन्दुस्तानियों के ही खून पसीने की कमाई थी

जिस पर अंग्रेजों का कब्जा था, लूटे गए धन का इस्तेमाल क्रांतिकारी हथियार खरीदने और जंग-ए-आजादी को जारी रखने के लिए करना चाहते थे. इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के नाम से जानी गई.

ट्रेन से खजाना लुट जाने से ब्रितानिया हुकूमत बुरी तरह तिलमिला गई और अपनी बर्बरता तेज कर दी. आखिर इस घटना में शामिल सभी क्रांतिकारी पकड़े गए सिर्फ चंद्रशेखर आजाद हाथ नहीं आए.

हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एचएसआरए) के 45 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया जिनमें से राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई.

गोरी हुकूमत ने पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया जिसकी बड़े पैमाने पर निन्दा हुई. डकैती जैसे अपराध में फांसी की सजा अपने आप में एक विचित्र घटना थी. फांसी के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख मुकर्रर हुई,लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी दे दी गई.

राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी दी गई.

रोशन सिंह को भी 19 दिसंबर को फांसी पर लटका दिया गया. क्रान्तिकारी बिस्मिल,अशफाक व रोशन उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे. 

जीवन की अंतिम घड़ी में भी इन महान देशभक्तों के चेहरे पर मौत का कोई भय नहीं था. दोनों हंसते-हंसते भारत मां के चरणों में अपने प्राण अर्पित कर गए.

काकोरी कांड में शामिल सभी क्रांतिकारी उच्च शिक्षित थे. बिस्मिल जहां प्रसिद्ध कवि थे वहीं भाषाई ज्ञान में भी निपुण थे. उन्हें अंग्रेजी,  हिन्दुस्तानी, उर्दू और बांग्ला भाषा का अच्छा ज्ञान था. अशफाक उल्ला खान इंजीनियर थे.
  
क्रांतिकारियों ने काकोरी की घटना को काफी चतुराई से अंजाम दिया था. इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल लिए थे.

बिस्मिल ने अपने चार अलग-अलग नाम रखे और अशफाक ने अपना नाम कुमार जी रखा था. प्रसाद के अनुसार इन दोनों वीरों की शहादत ने देशवासियों के मन में क्रांति की एक अजीब सी लहर पैदा कर दी थी.



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