परमाणु बिजली परियोजनाओं के खतरे

Last Updated 05 Oct 2011 12:39:13 AM IST

देश में परमाणु बिजली परियोजनाएं डर का पर्याय बन रही हैं.


डर जापान की फुकुशिमा दुर्घटना के कारण फैले परमाणु विकिरण का भी है और गरीब आदिवासी, किसान-मजदूरों की रोजी-रोटी का भी. यही नहीं, मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में निर्माणाधीन जिन तीन बिजली परियोजनाओं का स्थानीय आदिवासी बहुल समाज विरोध कर रहा है, वहां आंदोलन कुचलने के लिए एक केंद्रीय मंत्री राज्य सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि छिंदवाड़ा को नक्सल प्रभावित जिला घोषित किया जाए. यानी अपने अधिकारों की लड़ाई प्रजातांत्रिक तरीकों से लड़ रहे किसान-नेताओं को नक्सली बनाए जाने की साजिश चल रही है. यानी अब तक प्रभावितों को विस्थापन का ही दंश झेलना पड़ता था, अब नक्सली बना दिए जाने का अभिशाप भी भोगेंगे ?

परमाणु बिजलीघरों के निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं को लेकर हाल में दो मत सामने आये हैं. दोनों ही राजनीतिक परिप्रेक्ष्य के बावजूद मत भिन्नता रखते हैं. एक लोकहित में सीधे इन परियोजनाओं की नए सिरे से समीक्षा की बात कर रहा है. इस कड़ी में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने कुडनकुलम परियोजना को लेकर प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर परियोजना का काम तब तक रोक देने का आग्रह किया है, जब तक इलाके के लोग आस्त नहीं हो जाते. क्षेत्र की जनता परियोजना बंद करने की मांग कर रही है. जयललिता ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने के अलावा एक कदम आगे बढ़ राज्य मंत्रिमंडल से इसके लिए बाकायदा प्रस्ताव भी पारित करा दिया.

कुडनकुलम में जमीन अधिग्रहण का काम पूरा हो चुका है. दावा है कि बिजलीघर के परमाणु ताप से समुद्री मछलियों का आहार-प्रजनन प्रभावित नहीं होगा. लेकिन दुर्घटनावश विकिरण फैलने की आशंका के अलावा लोगों की चिंता वाजिब है कि परमाणु ताप से यदि समुद्री मछलियां प्रभावित हुई तो स्थानीय लोगों की जीविका संकट में आ जाएगा. यद्यपि कहा जा रहा है कि भारत-रूस के संयुक्त उपक्रम से जुड़ी यह परियोजना अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानदंडों के अनुसार बन रही है लेकिन सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना रूस के ही चेरनोबिल में करीब ढाई दशक पहले घटी थी, जिसका अभिशाप आज भी स्थानीय लोग भोग रहे हैं.

ममता बनर्जी ने भी पश्चिम बंगाल की हरिपुर परियोजना ठुकरा दी है. इसके पहले जैतापुर परमाणु परियोजना के विरुद्ध आंदोलन से प्रत्यक्ष जुड़कर शिवसेना आग में घी का काम कर चुकी है. केरल सरकार ने भी आदिवासियों के हित में कदमताल मिला बिजली कंपनियों की मंशा उजागर की है. मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कैबिनेट की बैठक बुला सुजलोन ऊर्जा लिमिटेड के वे सब फैसले रद्द कर दिये, जिनके मार्फत गलत व मनमाने तरीकों से पलक्कड़ जिले के अट्टापड्डी गांव के आदिवासियों की जमीनें हथियाई गई थीं. इस क्रांतिकारी फैसले में आदिवासियों को जमीनें तो वापिस होंगी ही, ऊर्जा उत्पादन के लिए लगी पवन चक्कियों का संचालन केरल राज्य विद्युत मंडल करेगा और आमदनी में आदिवासियों की भी साझेदारी होगी. इस जनहितकारी निर्णय में प्रभावितों की आजीविका से जुड़ी तात्कालिकता समझी गयी है.

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने दावा किया है कि तीन बड़ी विद्युत परियोजनाओं के लिए इस अंचल के 15 आदिवासी बहुल गांवों की कृषि भूमि अधिग्रहीत की गई है. किसान इसका विरोध कर रहे हैं. परियोजनाओं का विस्तार छिंदवाड़ा के अमरवाड़ा और दमुआ विकास खंडों में है. आजीविका के सवाल पर आंदोलन का दायरा विस्तार पा रहा है और  निशाने पर कमलनाथ हैं क्योंकि किसानों का आरोप है कि वह परियोजनाओं के पक्ष में सीधे खड़े हैं. आंदोलन खत्म करने के लिए पहले हिंसक वारदातें कराई गईं पर जब कामयाबी नहीं मिली तो अब छिंदवाड़ा जिले को नक्सलवाद प्रभावित जिला घोषित करवाने की कोशिश है.

महाराष्ट्र में भी बिजली परियोजनाओं को लेकर सवा लाख एकड़ खेती की जमीन पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. विदर्भ क्षेत्र में 85 थर्मल पॉवर परियोजनाएं प्रस्तावित हैं. इनमें  से एक-डेढ़ दर्जन परियोजनाओं पर काम भी शुरू हो गया है. 50 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि परियोजनाओं की भेंट चढ़ चुकी है. महाराष्ट्र में बिजली की समस्या से मुक्ति के लिए 7000 मेगावाट बिजली की अतिरिक्त जरूरत है, जबकि योजनाएं 55 हजार मेगावाट के लिहाज से बन रही हैं. इससे विदर्भ में पानी का संकट तो पैदा होगा ही, बड़े पैमाने पर पर्यावरण भी दूषित होगा. कोयले से बिजली का उत्पादन करने वाली इन परियोजनाओं से चार लाख 67 हजार मीट्रिक टन राख निकलेगी, जिससे खेती चौपट हो जाएंगी. यह राख मध्यप्रदेश तक कहर ढायेगी.

प्रमोद भार्गव
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment