जल संकट का समाधान कैसे

Last Updated 04 Aug 2011 12:26:32 AM IST

बीते दिनों ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) एवं जल संसाधन मंत्रालय द्वारा दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेन्टर में आयोजित भारतीय जल गोष्ठी के उद्घाटन भाषण में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने जल संसाधनों में व्यापक सुधार की जरूरत बतायी.


उन्होंने कहा कि  बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन के चलते जल प्रबंधन के क्षेत्र में नई चुनौतियां सामने हैं, जिनका मुकाबला प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए.

पानी की समस्या समूचे विश्व की है लेकिन हमारे यहां जिस तरह इसकी बर्बादी होती है, उसे देखते हुए यदि इस पर समय रहते अंकुश न लगाया गया तो बहुत देर हो जाएगी. वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि 2025 तक दुनिया के दो तिहाई देशों में पानी की किल्लत हो जाएगी. एशिया में यह समस्या कहीं अधिक विकराल होगी और भारत में 2020 तक पानी की भारी किल्लत की आशंका है, जिसका अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर असर पड़ेगा. तिब्बत के पठार पर मौजूद हिमालयी ग्लेशियर समूचे एशिया में 1.5 अरब से अधिक लोगों को मीठा जल मुहैया कराता है. इससे नौ नदियों में पानी की आपूर्ति होती है, जिनमें गंगा और ब्राह्मपुत्र शामिल हैं. इनसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल और बांग्लादेश को पानी मिलता है.

लेकिन जलवायु परिवर्तन व 'ब्लैक कार्बन' जैसे प्रदूषक तत्वों ने हिमालय के कई ग्लेशियरों की बर्फ की मात्रा घटा दी है. माना जा रहा है कि कुछ तो इस सदी के अंत ही तक खत्म हो जाएंगे. लेकिन उससे पहले तेजी से गलते ग्लेशियर समुद्र का जलस्तर बढ़ा देंगे, जिससे तटीय इलाकों के डूबने का खतरा होगा. पानी की उपलब्धता के मामले में राजधानी दिल्ली में ही जहां लोग एक ओर अमोनियायुक्त गंदा पानी पीने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी ओर रोजाना पानी के पाइपों से इतना पानी बर्बाद हो रहा है जिससे 40 लाख लोगों की प्यास बुझ सकती है. पानी की बर्बादी का यह खमियाजा निकट भविष्य में भुगतना पड़ेगा.

बीते दिनों ओट्टावा में कनेडियन वाटर नेटवर्क (सीडब्लूएन) द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय बैठक में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग और जनसंख्या बढ़ोतरी के चलते आने वाले 20 सालों में पानी की मांग उसकी आपूर्ति से 40 फीसद ज्यादा होगी. यानी 10 में से चार लोग पानी के लिए तरस जाएंगे. पानी की लगातार कमी के कारण कृषि, उद्योग और तमाम समुदायों पर सकंट मंडराने लगा है, इसे देखते हुए पानी के बारे में नए सिरे से सोचना बेहद आवश्यक है. अगले दो दशकों में दुनिया की एक तिहाई आबादी को अपनी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी जल का सिर्फ आधा हिस्सा ही मिल पाएगा. कृषि क्षेत्र, जिस पर जल की कुल आपूर्ति का 71 फीसदी खर्च होता है, सबसे बुरी तरह प्रभावित होगा. इससे दुनियाभर के खाद्य उत्पादन पर असर पड़ जाएगा.

ऐसे में हाल ही में घोषित राष्ट्रीय जल अभियान की सफलता की उम्मीद करना बेमानी है. यह तभी संभव है जब हर व्यक्ति पानी का महत्व समझे. इस दिशा में कार्यरत मंत्रालयों और विभागों को एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने के बजाय समन्वित तरीके से समस्या के समाधान हेतु प्रयास करने चाहिए. यदि हम कुछ संसाधनों को समय रहते विकसित करने में कामयाब हो जाएं तो काफी मात्रा में पानी की बचत हो सकती है. उदाहरण के तौर पर यदि औद्योगिक संयंत्रों में अतिरिक्त प्रयास कर लिए जायें तो तकरीबन बीस से पच्चीस फीसद तक पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है. बाहरी देशों में फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे पानी का खेती में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन विडम्बना यह है कि हमारे यहां औद्योगिक क्षेत्रों में ही सबसे ज्यादा पानी की बर्बादी होती है. जरूरत है इस पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान दिया जाये और एक व्यापक नीति बनाई जाये जिससे उचित प्रबंधंन के जरिए पानी की बर्बादी पर अंकुश लग सके.

ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक


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