बोझ ढोती धरती

Last Updated 22 Apr 2011 12:57:42 AM IST

पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत अमेरिका में आज से 41 साल पहले हुई.


इसका लक्ष्य है जीवन को बेहतर बनाया जाय. सवाल है कि जीवन  बेहतर कैसे बने. साफ हवा और पानी बेहतर जीवन की पहली प्राथमिकता है लेकिन आज हवा और पानी ही सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं. प्रकृति से अंधाधुंध छेड़छाड़ के चलते पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है. वातावरण में कार्बन की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ रही है.

इसके लिए औद्योगिक इकाइयां और डीजल पेट्रोल से चलने वाले असंख्य वाहन सबसे अधिक जिम्मेदार हैं. लेकिन वाहनों की बढ़ती संख्या कम करने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक पृथ्वी इस समय 75 करोड़ वाहनों का भार सह रही है. इसमें हर साल 5 करोड़ नये वाहन जुड़ रहे हैं.

भारत की बात करे तो यहां नौ करोड़ से ज्यादा वाहन सड़कों पर हैं. अकेले दिल्ली की सड़कों पर हर दिन एक हजार नये वाहन शामिल हो रहे हैं. भारत में औसत रूप से प्रत्येक 1,000 व्यक्ति पर 12 कारें हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि दुनिया में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है और इसका धुआं वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन बढ़ा रहा है.

एक ओर तो हम वातावरण में कार्बन बढ़ाने वाले स्रोत बढ़ाते जा रहे हैं और दूसरी ओर कार्बन सोखने वाले पेड़ों का सफाया करते जा रहे हैं. आज दुनिया भर में जंगल बहुत तेजी और बेरहमी से काटे जा रहे हैं.  कहीं ये प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ रहे हैं तो कहीं विकास के नाम पर साफ हो रहे हैं. पृथ्वी और उसके साथ ही मानव का अस्तित्व बचाने के लिए सबसे पहले जंगलों को संरक्षित करना जरूरी है ताकि पेड़ बढ़ते कार्बन को खुद में समाहित कर लें.

निजी वाहनों की संख्या कम करने की जरूरत है, ताकि कार्बन उत्सर्जन कम हो लेकिन इस ओर ध्यान न देकर कार्बन की उत्सर्जन की मात्रा कम करने के लिए वागोक्मूल को प्राथमिकता दी जा रही है. देखा जाए तो यह बेहतर विकल्प नहीं है. क्योंकि एक लीटर वायोफ्यूल तैयार करने में 42,00 लीटर पानी की खपत होती है. और इससे हर कोई वाकिफ है कि दुनिया में पानी की किल्लत लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में सवाल लाजमी है कि विकास की जिस राह मानव समाज चल रहा है वह कितना सुरक्षित है. दुनिया की 70 नदियां अपने गंतव्य सागर तक नहीं पहुंच पाती हैं.

इससे साफ है कि मानव अपनी हितपूर्ति के लिए पृथ्वी का बेपनाह दोहन कर रहा है. आज पृथ्वी का कोई क्षेत्र ऐसा बाकी नही बचा है जो मानव की नाइंसाफी का शिकार न हुआ हो. जंगल काट रहे हैं. समुद्र और नदियां प्रदूषण की मार सह रहे हैं. आखिर कब तक हम स्वार्थपूर्ति के लिए धरा का दोहन करते रहेगें. ब्राहमांड में जीवन से पूर्ण यही एक ज्ञात ग्रह है, इस हकीकत के बावजूद हम पृथ्वी को लेकर संवेदनशील नही हैं. विकास की अंधी दौड़ में हम मंगल और चन्द्रमा पर आशियाना बनाने के सपने देख रहे हैं और इस आपाधापी में पृथ्वी को भूल रहे हैं.

आज पृथ्वी के बेहतरी  लिए गंभीरता से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है. लेकिन वक्त आ गया है कि पृथ्वी को हरा भरा और प्रदूषण रहित बनाने की पहल करें. अब तक हमने पृथ्वी से सिर्फ लिया ही है, उसे दिया कुछ नहीं है. लेकिन अब वक्त आ गया है उसे कुछ देने का. अगर आज हम पृथ्वी को कुछ देंगे तो उसका लाभ हमारी भावी पीढ़ी को मिलेगा. इसलिए अपने हित के लिए हमने अपनी वसुधा को जो जख्म दिये है, उन्हें भरने का काम करे. आज कराहती धरा मानव से स्नेह और प्रेम मांग रही है. जरूरी हो गया है कि आज हम सब धरा के प्रति संवेदनशील बनें.

कुमार विजय
लेखक


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