चिंतन की जरूरत

Last Updated 29 May 2025 12:43:06 PM IST

हरियाणा के पंचकुला में खड़ी कार में देहरादून के परिवार के सात सदस्य मृत पाए गए जिनमें मित्तल परिवार के दंपति, मां-बाप व तीन बच्चे बताए जा रहे हैं। स्थानीय पुलिस के साथ उत्तराखंड पुलिस व क्राइम ब्रांच जांच में जुट गए हैं।


चिंतन की जरूरत

मगर प्रथम दृष्टया मामला आत्महत्या का माना जा रहा है। बताया गया कि परिवार बागेर से लौट रहा था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इनमें से एक बेसुध ने अस्पताल जाते हुए कर्ज की बात बार-बार दोहराई जिसने बाद में दम तोड़ दिया। पूछताछ में देहरादून पुलिस को मिले मृतक के मित्र ने बताया कि मित्तल को व्यापार में घाटा हुआ था और उस पर सात-आठ करोड़ का कर्ज था। कर्ज अदायगी न करने के चलते बैंक उसका फ्लैट व कुछ कारें जब्त की चुकी थीं। वह इन दिनों कैब चला कर गुजर कर रहा था। 

गाड़ी में मिले सुसाइड नोट के विषय में पुलिस ने विस्तार से नहीं बताया। उधर केरल के वक्कोम में भी एक ही परिवार के चार सदस्यों की खुदकुशी का मामला सामने आया। बताया गया कि कर्ज के चलते माता-पिता व दो जवान बच्चे छत से लटक  गए। घर से बरामद डायरी में कर्जदारों का ब्योरा मिला है। इस तरह की आत्महत्या की घटनाओं में तेजी आती जा रही है जिनमें अमूमन कर्ज की मोटी रकम चुकाने में सक्षम न रहने के कारण परिवार का मुखिया अपनी जिंदगी तो लेता ही है परिजनों को बकायेदारों व परिचितों के उलाहनों व जीवनयापन की दिक्कतों से बचाने के लिए यह निर्णय सामूहिक रूप से लिया जाता है। पहले भी लोग सामूहिक आत्महत्याएं करते रहे हैं।

कुछ धार्मिक कारणों से, अंधविश्वास या जादू-टोने के चक्कर में चमत्कारों के भरोसे जीवन लीला खत्म करते थे जबकि कई इज्जत के नाम पर जहरीला पदार्थ खा कर या फंदे पर लटक कर सामूहिक रूप से मर जाते थे। कुछ लोग कर्ज, निजी लोन या अनाप-शनाप ब्याज न चुका पाने के कारण भयभीत होकर मौत को अंतिम शरण मान बैठते हैं। समाज के भौतिकतावादी होने के ये दुष्परिणाम कहे जा सकते हैं। 

व्यापार में घाटा, मुनाफे में कमी, धोखाधड़ी या गलत प्लानिंग के चलते करोड़ों की देनदारी का बोझ लोगों को मानसिक रूप से रुग्ण कर देता है। देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में तमाम लोग अवसादग्रस्त हैं। असामान्य स्थितियों में वे संभल नहीं पाते। नकारात्मक विचारों के चलते जीवन-लीला समाप्त करने को ही अंतिम परिणति मान बैठते हैं। इस पर सरकारी तंत्र, विश्लेषकों, समाजविज्ञानियों और मनोविश्लेषकों को गंभीरतापूर्वक चिंतन करने की जरूरत है।



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