सहमति पर असहमति
सहमति से बने रिश्तों में खटास आना या प्रेमी जोड़े के बीच दूरियां बन जाना आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने का आधार नहीं हो सकता।
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सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के एक शख्स के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को खारिज करते यह टिप्पणी की, जिस पर आरोप था कि शादी का झूठा वादा कर उसने महिला से बलात्कार किया। अदालत ने कहा, रिकॉर्ड से ऐसा नहीं लगता कि शिकायतकर्ता की सहमति, उसकी इच्छा के विरुद्ध शादी करने के वादे पर की गयी थी। पीठ ने कहा यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें शुरुआत में शादी करने का वादा किया गया हो।
सहमति से बने संबंधों में खटास आना या पार्टनर के बीच दूरी आना, आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने का आधार नहीं हो सकता। मामले के अनुसार जून 2022 से जुलाई 2023 के दौरान आरोपी ने शादी का झूठा वादा कर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए। आरोपी ने इनसे इनकार किया और निचली अदालत में जमानत के लिए अपील की। हालांकि भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के तहत अपराध है, जिसके लिए दस साल तक की सजा व जुर्माना हो सकता है।
मगर इस तरह के मामलों में अदालत साक्ष्यों व भावनाओं की अनदेखी नहीं करती। भले ही यह सरासर धोखा है मगर सच तो यह भी है कि वयस्क महिलाओं द्वारा विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बनाने की सहमति प्रेम व समर्पण के रूप में दी जाती है। वास्तव में विवाहोपरांत भी रिश्तों में खटास आती है, मगर ऐसे में विवाह विच्छेदन जैसी सुविधाएं हैं, परंतु बगैर वैवाहिक रस्मों, परिवार या परिचितों के संज्ञान में लाये बगैर, गुपचुप बनाए गए इस संबंध में धोखे की गुंजाइश तलाशना बेहद मुश्किल होता है।
यह भी कहना अतिश्योक्ति होगी कि धोखे से या फुसलाकर महिलाओं को दैहिक संबंधों के लिए राजी करने वाले पुरुषों की मंशा में शुरू से ही खोट नहीं होता। झूठे वादों, दिखावे या सच्चे प्रेम को परखने की कोई कसौटी नहीं होती। न ही सहमति से सेक्स करने के नतीजतन विवाह अनिवार्य हो सकता है। विवाह पवित्र बंधन ही नहीं है, सामाजिक व पारिवारिक व्यवस्था में अभी भी विवाहित जोड़ों को इज्जत से देखा जाता है।
दूसरे; तमाम खुलेपन के बावजूद स्त्री शुचिता को लेकर चले आ रहे पूर्वाग्रह कमजोर पड़ते नहीं नजर आ रहे। जिनका समूचा खामियाजा अंतत: स्त्री को ही भुगतना पड़ता है। नैतिकता ही नहीं, कानूनी पाबंदियों का भी ख्याल करते हुए पुरुषों को अपनी उतावली व भावनाओं पर काबू करना सीखना चाहिए।
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